श्रीराम जन्मभूमि पर बने भव्य राम मन्दिर

समय की मांग है कि संसद कानून बनाए

– हृदयनारायण दीक्षित

श्रीराम जन्मभूमि के विषय में उच्च न्यायालय के आदेश का देश को बेसब्री से इंतजार है। केन्द्र व राज्य की सरकार ने अतिरिक्त पुलिस बल की चर्चा व अतिरिक्त सावधानी की बातें करके आम जनता में दहशत पैदा की है। भूमि का स्वामित्व विवाद उच्च न्यायालय के निर्णयाधीन है इसलिए इस विवाद पर कोई टिप्पणी उचित नहीं होगी। लेकिन इस पूरे मसले के अन्य पहलू भी हैं। वस्तुत: सारा विवाद विदेशी आक्रमण बनाम भारत की राष्ट्रीय अस्मिता के बीच है। यहां बाबर विदेशी आक्रामकता का प्रतीक है जबकि राम और श्रीराम जन्मभूमि राष्ट्रीय अस्मिता और स्वाभिमान की अभिव्यक्ति। राम भारतीय आस्था हैं। उत्तर प्रदेश विधान परिषद में 1936-37 में ही यह स्थल हिन्दुओं को ‘वापस’ देने के सवाल पर बहस हुई थी। तत्कालीन प्रीमियर (तब मुख्यमंत्री को प्रीमियर कहते थे) पंडित गोविन्द बल्लभ पन्त ने भी बहस में हिस्सा लिया था।

मन्दिर के साक्ष्य

भारतीय विद्वानों की तुलना में यूरोपीय विद्वानों को ज्यादा सच मानने वाले मित्रों के लिए कुछ तथ्य उपयोगी होंगे। विलियम फोस्टर की लंदन से प्रकाशित (1921) किताब ‘अर्ली ट्रेवेल्स इन इण्डिया- 1583 से 1619’ (पृष्ठ 176) में यूरोपीय यात्री फिंच का किस्सा है। उसने रामगढ़ी के खण्डहरों की चर्चा करते हुए कहा है कि हिन्दुओं की मान्यता है कि यहां राम ने जन्म लिया। ऑस्ट्रिया के टाइफेन्थेलर सन् 1766-71 तक अवध में रहे। वे कहते हैं कि बाबर ने राम मन्दिर को ध्वस्त किया। इसी के स्तम्भों का प्रयोग करके मस्जिद बनाई गई। (डिस्क्रिप्शन हिस्टोरिक एंड ज्योग्राफिक डि एल.इण्डे, पृष्ठ 253-254)। ब्रिटिश सर्वेक्षणकर्ता (1838) मान्ट गुमरी मार्टिन के अनुसार, मस्जिद में इस्तेमाल स्तम्भ राम के महल से लिए गये (मार्टिन, ‘हिस्ट्री एन्टीक्विटीज टोपोग्राफी एण्ड स्टेटिस्टिक्स आफ ईस्टर्न इण्डिया, खण्ड-2 पृष्ठ 335-36)। ‘एन्साइक्लोपीडिया ब्रिटेनिका’ के तथ्यों पर सब विश्वास करते हैं। इसके 15वें संस्करण (1978, खण्ड 1, पृष्ठ 693) में भी यहां सन् 1528 से पूर्व बने एक मंदिर का हवाला है। एडवर्ड थार्नटन के अध्ययन ‘गजेटियर आफ दि टेरिटरीज अंडर दि गवर्नमेंट आफ दि ईस्ट इंण्डिया कम्पनी’ (पृष्ठ 739-40) के अनुसार, ‘बाबरी मस्जिद’ पुराने हिन्दू मंदिर के 14 खम्भों पर बनाई गई। बाल्फोर के अनुसार ‘अयोध्या की तीन मस्जिदें तीन हिन्दू मन्दिरों पर बनीं। ये मंदिर हैं जन्म स्थान, स्वर्गद्वार तथा त्रेता का ठाकुर’ (बाल्फोर, एनसाइक्लोपीडिया ऑफ इण्डिया एण्ड ऑफ ईस्टर्न एण्ड सदर्न एशिया, पृष्ठ 56)। यह भी सच्चाई है कि यूरोप के इन विद्वानों ने वोट लोभ के कारण ऐसे तथ्य नहीं लिखे।

पी. कार्नेगी ‘हिस्टोरिकल स्केच आफ फैजाबाद विद द ओल्ड कैपिटल्स-अयोध्या एण्ड फैजाबाद’ में बाबर द्वारा मन्दिर की सामग्री से मस्जिद निर्माण का वर्णन करते हैं। (वही, पृष्ठ संख्या 5-7 व 19-21) ‘गजेटियर आफ दि प्राविंस आफ अवध’ (खण्ड 1, 1877 पृष्ठ 6-7) में भी यही तथ्य दुहराए गये। ‘फैजाबाद सेटलमेंट रिपोर्ट (1880) भी इन्हीं तथ्यों को ठीक बताती है।

श्रीराम जन्मभूमि के सवाल पर मुस्लिम विद्वानों ने भी गौरतलब टिप्पणियां की हैं। मिर्जाजान अपनी किताब ‘हदीकाए शहदा’ (1856, पृष्ठ 4-7) में कहते हैं, ‘सुल्तानों ने इस्लाम के प्रचार और प्रतिष्ठा को शह दी। कुफ्र (हिन्दू विचार) को कुचला। फैजाबाद और अवध को कुफ्र से छुटकारा दिलाया। अवध राम के पिता की राजधानी थी। जिस स्थान पर मंदिर था वहां बाबर ने एक सरबलंद (ऊंची) मस्जिद बनाई।’ हाजी मोहम्मद हसन अपनी किताब ‘जियाए अख्तर’ (लखनऊ, सन् 1878, पृष्ठ 38-39) में कहते हैं, ‘अलहिजरी 923 में राजा राम चन्दर के महलसराय तथा सीता रसोई को ध्वस्त करके दिल्ली के बादशाह के हुक्म पर बनाई गई मस्जिद (और अन्य मस्जिदों) में दरारें पड़ गयी थीं।’ शेख मोहम्मद अजमत अली काकोरवी ने ‘तारीखे अवध’ व ‘मुरक्काए खुसरवी’ (1869) में भी मंदिर की जगह ‘मस्जिद’ बनाने का किस्सा दर्ज किया। मौलवी अब्दुल करीम ने ‘गुमगश्ते हालाते अयोध्या अवध’ (1885) में बताया कि ‘राम के जन्म स्थान व रसोई घर की जगह बाबर ने एक अजीम मस्जिद बनवाई।’ कमालुद्दीन हुसनी अल हुसैनी अल मशाहदी ने ‘कैसरूल तवारीख’ (लखनऊ, सन् 1896 खण्ड 2, पृष्ठ 100-112) में यही बातें कहीं। अल्लामा मुहम्मद नजमुलगनी खान रामपुरी ने ‘तारीखे अवध’ (1909, खण्ड 2, पृष्ठ 570-575) में वही सब बातें लिखीं। इस्लामी परम्परा में अन्तरराष्ट्रीय ख्याति के विद्वान मौ. अबुल हसन नदवी उर्फ अली मियां के पिता मौ. अब्दुलहई ने ‘हिन्दुस्तान इस्लामी अहद में’ नामक ग्रंथ अरबी में लिखा। अली मियां ने इसका उर्दू अनुवाद (1973) किया। इस किताब के ‘हिन्दुस्तान की मस्जिदें’ शीर्षक अध्याय में ‘बाबरी मस्जिद’ के बारे में कहा गया कि ‘इसका निर्माण बाबर ने अयोध्या में किया, जिसे हिन्दू रामचन्द्र जी का जन्मस्थान कहते हैं, बिल्कुल उसी स्थान पर बाबर ने यह मस्जिद बनाई।’

लोकजीवन का विश्वास

सारी दुनिया के हिन्दू श्रीराम जन्मभूमि पर श्रध्दा रखते हैं। आस्था लोकजीवन का विश्वास होती है। लोकविश्वास तथ्य देखता है। तर्क उठाता है। प्रतितर्क करता है। तब आस्था जन्म लेती है। श्रीराम जन्मभूमि के प्रति भारत की अक्षुण्ण श्रध्दा है। श्रध्दालुओं को राजनीतिक बहसें अखरती हैं। कुतर्क उन्हें आहत करते हैं। इतिहास के विद्वान कनिंघम ‘लखनऊ गजेटियर’ में लिखते हैं- ‘अयोध्या में श्रीराम जन्मभूमि मंदिर तोड़े जाते समय हिन्दुओं ने अपनी जान की बाजी लगा दी। इस लड़ाई में 1 लाख 74 हजार हिन्दुओं की लाशें बिछ जाने के बाद ही मीर बांकी तोपों के जरिए मंदिर को क्षति पहुंचा सका।’ आईने अकबरी कहती है कि ‘अयोध्या में राम जन्मभूमि की वापसी के लिए हिन्दुओं ने 20 हमले किये।’ औरंगजेब के ‘आलमगीरनामा’ में जिक्र आया है कि ‘मुतवातिर 4 साल तक खामोश रहने के बाद रमजान की सातवीं तारीख को शाही फौज ने फिर अयोध्या की जन्मभूमि पर हमला किया। 10 हजार हिन्दू मारे गये। लड़ाई चलती रही। अंग्रेजी राज में सन् 1934 में भी यहां संघर्ष हुआ। एक सैकड़ा हिन्दू गिरफ्तार हुए।’

राम वैश्विक अभिव्यक्ति

श्रीराम भारत का इतिहास हैं, आस्था भी हैं। उनकी कथाएं चीन, तिब्बत, जापान, लाओस, मलेशिया, कम्बोडिया, श्रीलंका, रूस, फिलीपीन्स, थाई देश और दुनिया के सबसे बड़े मुस्लिम देश इण्डोनेशिया तक गाई गयीं। चीन के ‘लिऊ ताओत्व किंग’ में वाल्मीकि रामायण का कथानक है। चीन के ही ‘ताओ पाओ त्वांड. किंग’ में राजा दशरथ मौजूद हैं। चीनी उपन्यासकार ऊचेंग एन की ‘द मंकी हृषि ऊची’ वस्तुत: हनुमान की कथा है। इण्डोनेशिया की ‘ककविन रामायण’ थाई देश की ‘राम कियेन’ और लाओस की ‘फालाम’ तथा ‘पोम्मचाक’ जैसी रचनाएं राम को अंतरराष्ट्रीय आधार देती हैं। न्यायालय के निर्देश पर अयोध्या में उत्खनन कार्य हुआ था। अब तक मिली चीजें वहां मंदिर सिध्द करने को काफी हैं। सर वी.एस. नायपॉल का भी यह कथन प्रासंगिक है कि ‘मैं नहीं समझ पाता कि मंदिर निर्माण का विरोध क्यों किया जा रहा है? विश्व भर में बुध्दिजीवियों को बहस शुरू करनी चाहिये कि क्यों मुस्लिम समाज गैर मुस्लिमों के साथ समानता का भाव अपनाकर नहीं रह पाता।’ समय की मांग है कि इस प्रश्न पर संसद कानून बनाए और श्रीराम जन्मभूमि पर भव्य मन्दिर निर्माण का मार्ग प्रशस्त करे।

3 COMMENTS

  1. आदरणीय दीक्षित जी
    आप जैसे बुजर्ग अनुभवी विद्द्वान को इस मंदिर मस्जिद विबाद के पीछे की स्वार्थान्धता का बोध नहीं है ?ताजुब है .बात मंदिर की अकेले की होती तो ७० साल नहीं लगे होते .दुनिया में ऐसा कोई महा मूरख ही होगा जो भगवान श्रीराम की एतिहासिकता पर अंगुली उठाएगा .और कोई मानवता का शत्रु ही होगा जो अयोध्या में उनके मंदिर को मान्य न करे .आप भली भांति जानते हैं की -सभी धर्मो की ,समाजों की समानता ,बंधुत्व ,भाईचारा कायम रखने की संकल्पं शक्ति से ही सेकड़ों वर्षों की गुलामी से भारत आजाद हुआ था ab kuchh log idhar के और kuchh log udhar के yadi ithas की bidmnaon से vartmaan को lahuluhan karna chahen तो akle sarkar ya sansad kya kar paayegi ?.

  2. क्यू ‘माहौल’ बनाने में लगे हुए हैं दीक्षित जी…फिलहाल इन तथ्यों का कोई मतलब नहीं है. बस अब चार दिन शेष है फैसले में. तब-तक इंतज़ार कर लेना ठीक है. फैसले के बाद ही कोई बात की जाय अब यही यथेष्ट होगा. वैसे इसमें कोई दो-मत नहीं कि अधिकाँश भारतीय की यही इच्छा है कि अयोध्या में भव्य राम मंदिर का निर्माण हो.

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