मैं अकेला दर्द इतना साथ लेकर क्या करूँ
आधा तुम ले लो जहां हो आधा तो कट जाएगा ।
जब पड़ी लानत की नजरें चुप हुए कुछ सोच कर
कुछ रहम का रूप है यह दिल बहल ही जाएगा ।
हम नहीं आँसू बहते और न पहरे रखे
आँख को तकलीफ होगी तो छलक ही जाएगा ।
छोड़ कर रस्मों रिवाजें कफ़स का दर खोल कर
जो जहां मगरूर बैठा पास मेरे आएगा ।
अब गुजारिश क्या करूँ कश्ती पर आ कर हूँ खड़ी
जिसको आना साथ मेरे आप ही आ जाएगा ।
कामिनी कामायनी