विकसित कृषि से विकसित भारत की राह

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डा.वेदप्रकाश

  विकसित कृषि के लिए विज्ञान एवं आधुनिक तकनीक का प्रयोग आवश्यक है। समय के अनुसार विभिन्न क्षेत्रों में बदलाव आ रहे हैं। कई क्षेत्रों में भूजल का स्तर घटने एवं जलवायु परिवर्तन होने से फसलों के पैटर्न बदलने की आवश्यकता है। गेंहू , गन्ना, धान, सेब,संतरा, मौसमी, नींबू ,आम,केला व लीची आदि फसलों की आवश्यकताएं भिन्न हैं। इसलिए आज कृषि क्षेत्र के लिए शोध और नवाचार अनिवार्य है। वन ड्रॉप मोर क्रॉप के महत्व को समझना होगा। भूजल की कमी वाले क्षेत्रों में अधिक लाभ एवं पैदावार वाली किस्में  विकसित करनी होंगी। वर्ष 2014 में सत्ता में आते ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने किसानों की आय दोगुनी करने का संकल्प प्रस्तुत किया और उसके लिए विभिन्न योजनाओं को तत्काल प्रभाव से लागू भी किया। परिणामत: विगत कुछ वर्षों से लगातार रिकॉर्ड खाद्यान्न की पैदावार और निर्यात हो रहा है।


       हाल ही में केंद्र सरकार ने प्रधानमंत्री धन-धान्य कृषि योजना को मंजूरी दी है। इस योजना में कृषि उत्पादन में पिछड़े जिलों को शामिल किया जाएगा जिसमें प्रत्येक राज्य से कम से कम एक जिला सम्मिलित होगा। योजना पर प्रतिवर्ष 24000 करोड़ रुपए खर्च होंगे, जिससे लगभग एक करोड़ 70 लाख किसानों को लाभ होगा। योजना में छोटे और सीमांत किसानों को आधुनिक और लाभकारी खेती की ओर बढ़ने पर बल दिया जाएगा। यह अन्नदाता के सम्मान और कृषि एवं किसान कल्याण की दिशा में महत्वपूर्ण निर्णय है।


      ध्यातव्य है कि भारत कृषि प्रधान देश है। देश की लगभग 47 प्रतिशत आबादी कृषि से आजीविका पर निर्भर है। आज भी देश के विभिन्न राज्यों में कृषि के लिए पुरानी तकनीक और पुराने उपकरणों पर ही निर्भरता है। तकनीकी और वैज्ञानिक विकास से वे अभी भी बहुत दूर हैं। दिसंबर 2024 की नेशनल बैंक आफ रूरल एंड एग्रीकल्चरल डेवलपमेंट की एक रिपोर्ट के अनुसार किसानों की कमाई में खेती का योगदान 33 प्रतिशत है। किसान परिवारों की खेती से औसत मासिक आय केवल 4476 रुपए है। इसके अतिरिक्त खेती, पशुपालन, अन्य उद्यम,मजदूरी एवं सेवा आदि को मिलाकर किसान परिवार की औसत मासिक आय 13661 रुपए है। देश के लगभग 55.4 प्रतिशत किसान परिवारों पर कर्ज है। सामान्यतः छोटी जोत के किसान परिवारों की बदहाली सहज ही देखी जा सकती है। सर्दी, गर्मी, बरसात सभी मौसमों में खुले आसमान के नीचे कठोर परिश्रम करके भी वे मूलभूत आवश्यकताओं से वंचित रहते हैं। क्या किसानों की यह दशा चिंताजनक नहीं है?


विगत कुछ वर्षो से कृषि और किसान कल्याण के लिए अनेक योजनाएं आरंभ की गई हैं जिनमें किसान चैनल, प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना, एग्रीकल्चर मार्केट रिफॉर्म, बजटीय आवंटन में बढ़ोतरी, कृषि ऋण, कृषि बाजार ढांचे में सुधार, राष्ट्रीय बांस मिशन, मृदा स्वास्थ्य कार्ड, परंपरागत कृषि विकास योजना, राष्ट्रीय गोकुल मिशन एवं प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना आदि प्रमुख हैं। प्रधानमंत्री ने वर्ष 2018 के लाल किले की प्राचीर से राष्ट्रीय संबोधन में कहा था- हम किसानों को साथ लेकर कृषि में आधुनिकता करके कृषि के फलक को चौड़ा करके काम करना चाहते हैं। बीज से लेकर बाजार तक हम वैल्यू एडिशन करना चाहते हैं…। फलत: वर्ष 2023 के बजट में खेती किसानी को नए युग में ले जाने के उद्देश्य से डिजिटल इंफ्रास्ट्रक्चर तैयार करने का विचार आया। प्राकृतिक खेती के लिए एक करोड़ किसानों को पीएम प्रणाम योजना रखी गई। वर्ष 2024 के बजट में गांवों के लिए सहकारिता नीति, राष्ट्रीय आजीविका मिशन के अंतर्गत 3 करोड़ लखपति दीदी बनाने का लक्ष्य आदि महत्वपूर्ण योजनाएं थी, तो वर्ष 2025  के बजट में प्रधानमंत्री धन-धान्य कृषि योजना। करोड़ों मछुआरों, किसानों और डेयरी किसानों को अल्पकालिक ऋण सुविधा, राष्ट्रीय उच्च पैदावार के लिए बीज मिशन, कपास उत्पादकता मिशन, मखाना बोर्ड, ड्रोन दीदी और दलहन में आत्मनिर्भरता आदि ऐसी योजनाएं प्रस्तावित हैं जिनसे कृषि और किसान कल्याण की दिशा में आमूलचूल परिवर्तन होंगे।


      विगत दिनों भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद की वार्षिक आमसभा में केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण मंत्री ने कहा कि विकसित कृषि संकल्प अभियान में आए सुझावों के आधार पर कृषि विकास की रणनीति बनेगी। उन्होंने जन औषधि केंद्र की तरह फसल औषधि केंद्र खोलने की बात भी कही। साथ ही उन्होंने  किसानों की उपयोगिता और मांग आधारित शोध की जरूरत पर भी जोर दिया। आज हमें गंभीरता से यह समझने की जरूरत है कि भारत की वैश्विक कृषि उत्पादन में 7.5 प्रतिशत हिस्सेदारी है तो वहीं राष्ट्रीय जीडीपी में कृषि उत्पादों का 18 प्रतिशत योगदान है। ऐसे में कृषि क्षेत्र पर समग्रता और व्यापकता से विचार करने की आवश्यकता है।

यद्यपि विश्व बाजार में भारत की कृषि का निर्यात लगातार बढ़ता जा रहा है. तदुपरांत भी अनेक चुनौतियां हमारे सामने हैं। गेहूं,चावल, दलहन एवं भिन्न-भिन्न प्रकार के खाद्यान्नों का समुचित और सुरक्षित भंडारण एक बड़ी चुनौती है। प्रतिवर्ष हजारों टन खाद्यान्न सड़ जाता है अथवा कीड़ों के द्वारा नष्ट कर दिया जाता है। कई बार भिन्न-भिन्न प्रदेशों में उगाई जा रही फल एवं सब्जियां समुचित यातायात और कोल्ड स्टोरेज के अभाव में बर्बाद हो जाती हैं। आज राष्ट्रीय और वैश्विक फलक पर आम जन की खानपान की शैली बदल रही है, ऐसे में खाद्यान्न उत्पादन के साथ-साथ खाद्य प्रसंस्करण भी आवश्यक है। यह बहुत महत्वपूर्ण एवं व्यापक क्षेत्र है। वैश्विक बाजार में इसकी मांग लगातार बढ़ रही है। नीदरलैंड, मलेशिया और थाईलैंड जैसे छोटे-छोटे देश खाद्य प्रसंस्करण की भागीदारी में हमसे कई गुना आगे हैं। एक रिपोर्ट में यह सामने आया है कि खाद्य प्रसंस्करण की दर बहुत कम होने से और सप्लाई चैन की अक्षमता के कारण प्रतिवर्ष 20- 25  प्रतिशत उत्पादन बर्बाद हो जाता है। इसलिए आज कृषि क्षेत्र में व्यापक स्तर पर निजीकरण की भी आवश्यकता है।
     आज जब विकसित कृषि एक बड़े संकल्प के रूप में उभर रही है तब यह आवश्यक है कि प्रत्येक प्रदेश की जलवायु, वहां की मिट्टी एवं प्रकृति के अनुसार कृषि के लिए योजनाएं बनें। वहां की आवश्यकता के अनुसार बीज, खाद, कीटनाशक एवं भंडारण सुविधा उपलब्ध करवाई जाएं। भिन्न-भिन्न प्रकार की जानकारियों एवं जागरूकता हेतु समय-समय पर किसानों से संवाद हों। स्वयं सहायता समूहों को अधिकाधिक प्रोत्साहित किया जाए। आज यह भी आवश्यक है कि कृषि क्षेत्र से संबंधित शोध वातानुकूलित कक्षों से निकलकर जमीन तक पहुंचे। साथ ही यह भी आवश्यक है कि  कृषि क्षेत्र में शिक्षित और नवोंमेषी युवाओं की भागीदारी बढ़े। कृषि क्षेत्र के लिए बड़ी संख्या में तकनीक और उन्नत उपकरणों की आवश्यकता हेतु निजी क्षेत्र की भागीदारी को प्रोत्साहित किया जाए।


     विगत कुछ दिनों से सोशल मीडिया में कृषि मंत्री द्वारा लीची,पपीता, गन्ना और भिन्न-भिन्न प्रकार की खेती करने वाले किसानों के साथ खेत में पहुंचकर संवाद के वीडियो सामने आ रहे हैं। सकारात्मक यह है कि वे स्वयं किसानों की समस्याएं जानकर उनके तत्काल समाधान हेतु प्रयासरत हैं। ऐसे में पॉलीहाउस, कोल्ड स्टोरेज और विभिन्न उपकरणों के निर्माण में निजी क्षेत्र बड़ा सहायक हो सकता है। कृषि के साथ-साथ बांस की खेती, पशुपालन, मधुमक्खी पालन जैसी गतिविधियां भी किसानों की आर्थिक स्थिति में सुधार हेतु अत्यंत महत्वपूर्ण हैं। ज्वार, बाजरा, मक्का,रागी जैसे मोटे अनाजों की राष्ट्रीय और वैश्विक मांग लगातार बढ़ रही है। इसके लिए उन्नत बीज, खाद एवं कीटनाशकों की उपलब्धता सुनिश्चित करनी होगी।

कुछ राज्यों से अमानक एवं नकली बीज, उर्वरक व कीटनाशकों  के समाचार  एक बड़ी एवं गंभीर चुनौती है। इससे फसल की गुणवत्ता खराब होने के साथ-साथ किसानों की आय पर भी बुरा असर पड़ता है। पैदावार कम होती है, साथ ही ये किसान और मिट्टी दोनों का स्वास्थ्य बिगाड़ रहे हैं। लंबे समय से बाजार में बायोस्टिमुलेंट उत्पादों की बिक्री के भी समाचार आ रहे हैं, जो स्वास्थ्य के लिए हानिकारक हैं। अगस्त 2023 में छपे एक समाचार के अनुसार रासायनिक खाद  व कीटनाशक किसानों का स्वास्थ्य बिगाड रहे हैं। प्रबंधन अध्ययन अकादमी लखनऊ और हैदराबाद की ओर से किए गए एक सर्वे में पता चला है कि 22 प्रतिशत किसानों ने सांस की तो 40 प्रतिशत ने सिर दर्द की शिकायत की है। 16 प्रतिशत किसानों में कैंसर का प्रभाव तो 37 प्रतिशत में त्वचा रोगों की शिकायत मिली है। क्या यह चिंताजनक नहीं है?


      विकसित कृषि के संकल्प के लिए यह आवश्यक है कि यथाशीघ्र बीज, उर्वरक और कीटनाशक एक्ट बने और उसे दंड के कठोर प्रविधानों के साथ तत्काल लागू किया जाए। हाल ही में कृषि मंत्री ने कहा भी है कि अमानक बीज, खाद एवं कीटनाशक  गंभीर विषय है जिसे लेकर सरकार जल्द कड़ा कानूनी प्रविधान करेगी…।
    स्पष्टत: राष्ट्रीय और वैश्विक आवश्यकता की पूर्ति हेतु कृषि क्षेत्र में व्यापक स्तर पर सुधारों की आवश्यकता है। इसके लिए विकल्पहीन प्रतिबद्धता से योजनाएं बनाकर उन्हें शीघ्रता से लागू करना होगा। क्योंकि विकसित कृषि से ही विकसित राष्ट्र का संकल्प साकार होगा।


डा.वेदप्रकाश

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