अब यही रह गई है कांग्रेस के राजनीति की आदत 

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अनिल अनूप 
कांग्रेस की ओर से एक बार फिर प्रधानमंत्री मोदी को गाली दी गई है। मुंबई कांग्रेस अध्यक्ष संजय निरुपम ने एक सार्वजनिक बयान में प्रधानमंत्री को ‘अनपढ़-गंवार’ कहा है। संदर्भ छात्रों का था। उन्हें प्रधानमंत्री मोदी की एक फिल्म दिखाई जा रही थी। ऐसी परंपरा देश के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू के कालखंड से जारी रही है। निरुपम ने फिल्म दिखाने को जबरन करार दिया और सवाल किया कि प्रधानमंत्री मोदी जैसे ‘अनपढ़-गंवार’ से स्कूल और कालेज में पढऩे वाले बच्चे क्या सीखेंगे? भक्तिकाल के प्रख्यात कवि रहीम का एक दोहा है, जिसकी व्याख्या यह है कि भगवान कृष्ण को ‘मुरलीधर’ कहें या ‘गिरधर’ कहें, उससे उनका विराट व्यक्तित्व छोटा नहीं हो जाता। गोवर्धन पहाड़ की तुलना में बांसुरी बहुत ही छोटी है, लेकिन दोनों ही भगवान कृष्ण के व्यक्तित्व के हिस्से हैं। मौजूदा संदर्भ में प्रधानमंत्री मोदी की शख्सियत भी कांग्रेस की गालियों से दागदार नहीं होती। गंदी जुबान और निरंकुशता कांग्रेस की फितरत बन गई है। उसे लगता है कि कांग्रेस के अलावा दूसरा कौन भारत की सत्ता पर बैठने  लायक है! प्रधानमंत्री बनने के पहले और बाद में मोदी को इतनी गालियां दी गई हैं कि हम इतने अनैतिक नहीं हो सकते, लिहाजा उनका जिक्र करना भी हम ‘अपशाब्दिक’ मानते हैं। प्रधानमंत्री मोदी को मणिशंकर अय्यर ने ‘नीच’ तक कहा और उससे पहले ‘चायवाला’ कहकर उनके पेशे और गरीबी पर व्यंग्य कसा था। मणिशंकर को कांग्रेेस से निलंबित किया गया था, लेकिन राहुल गांधी ने उन्हें पार्टी में वापस ले लिया। गाली देने वालों का कांग्रेस में स्वागत है…! एक तरफ राहुल गांधी पार्टीजनों को निर्देश देते हैं कि प्रधानमंत्री मोदी के खिलाफ कोई भी ‘गलत शब्द’ का इस्तेमाल नहीं करना है और न ही देश के प्रधानमंत्री का अपमान करना है। लोकसभा में भी उन्होंने प्रधानमंत्री मोदी की झप्पी भरने की कोशिश की थी। अजीब दोगलापन और विरोधाभास है कि एक तरफ गले मिलने की सियासत और दूसरी तरफ गालियां देने की फितरत…! दरअसल यह प्रधानमंत्री मोदी का ही नहीं, देश के लोकतंत्र और जनता का भी अपमान है, जिसने नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री बनने का जनादेश दिया था। इसके पहले प्रधानमंत्री मोदी पर ‘खून की दलाली’ का आरोप राहुल गांधी ने लगाया था। मोदी के लिए ही ‘मौत का सौदागर’ और ‘जहर की खेती’ सरीखे विशेषण भी इस्तेमाल किए गए। उन्हें राक्षस, यमराज, औरंगजेब, हिटलर, बिच्छू, सांप, कातिल, हत्यारा और तेली तक कहा गया। मोदी तब गुजरात के मुख्यमंत्री भी थे। यानी एक निर्वाचित जन-प्रतिनिधि…! नफरत की पराकाष्ठा इससे ज्यादा क्या हो सकती है? उप्र के एक नेता ने कहा था-‘मोदी की बोटी-बोटी कर दूंगा।’ क्या यह लोकतंत्र की भाषा, जुबान है? कांग्रेस ने उस नेता को भी पार्टी में ले लिया। कमाल यह है कि मोदी को जितनी और जब-जब गालियां दी गईं, वह चुनाव में ‘विजयी’ बनकर उभरे। जनता ने उन्हें भरपूर समर्थन दिया। कांग्रेस सोचती है कि क्या प्रधानमंत्री को गालियां देकर वह 2019 का चुनाव जीत लेगी? देश की जनता कभी भी नफरत और विद्वेष को जनादेश नहीं देती। यह हमारी परंपरा रही है। हमें यह कांग्रेस की राजनीतिक कुंठा भी लगती है। वह चिंतित होगी कि यदि 2019 नहीं जीत पाए, तो उनकी दुकान ही बंद हो जाएगी। वैसे भी कांग्रेस देश की करीब 3 फीसदी आबादी तक ही सिमट कर रह गई है। यदि कांग्रेस के नेता प्रधानमंत्री मोदी की शैक्षिक डिग्रियों पर सवाल करेंगे, तो इंदिरा गांधी से लेकर राहुल गांधी तक भी सवाल उठ सकते हैं कि उनकी डिग्रियों का सच क्या है? भारत का प्रधानमंत्री बनने के लिए किसी शैक्षिक डिग्री की अनिवार्यता नहीं है। जनता का जनादेश ही आधार है, जिसके आधार पर सत्ताएं हासिल होती हैं। राहुल गांधी को वंशगत अहंकार छोडक़र मूल्यों की राजनीति करनी चाहिए। वह संजय निरुपम सरीखे कांग्रेसियों के खिलाफ कार्रवाई करें और सबक दें कि देश के प्रधानमंत्री पर कीचड़ उछालने का नतीजा यही होगा। आखिर प्रधानमंत्री पद की गरिमा और सम्मान होता है। पूरी दुनिया उनसे संवाद करती है और वह फोकस में रहते हैं। यदि प्रधानमंत्री के लिए मवालियों वाली भाषा का इस्तेमाल किया जाएगा, तो अपमान भारत देश का ही होगा। बहरहाल नुकसान राहुल गांधी और कांग्रेस की राजनीति का ही है, यदि यही सिलसिला जारी रहा! कांग्रेस मोदी सरकार की नीतियों और कार्यक्रमों की भरपूर आलोचना करे, आंदोलन छेड़े, लेकिन गालियां देने की प्रतियोगिता तुरंत बंद होनी चाहिए।

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