किये है जो कर्म हमने,उन्हीं का फल पा रहे हैं, बोए है जो पेड़ हमने,उन्हीं के फल खा रहे है। चला आ रहा है यह नियम सृष्टि का सदियों से, उसी को सब लोग संसार में निभाते जा रहे है।।
आवागमन का नियम सृष्टि का चला आ रहा है, जो आया है यहां वह यहां से चला जा रहा है। नियम अटल है सृष्टि के उनमें परिवर्तन नहीं है, जिसको भेजा है यहां उसको बुलाया जा रहा है।।
जिसको मुंह दिया है उसको खाने को दे रहा है, सबकी नैय्या को भवसागर से वहीं खे रहा है। अदृश्य वह है लेकिन वह सबको देख रहा है, जिसने सब कुछ दिया वहीं सब कुछ ले रहा है।।