शीर्षक ने आकृष्ट किया तो स्वाभाविक था कि मैं विस्तृत विवरण की खोज करता.वह तो मिला नहीं.पर शीर्षक पढ़ कर मैं इतना ही कह सकता हूँ कि भारत को आज अवश्य आवश्यकता है गाँधी और विवेकानंद को न केवल स्मरण करने की,बल्कि उनके द्वारा बताये हुए मार्ग पर चलने की,पर क्या बाकई हम उसके लिए तैयार हैं?
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शीर्षक ने आकृष्ट किया तो स्वाभाविक था कि मैं विस्तृत विवरण की खोज करता.वह तो मिला नहीं.पर शीर्षक पढ़ कर मैं इतना ही कह सकता हूँ कि भारत को आज अवश्य आवश्यकता है गाँधी और विवेकानंद को न केवल स्मरण करने की,बल्कि उनके द्वारा बताये हुए मार्ग पर चलने की,पर क्या बाकई हम उसके लिए तैयार हैं?
शीर्षक ने आकृष्ट किया तो स्वाभाविक था कि मैं विस्तृत विवरण की खोज करता.वह तो मिला नहीं.पर शीर्षक पढ़ कर मैं इतना ही कह सकता हूँ कि भारत को आज अवश्य आवश्यकता है गाँधी और विवेकानंद को न केवल स्मरण करने की,बल्कि उनके द्वारा बताये हुए मार्ग पर चलने की,पर क्या बाकई हम उसके लिए तैयार हैं?
शीर्षक ने आकृष्ट किया तो स्वाभाविक था कि मैं विस्तृत विवरण की खोज करता.वह तो मिला नहीं.पर शीर्षक पढ़ कर मैं इतना ही कह सकता हूँ कि भारत को आज अवश्य आवश्यकता है गाँधी और विवेकानंद को न केवल स्मरण करने की,बल्कि उनके द्वारा बताये हुए मार्ग पर चलने की,पर क्या बाकई हम उसके लिए तैयार हैं?
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शीर्षक ने आकृष्ट किया तो स्वाभाविक था कि मैं विस्तृत विवरण की खोज करता.वह तो मिला नहीं.पर शीर्षक पढ़ कर मैं इतना ही कह सकता हूँ कि भारत को आज अवश्य आवश्यकता है गाँधी और विवेकानंद को न केवल स्मरण करने की,बल्कि उनके द्वारा बताये हुए मार्ग पर चलने की,पर क्या बाकई हम उसके लिए तैयार हैं?