कैलिफ़ोर्निया में हिमपात

कैलिफ़ोर्निया में हिमपात
कैलिफ़ोर्निया में हिमपात
कैलिफ़ोर्निया में हिमपात

टाहो झील पर –
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हिमाच्छादित पर्वत-श्रेणी ,
शैलशिखर संग शोभित थी ।
ओढ़ रुपहली चूनर मानो ,
वधू सदृश वह गर्वित थी ं।।
ऊपर नभ का था वितान और,
पवन झकोरे मंगल गाते ।
खड़े संतरी से थे तरुवर ,
मानो थे पहरा देते ।।
उत्सव सा था सजा हुआ ,
जो देख प्रकृति भी पुलकित थी ।
अपलक सी मैं रही देखती,
मन में बड़ी प्रफुल्लित थी ।।
बाल-वृन्द हर्षित से होकर,
हिम-कन्दुक क्रीड़ा करते थे ।
दूर वहीं पर मिलकर युवजन,
हिम-मानव को रचते थे ।।
हिम के टीले सभी कहीं थे,
धरा धवल सी दिखती थी ।
दर्शनीय सा दृश्य वहाँ था,
शोभा मन को हरती थी ।।
वातावरण भव्य था अतिशय,
नीरवता सी छाई थी ।
ज्यों अभिसार रचाने मानो,
प्रकृति-सुन्दरी आई थी ।।

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शकुन्तला बहादुर
भारत में उत्तरप्रदेश की राजधानी लखनऊ में जन्मी शकुन्तला बहादुर लखनऊ विश्वविद्यालय तथा उसके महिला परास्नातक महाविद्यालय में ३७वर्षों तक संस्कृतप्रवक्ता,विभागाध्यक्षा रहकर प्राचार्या पद से अवकाशप्राप्त । इसी बीच जर्मनी के ट्यूबिंगेन विश्वविद्यालय में जर्मन एकेडेमिक एक्सचेंज सर्विस की फ़ेलोशिप पर जर्मनी में दो वर्षों तक शोधकार्य एवं वहीं हिन्दी,संस्कृत का शिक्षण भी। यूरोप एवं अमेरिका की साहित्यिक गोष्ठियों में प्रतिभागिता । अभी तक दो काव्य कृतियाँ, तीन गद्य की( ललित निबन्ध, संस्मरण)पुस्तकें प्रकाशित। भारत एवं अमेरिका की विभिन्न पत्रिकाओं में कविताएँ एवं लेख प्रकाशित । दोनों देशों की प्रमुख हिन्दी एवं संस्कृत की संस्थाओं से सम्बद्ध । सम्प्रति विगत १८ वर्षों से कैलिफ़ोर्निया में निवास ।

8 COMMENTS

  1. I know Dr.Shakuntala Bahadur for the last 14 years at India Community Center in Sunnyvale and Cupertino. I totally admire her knowledge not only of our ancient History but anything from movie songs to the politics of India during the last many decades. Her capacity to arrange events is unmatched. But with all this her humility is her great virtue.

    • मणी जी आप ने शकुन जी के, जिन पहलुओं को निकटता से अनुभव किया है, उन्हें, हमें भी बताने के लिए; धन्यवाद।
      मैं कहूँगा, कि, आज के इस स्पर्धा के और अहंकारी युग में, हम सच्चे चमकते मौक्तिकों को ना भूले।
      *वचने किं तु दरिद्रता*, यह उक्ति भी मुझे सस्ती लगती है।
      यह एक अर्थ में हमारा निर्मल संस्कृति को सँवारने और प्रोत्साहन देने में योगदान है।
      वास्तव में प्रामाणिकता से की गयी ऐसी स्वीकृति किसी कागज पर लिखे प्रमाण पत्र से भी बडा प्रमाण होता है। साक्षात प्रत्यक्षदर्शी का अनुभव!
      वास्तव में मुझे भी ऐसा ही अनुभव है।
      उसी प्रकार श्रीमान बी. एन. गोयल साहब के विधान से भी सहमति व्यक्त करता हूँ।
      पर यह *प्रवक्ता* ना होता, तो हम सभी का ऐसा वैचारिक परिचय भी ना होता।
      बहुत बहुत धन्यवाद।

  2. एक बार मैंने लिखा था की ‘उपमा कालिदासस्य’ के स्थान पर अब इसे ‘उपमा शकुनास्य’ होना चाहिए ……………बहुत सुन्दर

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