चलो अब गांवो की ओर, बढ़ रहा है शहरों में शोर। प्रदूषण भी यहां बढ़ रहा, जीना दूभर यहां हो रहा।।
चिमनियां धुआं उगल रही है, मानवता को वे निगल रही है। सांसों का कर रही है वे संहार, मानव पर कर रही है वे प्रहार। बचेगा नही यहां अब कुछ और, चलो अब गांवो की ओर…….
आबादी शहरो में खूब बढ़ रही है, पाव रखने की जगह न रह रही है। भले ही यहां रोजगार मिलता है, अपनापन यहां कहां मिलता है। भले ही यहां सुविधाओ का शोर, चलो अब गांवो की ओर……