राजेश कुमार पासी
किसी भी देश को चलाने के लिए एक व्यवस्था की जरूरत होती है ताकि वो देश सुचारू रूप से चलता रहे । यह व्यवस्था उस देश की जनता की सेवा के लिए होती है लेकिन हमारे देश की व्यवस्था कुछ अलग है । हमारे देश की व्यवस्था जनता के लिए नहीं है बल्कि खुद के लिए है । ऐसा लगता है कि हमारे देश की व्यवस्था अपनी अधिकतम ऊर्जा खुद को चलाने के लिए ही खर्च करती है. बची-खुची ऊर्जा को वो जनता के कामों के लिए इस्तेमाल करती है । राजस्थान के झालावाड़ में एक स्कूल के भवन के गिरने से सात मासूम बच्चों की असमय मौत हो गई है और 9 बच्चे गंभीर रूप से घायल बताए जा रहे हैं । बरसात में स्कूल के भवन का गिरना बता रहा है कि भवन की हालत खराब हो चुकी होगी तभी वो बरसात में गिर गया । स्कूल के बच्चों ने बताया है कि सुबह से ही भवन की छत से कंकड़-पत्थर गिर रहे थे जिसकी जानकारी उन्होंने अपने शिक्षकों की भी दी थी लेकिन उन्होंने उनकी शिकायत को अनदेखा कर दिया । उनको बताने के कुछ देर बाद ही यह हादसा हो गया । अगर शिक्षक बच्चों की बातों को गंभीरता से लेते तो बच्चों की जान बचायी जा सकती थी ।
इसके अलावा भी बच्चों ने जो कहा है उससे शिक्षकों के रवैये पर सवाल उठते हैं । जिला कलेक्टर ने बताया है कि शिक्षा विभाग की जर्जर भवनों की सूची में इस स्कूल का नाम नहीं था । सवाल यह पैदा होता है कि जिस स्कूल का नाम नहीं था, वो गिर गया और जिनका नाम है, क्या उनको ठीक कर दिया गया है । ग्रामीणों का कहना है कि स्कूल की छत पिछले चार सालों से टपक रही थी लेकिन किसी ने ध्यान नहीं दिया । शिक्षकों को जब शिकायत की गई तो उन्होंने ग्रामीणों को कहा कि तुम लोग पैसे जमा करके इसको ठीक करा दो । क्योंकि सात बच्चों की मौत हो गई है तो यह मामला मीडिया की सुर्खियों में आ गया है लेकिन कुछ दिनों बाद सब भुला दिया जाएगा । वास्तविकता यह है कि राष्ट्रीय बाल अधिकार आयोग की 2024 की रिपोर्ट के अनुसार लगभग 20 प्रतिशत स्कूलों की हालत खराब है ।
ये घटना बताती है कि हमारे देश में सरकारी व्यवस्था सरकारी भवनों की देखरेख में कितनी लापरवाही करती है । ऐसी घटनाओं की सूचना पूरे देश से आती रहती है । इस घटना में सात बच्चों की मौत हो गई है तो घटना बड़ी बन गई है. अगर इस घटना में बच्चे नहीं मारे जाते तो कुछ नहीं होता । बच्चों की मौत के कारण घटना की जांच और कड़ी कार्यवाही की बात हो रही है और कहा जा रहा है कि मुख्यमंत्री जी ने इस घटना का संज्ञान लिया है । अभी घटना मीडिया में छाई हुई है इसलिए ऐसी बातें हो रही है । जब घटना मीडिया से गायब हो जाएगी तो फिर सब कुछ पुराने ढर्रे पर चलने लगेगा । शिक्षा विभाग ने आदेश दिया है कि जर्जर भवनों में बच्चों को न बिठाया जाए लेकिन सवाल यह है कि फिर बच्चों को कहां बिठाया जाएगा । जब भवनों की ऐसी हालत है तो उन्हें समय पर क्यों नहीं ठीक किया गया । इस सम्बन्ध में शिक्षा निदेशक ने रिपोर्ट मांगी है लेकिन सवाल उठता है कि क्या उन्हें पता नहीं है कि किन स्कूलों की ऐसी हालत है । सरकार को बताना चाहिए कि बच्चों की जान जोखिम में डालकर ऐसे भवनों में बच्चों को क्यों पढ़ाया जा रहा है ।
यह भी कहा जा रहा है कि स्कूल की मरम्मत के लिए पैसा स्वीकृत किया जा चुका था लेकिन उसकी फाइल कहीं रूकी हुई थी । सवाल यह है कि फाइल क्यों रुकी हुई थी । क्या फाइल में रिश्वत का पहिया नहीं था, इसलिए रूकी हुई थी । इस बच्चों की मौत के लिए कौन जिम्मेदार है, इस पर विचार करने की जरूरत है । वास्तव में सिर्फ स्कूलों के भवन ही खस्ताहाल नहीं है बल्कि कई सरकारी कार्यालयों की यही हालत होती है । थोड़े-थोड़े अंतराल पर ऐसी खबरें सुनने में आ जाती है कि कहीं सड़क बह गई, सड़क टूट गई, पुल टूट गया और बिल्डिंग गिर गई. सवाल यह है कि बार-बार ऐसा क्यों होता है ।
वास्तव में इसके पीछे देश में फैला हुआ भ्रष्टाचार है जो कि सरकारी निर्माण कार्यों में जबरदस्त तरीके से होता है । मैंने अपनी सरकारी सेवा के दौरान केंद्रीय लोक निर्माण विभाग में ही काम किया है जो कि केन्द्र सरकार द्वारा होने वाले लगभग सभी निर्माण कार्य करता है । यह सच है कि कोई भी सरकारी भवन बिना कमीशन खाये नहीं बनता है । राज्य सरकारों के लोक निर्माण विभागों में तो केन्द्र सरकार के विभाग से ज्यादा बुरा हाल है । हर काम के लिए कमीशन तय होती है जो कि ऊपर से नीचे तक अधिकारियों और कर्मचारियों में बांटी जाती है । अगर ठेकेदार कमीशन न दे तो उसका कोई काम नहीं होता । उसके किये गये काम में नुक्स निकाला जाता है, उसके बिल अटक जाते हैं । वो जानता है कि उसे कितनी रकम रिश्वत के रूप में विभाग में बांटनी है. उसी के अनुसार वो काम के लिए रकम तय करता है । यह काम इतना मिलजुल कर होता है कि कोई किसी की शिकायत नहीं करता और आराम से सब चलता रहता है । हमारे देश की सच्चाई यही है कि जिस भ्रष्टाचार से सबका फायदा होता है, वहां कोई भी एंटी करप्शन एजेंसी कुछ नहीं कर सकती । पूरी व्यवस्था ही ऐसे चल रही है, सब मिलजुल कर देश को लूट रहे हैं । फूड इंस्पेक्टर का हर दुकान से महीना बंधा होता है जो उसे बिना किसी परेशानी के हर महीने मिल जाता है । समस्या तब आती है जब वो नियत राशि से ज्यादा की मांग करता है ।
एक बार मैं सीबीआई के साथ ऐसे ही इंस्पेक्टर को पकड़ने के लिए ट्रेप लगाने गया तो सीबीआई अधिकारियों का यही कहना था कि जब पानी सिर से ऊपर चला जाता है तब हमें कार्यवाही करनी पड़ती है । वास्तव में दुकानदार को पैसे देने में दिक्कत नहीं थी लेकिन जब उसने मंथली रकम ज्यादा बढ़ा दी तो उसने सीबीआई को शिकायत दी थी । एक बार हमारे बाजार में किसी दुकानदार ने फूड इंस्पेक्टर को सीबीआई से पकड़वा दिया तो उससे सारे दुकानदार चिढ़ गए । उनका कहना था कि महीना देने से आराम से काम चल रहा था. अब हमारे ऊपर छापे डालने शुरू हो जायेंगे । इससे पता चलता है कि भ्रष्टाचार हमारी व्यवस्था का हिस्सा बन गया है और हमने उसे स्वीकार कर लिया है ।
सवाल फिर वही है कि क्या ये व्यवस्था जनता के लिए काम कर रही है या अपने लिये काम कर रही है । न्यायपालिका में न्यायाधीशों को इतनी ज्यादा सुरक्षा दे दी गई है कि वो कुछ भी करें, उनके खिलाफ कोई कार्यवाही नहीं हो सकती । अभी दिल्ली हाई कोर्ट के न्यायाधीश जस्टिस वर्मा भ्रष्टाचार के मामले में फंसे हुए हैं लेकिन उनके खिलाफ एफआईआर भी दर्ज नहीं की जा सकती । उन्हें सजा देना तो बहुत दूर की बात है, उन्हें उनके पद से हटाना भी मुश्किल हो रहा है । इन हालातों में न्यायाधीश न्याय करें या अन्याय करें, जनता उनके खिलाफ कहीं कोई शिकायत नहीं कर सकती । इससे साबित होता है कि न्यायालय जनता के लिए नहीं है, अगर होते तो पांच करोड़ मुकदमे फैसले का इंतजार नहीं कर रहे होते । जो नेता वोट मांगने हमारे दरवाजे तक आ जाते हैं, जीतने के बाद उनसे मिलना भी मुश्किल हो जाता है । सरकारी अधिकारियों और कर्मचारियों की नौकरी इतनी सुरक्षित कर दी गई है कि वो काम करें या न करें, उनकी मर्जी पर निर्भर करता है ।
जब नव नियुक्त कुछ चपरासियों से मेरी बात हुई तो उन्होंने कहा कि हमें बताया गया है कि दो साल प्रोबेशन पीरियड है, तब तक काम करो, उसके बात तुम्हारी मर्जी हो तो करना, न मर्जी हो तो न करना, तुम्हारा कोई कुछ नहीं बिगाड़ पाएगा । यह सोच गलत नहीं है बल्कि सरकारी नौकरियों की वास्तविकता है । छोटे कर्मचारी अपनी मर्जी से काम करते हैं और अधिकारी रिश्वत के लिए काम करते हैं । कई जगहों पर जवाबदेही होती है इसलिए काम करना पड़ता है । सरकारी अध्यापकों की जवाबदेही नहीं है इसलिए सरकारी स्कूलों की पढ़ाई बदनाम है । एक छोटे से छोटा कर्मचारी भी अपने बच्चों को पब्लिक स्कूल में पढ़ाना चाहता है । कितनी अजीब बात है कि सरकारी नौकरी वाले अपने बच्चों को सरकारी स्कूल में नहीं पढ़ाते और अपना इलाज सरकारी अस्पताल में नहीं करवाते । एनसीआरबी ने अपनी रिपोर्ट में बताया है कि देश के दस सबसे ज्यादा भ्रष्ट विभाग कौन से हैं । सवाल यह है कि जिन विभागों को उसने भ्रष्ट बताया है, क्या देश की जनता नहीं जानती कि वो विभाग भ्रष्ट हैं । क्या देश की सरकार नहीं जानती कि वो विभाग भ्रष्ट हैं । पूरा देश जानता है कि किस विभाग में कहां भ्रष्टाचार होता है लेकिन कोई कुछ नहीं कर सकता, ये बात भी जनता जानती है । भ्रष्टाचार हमारे देश में रक्त की तरह हो गया है,जो हर सरकारी व्यवस्था में जरूरी द्रव्य होकर बह रहा है । अगर ये रक्त बहना बंद हो जाये तो पूरी व्यवस्था की सांस रुक जाएगी । इसका निष्कर्ष यही है कि पूरी व्यवस्था जनता के नाम पर अपने लिए काम कर रही है । जनता को इसमें रोजगार मिलता है, इसलिए जनता भी खुश है लेकिन वो यह समझ नहीं पा रही है कि उसने नौकर को अपना मालिक बना दिया है ।
राजेश कुमार पासी