ज़ाकिर नाइक हाज़िर हों….

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जाकिर नाइक हिंदुस्तान के गंगा-जमुनी तहजीब के ऐसे तथाकथित स्तंभ हैं, जो दिन-रात हिंदू सहित दूसरे धर्मों की निंदा करते रहे. यहां तक कि भारतीय-इस्लाम का भी मज़ाक उड़ाते रहे. लोगों की धार्मिक भावनाओं को भड़काते रहे, लेकिन देश की सरकार उन्हें इज्जत से नवाजती रही. वो तो हमेशा से सलाफी इस्लाम का प्रचार करते रहे हैं, फिर आईपीएस एकेडमी में युवा अधिकारियों को जाकिर नाइक से किस बात की ट्रेनिंग के लिए बुलाया गया था? देश के कई यूनिवर्सिटी और शैक्षणिक संस्थानों में जाकिर नाइक का भाषण, सेमिनार में हिस्सेदारी और अलग-अलग कॉंसिल एवं बोर्ड में शामिल कैसे हो गया?इस देश में सेकुलरिज्म के ठेकेदार भगवाकरण का बहुत विरोध करते हैं, लेकिन जाकिर नाइक जैसे लोगों का जब सरकारी संस्थानों द्वारा महिमामंडन होता है तो ये क्यों चुप रहते हैं?

ये तो हिपोक्रेसी की हद है कि ज़ाकिर नाइक के भाषण जहरीले हैं, ये बात हिंदुस्तान की मीडिया को ढाका हमले में शामिल आंतकियों के फेसबुक से पता चला है, जबकि कई सालों से जाकिर नाइक अपनी बात बड़ी सफाई से करते आए हैं. अगर आज वो विलेन बन गए हैं, तो मीडिया के उन दिग्गजों को यह बताना होगा कि उन्होंने ज़ाकिर नाइक के साथ वाक-द-टॉक क्यों किया या फिर उनको समय और स्थान देकर जनता के सामने एक महान इस्लामिक स्कॉलर बनाकर क्यों प्रस्तुत किया? जाकिर नाइक की मार्केटिंग क्यों की? उन्हें ईमानदारी से बताना चाहिए कि क्या उन्हें इसके लिए पैसे मिले या नहीं? क्या इन महान संपादकों को ये पता नहीं था कि ज़ाकिर नाइक भारत में इस्लाम के किस धारा का प्रतिनिधित्व करते हैं? क्या इन महान संपादकों को वहाबी और सलाफी इस्लाम के बारे में कोई इल्म नहीं था? दरअसल, हम एक ऐसे दौर में जी रहे हैं, जिसमें सच को स्वीकार करना और सच बोलना पाप है. हम हर चीज में राजनीतिक तौर पर सही दिखना चाहते हैं. चाहे इसके लिए हमें हिपोक्रीट बनना पड़े या झूठ बोलना पड़े.

ज़ाकिर नाइक न कोई मौलवी हैं, न धर्मगुरु हैं, न ही कोई दार्शनिक हैं. जाकिर नाइक भी अपने आप को महज एक “पब्लिक स्पीकर” ही बताते हैं. इसलिए उन्हें कोई इस्लाम का महान विशेषज्ञ मान ले तो उस व्यक्ति की मुर्खता है. हकीकत यह है कि ज़ाकिर नाइक एक प्रशिक्षित वक्ता हैं. एक कॉपी-कैट हैं. नकलची हैं. उनके गुरु का नाम अहमद दीदात है, जो एक इस्लामिक प्रीचर थे. वैसे तो वे गुजरात में पैदा हुए, लेकिन साउथ अफ्रीका से ऑपरेट करते रहे. अहमद दीदात ने वहां इंटरनैशनल इस्लामिक मिशनरी ऑर्गनाइजेशन नामक संगठन का गठन किया, जिसमें वो Comparative Religion Dawah Training Course चलाते थे. इस कोर्स का मकसद इस्लाम के संदेश को फैलाने के लिए प्रखर वक्ता पैदा करना है. यह एक टेकनिक-बेस्ड प्रोग्राम है, जिसमें वक्ता को इस्लाम के साथ-साथ दूसरे धर्मों की कुछ खास जानकारी देकर उन्हं कब, कहां और कैसे उद्दृत किया जाए, ये बताया जाता है. इस कोर्स के दौरान दूसरे धर्मों को कैसे नीचा दिखाया जाए, इसमें वक्ता को पारंगत कर दिया जाता है. इस कोर्स के दौरान इस्लाम से जुड़े सबसे ज्यादा पूछे जाने वाले सवालों का जवाब देने की तकनीक पर जोर दिया जाता है. जाकिर नाइक 1987 में अहमद दीदात से मिले और तब से उनके दिखाए रास्ते पर चल रहे हैं.

जाकिर नाइक इसी अहमद दीदात के चेले हैं. दोनों में फर्क ये है कि अहमद दीदात सुन्नी थे. जाकिर नाइक रूढ़िवादी सलाफी इस्लाम को एकमात्र सच्चा इस्लाम मानते हैं. यही वजह है कि हिंदुस्तान और पाकिस्तान के साथ-साथ दुनिया भर के कई विश्वविख्यात उलेमाओं ने जाकिर नाइक को खारिज कर दिया. हालांकि दीदात की संस्था से ट्रेनिंग लेने वालों में जाकिर नायक अकेले नहीं हैं. ऐसे कई लोग हैं, जो इसी तकनीक और इसी स्टाइल में भाषण देते हैं और दुनिया भर में मजमा लगाते हैं. उन सभी के भाषण एक ही जैसे हैं. जाकिर नायक अब यही कोर्स मुंबई में चलाते हैं. कई लोग यहां से ट्रेनिंग लेकर वहाबी इस्लाम को फैलाने में जुड़े हैं. इसके बारे में पूरी जानकारी https://www.peacetv.in/forth_dawaah1.html पर मिल सकती है. जाकिर नाइक के वीडियो से जो लोग मंत्रमुग्ध हैं, उन्हें यूट्यूब पर अहमद दीदात का वीडियो देखना चाहिए. इसे देखने के बाद यह समझ में आ जाएगा कि जाकिर नाइक कोई एक्सपर्ट नहीं, बल्कि अहमद दीदात के फोटो कॉपी हैं.

दुनिया में जाकिर नाइक की तरह चैप्टर और पारा बता कर भाषण देने वाले कई वक्ता हैं,लेकिन जाकिर नाइक में ऐसी क्या बात है कि इंडियन एक्सप्रेस ने उन्हें 100 शक्तिशाली लोगों की लिस्ट में शामिल कर लिया. इस तरह की लिस्ट में शामिल होने का मतलब यही है कि जाकिर नाइक को राजनीतिक संरक्षण और देश के उस विशिष्ट-वर्ग का समर्थन मिला है,जो इस देश में महानता निर्धारित करते हैं. इसी संरक्षण की वजह से उन्हें नेताओं व तथाकथित सेकुलर जमात ने एक दार्शनिक के रूप में जनता के सामने पेश किया. जाकिर नाइक भारतीय-इस्लाम पर हमला करते रहे, लेकिन उन्हें देश के बड़े-बड़े पत्रकारों ने महान दार्शनिक का दर्जा दिया. वो दूसरे धर्मों का उपहास करते रहे और उसे देश की सेकुलर-जमात ने इस्लामिक-धर्मगुरु बना कर पेश करती रही. जाकिर नाइक हिंसा का पाठ पढ़ाते रहे और हमारे देश के नेता उसे शांतिदूत की उपाधि देते रहे. अब, जब यह उजागर हो गया है कि जाकिर नाइक के भाषण से आंतकी प्रेरणा लेते हैं तो जाकिर के साथ-साथ ये “आइडिया ऑफ इंडिया” के ठेकेदार बेनकाब हो गए.

जाकिर नाइक में ऐसी क्या बात है कि जब देश के कई जाने-माने मौलानाओं ने इसका विरोध किया तो सरकार और सेकुलर नेताओं ने उनके विरोध को दरकिनार कर दिया. समझने वाली बात यह है कि हमारे देश में बाबाओं का ऑपरेट करने का पूरा सिस्टम है, जिसमें कानूनी और गैरकानूनी क्रियाकलापों की दिवार तोड़ दी जाती है. जाकिर नाइक भी देश के दूसरे बाबाओं की तरह सारे धंधे में शामिल हैं. सऊदी अरब के साथ अच्छे रिश्ते की वजह से जाकिर नाइक को संसाधन की दिक्कत कभी नहीं हुई. दुनिया के दूसरे इस्लामिक-प्रचारक से ये अलग और आगे इसलिए निकल गए, क्योंकि उन्होंने संसाधनों का इस्तेमाल टीवी चैनल खोलने में लगा दिया. टीवी चैनल खुलते ही जाकिर नाइक की स्थिति बदल गई. टीवी के जरिए उनकी बहुत ज्यादा लोगों तक पहुंच हो गई. टीवी है तो ड्रामा भी शुरू हो गया. फिर बड़े-बड़े प्रोग्राम बनने लगे. भीड़ बढ़ती चली गई. पूरा चैनल सिर्फ और सिर्फ जाकिर नाइक के प्रोमोशन में लग गया. इन चैंनलों ने नाइक को दुनिया का सबसे महान इस्लामिक स्कॉलर सिद्ध करने के लिए अपनी सारी शक्ति लगा दी. इसका फायदा यह हुआ कि देश की वोट-बैंक राजनीति भी नतमस्तक हो गई. किसी ने ये भी नहीं पूछा कि पीस टीवी का लाइसेंस है या नहीं.
दुनिया भर में जाकिर नाइक पर प्रतिबंध लगने लगा, लेकिन हिंदुस्तान में उनपर कभी कोई सवाल भी नहीं उठाया. मुंबई पुलिस ने उनकी गतिविधियों पर एक रिपोर्ट भी दी, लेकिन यूपीए की सेकुलर सरकार ने उस रिपोर्ट को रद्दी में फेंक दिया. जाकिर नाइक जहरीला व्यक्ति हैं। पीस टीवी के पूरे क्रियाकलापों की जांच होनी चाहिए. जाकिर नाइक के पूरे साम्राज्य की जांच हो. ये पता होना चाहिए कि दुनिया के किन-किन देशों से जाकिर नाइक और उनके संगठन को पैसा आता है और ये पैसा कैसे खर्च होता है. साथ में ये भी जांच होनी चाहिए कि आतंकियों से जाकिर नाइक का क्या रिश्ता है? जहां तक बात जाकिर नाइक के भाषणों की है तो सरकारी एजेंसियां उनकी जांच-परख कर रही हैं. जाकिर नाइक के भाषण ही उन्हें जेल की सलाखों के पीछे भेजने के लिए काफी हैं. लेकिन, सवाल तो अवॉर्ड वापसी गैंग और छद्म-सेकुलर नेताओं से पूछा जाना चाहिए. इन लोगों ने जाकिर का पहले विरोध न करके गलती तो की ही और अब चुप रहकर महापाप कर रहे हैं. उन्हें याद रखना चाहिए कि ये 1970 का दौर नहीं, ये 2016 है. जनता को भ्रमित कर पूरे संवाद को बदलने की उनकी ताकत अब खत्म हो गई है. हिपोक्रेसी छोड़ उन्हें सत्य के साथ खड़ा चाहिए. क्योंकि अब इसके अलावा कोई दूसरा चारा नहीं है.

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