ढाका की गुलशन झील के रेस्तरां पर हमले का खून अभी सुखा भी न था कि किशोरगंज की मस्जिद पर आतंकवादियों ने हमला कर दिया। रेस्तरां वाले हमले में मरनेवाले ज्यादातर लोग बांग्लादेशी मुसलमान नहीं थे, विदेशी थे लेकिन इस ताजा हमले को क्या कहें? इसमें मरनेवाले सभी बांग्लादेशी थे। इससे भी गंभीर बात यह कि यह हमला ईद के त्यौहार पर किया गया याने हमलावरों के लिए ईद का कोई मतलब नहीं है। क्या कोई काफिर भी कभी ऐसा दुस्साहस करेगा कि वह ईद के दिन हमला बोलेगा? त्यौहार किसी का भी हो, ईद हो, दीवाली हो, क्रिसमस हो- उस उत्सव के दिन जो भी हमला बोलेगा, वह मुसलमान तो क्या इंसान भी कहलाने के लायक नहीं है। ईद के दिन हमला, फिर मस्जिद पर हमला और ईद की नमाज पढ़ते हुए तीन लाख धर्मप्रेमियों पर हमला- इससे ज्यादा वहशियाना काम क्या हो सकता है। इन आतंकवादियों को अपने आप को मुसलमान कहते हुए शर्म नहीं आती?
यह हमला क्यों किया गया, यह अभी तक पता नहीं चला है लेकिन तीन-चार आतंकी पकड़े गए हैं, यह अच्छा हुआ। वे सारा राज खोलेंगे। बांग्लादेश की हसीना-सरकार की इज्जत पैंदे में बैठ गई है। उसे पाकिस्तान या ‘इस्लामी राज्य’ के मत्थे दोष मढ़ने की बजाय अपने घर को संभालना चाहिए। शेख हसीना को सारे अतिवादी तत्वों पर बुरी तरह से टूट पड़ना चाहिए। भारत उनकी सक्रिय सहायता करेगा। भारत के राष्ट्रीय सुरक्षा गार्ड (एनएसजी) अब ढाका पहुंच रहे हैं। बांग्लादेश के आतंकियों और भारत के आतंकियों में सांठ-गांठ के भी ताजा प्रमाण मिले हैं। बांग्ला आतंकियों को उकसाने की जिम्मेदारी जाकिर नाइक की पाई गई है। जाकिर नाइक एक भारतीय है और वह किसी टीवी चैनल पर उपदेश झाड़ता रहता है। उसके भड़कीले भाषण आतंकियों की खुराक का काम करते हैं। उस पर कई देशों ने प्रतिबंध लगा रखा है। अब जबकि भारत में उसकी गिरफ्तारी की मांग होने लगी है, वह अपनी सफाइयां पेश कर रहा है। वह कह रहा कि वह आतंकवाद और हिंसा के खिलाफ है। उसने सिर्फ यह कहा था कि बुराइयों के खिलाफ हर मुसलमान को आतंकवादी बन जाना चाहिए। यदि यह सत्य है तो जाकिर नाइक को चाहिए कि वह ढाका के आतंकवादियों की स्पष्ट निंदा करे और उन्हें गैर-इस्लामी घोषित करे। आतंकवाद को शुद्ध हैवानियत का नाम दे।
यह बिल्कुल सही मौका है, जबकि इस्लाम के सारे प्रसिद्ध मौलाना, प्रसिद्ध मुस्लिम फिल्मी सितारे और प्रसिद्ध मुसलमान नेता बयान जारी करें और टीवी चैनलों पर खुलकर बोलें। वे दुनिया भर के मुसलामनों से कहें कि वे आतंकवाद की भर्त्सना करें, उसे काफिराना हरकत मानें और आतंकियों के साथ किसी प्रकार का कोई सहयोग न करें। मुझे खुशी है कि लखनऊ और कोलकाता के इमामों ने इसकी शुरुआत कर दी है।