एमएसपी में वृद्धि :कृषि और किसान कल्याण को गति

हाल ही में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की अध्यक्षता में आर्थिक मामलों की मंत्रिमंडलीय समिति ने विपणन(मार्केटिंग) सीजन 2025-26 के लिए 14 खरीफ फसलों के न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) में वृद्धि को मंजूरी  दी है, यह कृषि और किसान कल्याण के विचार से एक स्वागत योग्य कदम कहा जा सकता है। अच्छी बात है कि आज भारत सरकार कृषि उत्पादन बढ़ाने के साथ ही साथ उत्पादन की लागत घटाने की दिशा में लगातार अपना फोकस कर रही है। बहरहाल, अच्छी बात यह भी है कि सरकार ने वित्त वर्ष 2025-26 के लिए संशोधित ब्याज छूट योजना के अंतर्गत ब्याज छूट को जारी रखने और आवश्यक निधि व्यवस्था को भी मंजूरी दी है। पाठकों को बताता चलूं कि पिछले वर्ष की तुलना में एमएसपी में सबसे अधिक वृद्धि रामतिल (820 रुपये प्रति क्विंटल) के लिए की गई है, इसके बाद रागी (596 रुपये प्रति क्विंटल), कपास (589 रुपये प्रति क्विंटल) और तिल (579 रुपये प्रति क्विंटल) के लिए एमएसपी में वृद्धि की गई है। निश्चित ही एमएसपी में वृद्धि से उत्पादकों को उनकी उपज के लिए लाभकारी मूल्य सुनिश्चित हो सकेगा। कहना ग़लत नहीं होगा कि खरीफ सीजन 2025-26 के लिए 14 खरीफ फसलों पर न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) में बढ़ोतरी का यह एक ऐतिहासिक निर्णय है। सभी फसलों की एमएसपी में वृद्धि देशभर की औसत उत्पादन लागत का कम से कम 1.5 गुना सुनिश्चित करते हुए की गई है। वास्तव में सरकार का यह निर्णय हमारे देश के किसानों को सशक्त, समृद्ध और आत्मनिर्भर बनाने तथा उनकी आय बढ़ाने की दिशा में बड़ा कदम कहा जा सकता है। उपलब्ध जानकारी के अनुसार किसानों को उनकी उत्पादन लागत पर अपेक्षित मार्जिन बाजरा (63 प्रतिशत) के मामले में सबसे अधिक होने का अनुमान है, उसके बाद मक्का (59 प्रतिशत), तुअर (59 प्रतिशत) और उड़द (53 प्रतिशत) का स्थान है. शेष फसलों के लिए, किसानों को उनकी उत्पादन लागत पर मार्जिन 50 प्रतिशत होने का अनुमान है। बहरहाल, कहना ग़लत नहीं होगा कि आज कृषि और किसान कल्याण के क्षेत्र में लगातार काम हो रहा है। मसलन, आज किसानों को आज क्रेडिट कार्ड के तहत कम ब्याज पर ऋण उपलब्ध हो रहा है। किसानों को सस्ती खाद,बीज उपलब्ध करवायें जा रहे हैं और फर्टिलाइजर पर भी सब्सिडी प्रदान की जा रही है। इतना ही नहीं, प्रधान मंत्री किसान सम्मान निधि भारत सरकार की एक पहल है, जो किसानों को न्यूनतम आय सहायता के रूप में प्रति वर्ष ₹6,000 तक देती है। पाठकों को बताता चलूं कि इस पहल की घोषणा पीयूष गोयल ने 1 फरवरी 2019 को भारत के अंतरिम केंद्रीय बजट 2019 के दौरान की गई थी। हाल फिलहाल, फसलों के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) में वृद्धि के तहत सामान्य धान के लिए एमएसपी में 3% की वृद्धि की गई है, जो अब ₹2,369 प्रति क्विंटल निर्धारित की गई है, जबकि ग्रेड ए किस्म ₹2,389 प्रति क्विंटल पर उपलब्ध होगी। ये पिछले वर्ष की तुलना में ₹69 की वृद्धि को दर्शाती है। दालों में, तुअर (अरहर) के लिए एमएसपी को ₹450 बढ़ाकर ₹8,000 प्रति क्विंटल कर दिया गया है, जबकि उड़द में ₹400 की वृद्धि करके ₹7,800 प्रति क्विंटल कर दिया गया है। मूंग के एमएसपी को एडजस्ट किया गया है, जो ₹86 बढ़ाकर ₹8,768 प्रति क्विंटल कर दिया गया है। बहरहाल, अच्छी बात है कि सरकार ने खरीफ की फसलों के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य की घोषणा जरूर कर दी है लेकिन अब जरूरत इस बात की है कि सरकार इस पर प्रभावी निगरानी रखें और यह सुनिश्चित करें कि इसका क्रियान्वयन भी धरातल पर सही तरीके से हो सके। इसके साथ ही सरकार को विभिन्न दीर्घकालिक कृषि सुधारों पर भी ध्यान केंद्रित करने की आवश्यकता है। पाठक जानते हैं कि भारत विश्व का एक बड़ा कृषि प्रधान देश है और यहां की अर्थव्यवस्था कृषि पर आधारित है। ऐसे में फसलों के समर्थन मूल्यों में बढ़ोत्तरी से भारतीय कृषि क्षेत्र निश्चित ही मजबूत और सुदृढ़ हो सकेगा। बहरहाल, यहां पाठकों को बताता चलूं कि एमएसपी यानी कि न्यूनतम समर्थन मूल्य व्यवस्था की स्थापना वर्ष 1965 में कृषि मूल्य आयोग (एपीसी) (जिसे बाद में सीएसीपी नाम दिया गया) की स्थापना करके की गई थी, जो राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा को बढ़ाने और किसानों को बाजार मूल्यों में महत्वपूर्ण गिरावट से बचाने के लिए बाजार हस्तक्षेप का एक रूप था। दूसरे शब्दों में कहें तो एमएसपी दरअसल वह तयशुदा मूल्य होता है, जो किसानों को बाजार में उनकी उपज के मूल्य से अप्रभावित रहते हुए दिया जाता है। पाठकों को बताता चलूं कि न्यूनतम समर्थन मूल्य या यूं कहें कि एमएसपी का फायदा यह होता है कि बाजार में फसलों की कीमतों में भले ही कितना ही उतार चढ़ाव क्यों न हो, यदि किसी फसल की एमएसपी(न्यूनतम समर्थन मूल्य) तय होती है तो भी किसान को फसल का न्यूनतम समर्थन मूल्य (सरकार द्वारा तय) तो मिलता ही है। मतलब यह है कि बाजार में फसलों की कीमतों में होने वाले उत्तार-चढ़ाव का असर किसानों पर नहीं पड़ता है। गौरतलब है कि  फसलों के हर मौसम से पहले सरकार कृषि लागत एवं मूल्य आयोग (सीएसीपी) की सिफारिश पर एमएसपी(न्यूनतम समर्थन मूल्य) तय करती है।ताजा निर्णय के तहत ज्वार, बाजरा और रागी इत्यादि फसलों की एमएसपी भी बढ़ा दी गई है। विभिन्न कारणों से आज भारतीय कृषि में खेती की लागत लगातार बढ़ रही है। किसानों को असामान्य जलवायु परिस्थितियों का सामना करना पड़ता है, जैसा कि भारतीय कृषि को ‘मानसून का जुआ’ कहा जाता है। वैश्विक मंदी के कारण आज बाजार भी लगातार अस्थिरता से जूझ रहे हैं। ऐसे समय में सरकार द्वारा धान एवं दालों के न्यूनतम समर्थन मूल्य में वृद्धि से जहां एक ओर देश के लाखों-करोड़ों किसान लाभान्वित हो सकेंगे, वहीं दूसरी ओर उन्हें कृषि उत्पादन बढ़ाने हेतु प्रोत्साहन मिल सकेगा। इससे देश की खाद्य सुरक्षा भी कहीं न कहीं सुनिश्चित हो सकेगी, लेकिन कहना ग़लत नहीं होगा कि एमएसपी का प्रभावी कार्यान्वयन बहुत ही जरूरी और महत्वपूर्ण है, क्यों कि बिचौलिए आज भी एक बड़ी समस्या हैं। अंत में यही कहूंगा कि किसान और कृषि भारत की अर्थव्यवस्था की असली रीढ़ हैं। आज जरूरत इस बात की है कि खेती से बिचौलियों की भूमिका को खत्म करने की दिशा में आवश्यक व जरूरी कदम उठाए जाएं। कृषि क्षेत्र में आज फसलों के भंडारण की समस्या भी बहुत बड़ी समस्या है। हमारे यहां विदेशों की भांति पारदर्शी खरीद तंत्र विकसित नहीं है। फसलों की बाजार तक पहुंच भी सुनिश्चित करने की आवश्यकता है। आज भारतीय कृषि में दीर्घकालिक सुधारों की आवश्यकता है। यहां पाठकों को बताता चलूं कि कृषि में दीर्घकालिक सुधार का अर्थ है एक ऐसी प्रणाली विकसित करना जो खाद्य उत्पादन, प्राकृतिक संसाधनों का संरक्षण और पर्यावरण को ध्यान में रखते हुए, कृषि क्षेत्र को टिकाऊ और लाभदायक बना सके।इस सुधार में भूमि पुनर्जनन, जैव विविधता का संरक्षण, और नई तकनीकों(सिंचाई, गुणवत्तापूर्ण बीज, तकनीकी सहायता व प्रशिक्षण) का उपयोग शामिल है।

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