मधु शर्मा कटिहा
खुश बहुत थी याद तेरी अब मुझे आती नहीं,
डूबकर इक अक्स में अब मैं खो जाती नहीं।
उफ़! भूलते ही याद आ गया फिर से तू क्यों?
कोई रिश्ता ही नहीं तो दर्द भी देते हो क्यों?
चल रही हवा तो पत्ते चुप से हैं मायूस क्यों?
रोशनी सूरज की है तो दिन काला सा है क्यों?
खोलकर अपने पंख चिड़ियाँ चहचहाती दूर से ही,
मन ये क़ैद में उदास खामोश पंछी सा है क्यों?
चाहा था लिखना मिलन की खिलखिलाती दास्तां,
भीगे क़िस्से आँसुओं के लिख रही कलम मेरी क्यों?
हँसना छोड़ूँगी न कभी अब, कह रही थी खुद से मैं,
भूले मुसकाना भी अब, ये लब नासमझ हैं क्यों?
बोलो, पराये से कभी तुम क्यों मुझे लगते नहीं,
सोच और मैं क्यों कभी तुमसे अलग होते नहीं?
मत आओ इतना याद कि चाहती हूँ भूलना मैं सब,
बेहिसाब याद तुमको कर लिया….तुम भी करो अब !