– डा० कुलदीप चन्द अग्निहोत्री
कांग्रेस और आम्बेडकर का वैचारिक स्तर पर आपस में क्या सम्बध है , इसको लेकर पिछले कुछ दिनों से चर्चा तेज होती जा रही है । दरअसल कुछ दिन पहले गृहमंत्री अमित शाह ने कहा था कि कुछ लोग दिन रात आम्बेडकर की माला जपते रहते हैं , यदि वे उतनी माला अपने इष्ट देव की जपते तो शायद तर जाते । तर जाते यानि उनकी वह इच्छा पूरी हो जाती जिसके लिए वह माला जप रहे हैं । भारतीय राजनीति को गहराई से देखने वाले यह समझ ही सकते हैं कि आजकल आम्बेडकर की माला जपने में सबसे आगे कांग्रेस पार्टी और आम आदमी पार्टी ही है । लेकिन दोनों का ही आम्बेडकर के चिन्तन से कुछ लेना देना नहीं है । सबसे पहले कांग्रेस की ही बात की जाए । कॉंग्रेस के सबसे बडे नेता पंडित जवाहर लाल नेहरु , जिसके साथ आज का सोनिया गान्धी परिवार प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से अपना सम्बध जोड़ रहा है , ने 26 जनवरी 1946 को राजकुमारी अमृतकौर को एक पत्र में लिखा था कि आम्बेडकर तो ब्रिटिश सरकार का आदमी था । नेहरु का बस चलता तो शायद आम्बेडकर संविधान सभा के सदस्य भी न हो पाते । यह तो पश्चिमी बंगाल के कुछ लोगों का प्रयास था कि आम्बेडकर संविधान सभा में पहुँच पाए । सभी जानते हैं कि नेहरू किसी यूरोप के गोरे को भारतीय संविधान लिखने का ‘महान दायित्व’ देने वाले थे । महात्मा गान्धी जी की दख़लन्दाज़ी से आम्बेडकर को प्रारूप समिति का अध्यक्ष बनाया गया था । लोक सभा के पहले चुनाव से पूर्व जो मंत्रिमंडल नेहरू के नेतृत्व में बना था , उसका कारण कांग्रेस की सदाशयता नहीं थी बल्कि लोक सभा के गठन से पूर्व किसी एक पार्टी का मंत्रिमंडल नहीं होना चाहिए बल्कि राष्ट्रीय मंत्रिमंडल होना चाहिए , यह सैद्धान्तिक निर्णय था । इस मंत्रिमंडल में हिन्दु महासभा के अध्यक्ष डा० श्यामा प्रसाद मुखर्जी , अकाली दल के बलदेव सिंह भी थे । कांग्रेस का सारा ज़ोर इन को किस तरह से मंत्रिमंडल से निकाला जाए , इन षड्यन्त्रों में लगा रहता था । कांग्रेस ने आम्बेडकर को अपमानित करने में हर तरीक़ा इस्तेमाल किया ।
आम्बेडकर ने कानून मंत्री की हैसियत से संस्कृत ग्रन्थों का गहन अध्ययन कर हिन्दु कोड बिल तैयार किया था । उसको लेकर बहुत विवाद हुआ था । आम्बेडकर का कहना था कि इन चार बिलों के सभी प्रावधान भारत के प्राचीन ग्रन्थों में से ही लिए गए हैं । वे उन ग्रन्थों के उद्धरण भी बता रहे थे । वैचारिक स्तर पर कांग्रेस भी हिन्दु कोड बिल से सहमत थी । लेकिन कांग्रेस ने उसे संविधान सभा में पारित नहीं होने दिया । तकनीकी आधारों पर उसे लटकाए रखा । इसी विवाद के चलते आम्बेडकर ने विधि मंत्री के पद से त्यागपत्र दे दिया था । लेकिन आम्बेडकर के हटने के बाद कांग्रेस ने इसे पहली लोक सभा में ही पारित करवा दिया । उसका मूल कारण एक ही था कि कि हिन्दु कोड बिल का श्रेय कहीं आम्बेडकर को न मिल जाए । इसका श्रेय नेहरु स्वयं लेना चाहते थे । आम्बेडकर ने नेहरु के व्यवहार एवं समाज विरोधी नीतियों के चलते और उनके ईषार्लु स्वभाव से दुखी होकर उनके मंत्रिमंडल से त्याग पत्र दे दिया था , यह भारतीय इतिहास का सामान्य छात्र भी जानता है । लेकिन पंडित नेहरु इससे इतने प्रसन्न थे कि वे इसकी सूचना हज़ारों मील दूर लंदन में लार्ड माऊंटबेटन की पत्नी को एक लम्बी चिट्ठी लिख कर देते हैं । वे सूचना मात्र देते तब भी कोई बात नहीं थी । नेहरु लेडी माऊंटबेटन को शेख बघारते हुए लिखते हैं कि मैंने उसे अपने मंत्रिमंडल से निकाल दिया है । कांग्रेस इतना तो जानती है कि ‘त्याग पत्र देने’ और ‘निकालने’ में बहुत फ़र्क़ होता है । जाहिर है यह केवल आम्बेडकर को अपमानित करने के लिए ही किया जा रहा था । इतना ही नहीं , जब आम्बेडकर त्यागपत्र का कारण बताना चाहते थे तो कांग्रेस के सबसे बडे नेता जवाहर लाल नेहरु ने ऐसा नहीं होने दिया । मजबूरी में आम्बेडकर को त्यागपत्र के कारणों का ख़ुलासा करने के लिए दिल्ली में प्रैस कान्फ्रेंस करनी पड़ी । लेकिन इससे एक प्रश्न और पैदा होता है जो त्यागपत्र ले भी ज्यादा महत्वपूर्ण है । कि आख़िर नेहरू देश की भीतरी राजनीति की ख़बरें माऊंटबेटन की पत्नी को क्यों दे रहे थे ? अंग्रेज़ों के आदमी आख़िर कौन थे ?
आम्बेडकर के प्रति कांग्रेस का इतना विद्वेष था कि कांग्रेस ने पक्का इंतज़ाम कर रखा था कि किसी तरीक़े से आम्बेडकर देश की पहली लोक सभा में जीत कर न आ सकें । और कांग्रेस ने सचमुच आम्बेडकर को पहले लोक सभा चुनाव में हरा कर ही दम लिया ।
आम्बेडकर अपने अंतिम दिनों में ‘बुद्ध और उनका धर्म’ किताब लिख रहे थे । उन्होंने पंडित नेहरु को पत्र लिखा कि यदि सरकार पुस्तक प्रकाशित होने के बाद इसकी कुछ प्रतियाँ ख़रीद लेगी तो पुस्तक के प्रसार में सहायता होगी और आर्थिक सहायता भी हो जाएगी । जब सरकार अपने विज्ञापनों के लिए लाखों रूपया बर्बाद कर रही थी , तब नेहरु कुछ हज़ार रुपए की आम्बेडकर की पुस्तक को ख़रीदने के लिए तैयार नहीं थे । कांग्रेस ने आम्बेडकर के साथ किस प्रकार का व्यवहार किया , इसे जानने के लिए आम्बेडकर की पत्नी डा० सविता आम्बेडकर की आत्मकथा जरुर पढ़नी चाहिए ।
आम्बेडकर का कांग्रेस से राजनैतिक विरोध हीं नहीं था बल्कि उसके विरोध की जड़ दोनों का सैद्धान्तिक विरोध था । ब्रिटिश इतिहासकारों ने भारत में स्वतंत्रता आन्दोलन को तोड़ने और भारत की अलग अलग विरादरियों में फूट डालने के लिए ‘आर्य आक्रमण सिद्धान्त’ कल्पना की थी । पंडित नेहरु ने इस सिद्धान्त को हाथों हाथ उठा लिया और उसके प्रसार के लिए अपनी किताबों में उसका ज़िक्र करना भी शुरू कर दिया । इतना ही नहीं उन्होंने अपनी बेटी इन्दिरा को भी पत्र लिख लिख कर यह सिद्धान्त पढ़ाना शुरु कर दिया । बाबा साहिब भीमराव रामजी आम्बेडकर ने इस सिद्धान्त का विरोध ही नहीं किया बल्कि ब्रिटिश साम्राज्यवादियों के इस षड्यन्त्र का पर्दाफ़ाश करने के लिए अलग से एक पुस्तक लिखी । जबकि राजनीतिक नफ़ा नुक़सान की बात की जाए तो आम्बेडकर के लिए ब्रिटिश साम्राज्यवादियें का यह सिद्धान्त लाभदायक था । लेकिन आम्बेडकर अपने राजनैतिक नफ़ा नुक़सान के लिए राष्ट्रीय एकता को खंडित करने के लिए तैयार नहीं थे ।
आम्बेडकर का एक दूसरे सैद्धान्तिक धरातल पर भी कांग्रेस से घनघोर विरोध था । कांग्रेस ने देश में मुस्लिम तुष्टीकरण का रास्ता पकड़ लिया था । आम्बेडकर जानते थे कि इससे अन्तत: देश को नुक़सान होगा । दरअसल उस वक़्त देश में मुसलमान का अभिप्राय ATM(Arab+Turk+Mughal) मूल के मुसलमानों से ही था जिनकी जनसंख्या देश में पाँच प्रतिशत से भी कम थी । हिन्दुस्तान के देशी मुसलमान तो एटीएम ने एक प्रकार से बन्धुआ बनाकर रखे हुए थे । लेकिन कांग्रेस अरब मूल के सैयद मौलाना आज़ाद और अली बन्धुओं को आगे कर देसी मुसलमानों को उनका नेतृत्व स्वीकारने के लिए विवश कर रही थी । कांग्रेस को शायद सत्ता प्राप्ति की लालच थी । आम्बेडकर ने एक जगह इसका ज़िक्र भी किया है । अंग्रेज़ शासक जल्दी ही एटीएम की महत्ता को समझ गए । उन्होंने जल्दी ही एटीएम को सत्ता का झुनझुना दिखा कर अपने खेमे में शामिल कर लिया । इतना ही नहीं रणनीति में अंग्रेज़ तो कांग्रेस के भी बाप सिद्ध हुए । उन्होंने एटीएम को मना लिया कि वे कुछ देर के लिए आगे की बजाए पीछे चलें ताकि नेतृत्व के लिए किसी देसी मुसलमान को तैयार किया जा सके । मोहम्मद अली जिन्ना इस रणनीति में से तैयार हुआ था । पहले जिन्ना कांग्रेस के साथ ही था लेकिन जब उसने देखा कि कांग्रेस , देसी मुसलमान जिनकी संख्या 95% से भी अधिक है , की अवहेलना करके दो तीन प्रतिशत विदेशी एटीएम मूल के मुसलमानों के हाथों में खेल रही है और उन्हीं की सलाह पर मुसलमान तुष्टीकरण की नीतियाँ बना रही है तो उसने कांग्रेस का पल्ला छोड दिया । (जिन्ना ख़िलाफ़त आन्दोलन के विरोधी थे जो कांग्रेस ने एटीएम के कहने पर शुरु किया था) । आम्बेडकर ने अपने स्तर पर किसी तरह जिन्ना को देश को तोड़ने की ब्रिटिश रणनीति का हिस्सा बनने से रोकने की कोशिश की । आम्बेडकर का प्रस्ताव आम्बेडकर की पार्टी और जिन्ना की पार्टी द्वारा संयुक्त रूप से चुनाव लडने का था । लेकिन आम्बेडकर की शर्त यही थी कि जिन्ना दो राष्ट्र के सिद्धान्त की बात को अस्वीकार करे । जब जिन्ना ने यह शर्त स्वीकार नहीं कि तो आम्बेडकर ने उसकी पार्टी से किसी भी तरह का गठबन्धन करने से भी इन्कार कर दिया । कांग्रेस की इसी तुष्टीकरण की नीति ने भारत के देसी मुसलमानों को एटीएम के साथ चलने के लिए विवश कर दिया था । कांग्रेस एटीएम के षड्यन्त्रों का इस हद तक शिकार हो गई कि उसने देसी मुसलमानों के बडे नेता खान अब्दुल गफ्फार खान की पीठ में भी छुरा घोंपने में संकोच नहीं किया जो पूरी आयु कांग्रेस के साथ मिल कर साम्राज्यवाद से लड़ता रहा । आम्बेडकर मानते थे कि कांग्रेस भीतर से अनुसूचित जातियों के खिलाफ है । उनका आरोप था कि कांग्रेस मुसलमानों को तो कोरे चाक पर हस्ताक्षर कर सब कुछ देने के लिए तैयार रहती है लेकिन जब दलित समाज की बात आती है तो कांग्रेस के हाथ काँपने लगते हैं । आम्बेडकर व नेहरु के टकराव एक तीसरे धरातल पर था । आम्बेडकर का कहना था कि जब मजहब के आधार पर देश रा बँटवारा करने का सिद्धान्त कांग्रेस के एजेंडा में आ ही गया है तो सरकार को मजहब के आधार पर आबादी गो भी स्थानान्तरित भी कर देना चाहिए । लेकिन आम्बेडकर का यह सुझाव सुन कर नेहरु इस प्रकार चौंकते थे जैसे सांप पर पैर पड गया हो ।
और आज कांग्रेस उसी आम्बेडकर की दिन रात माला जप रही है जिस आम्बेडकर का विरोध उसने हर धरातल यानि व्यक्तिगत , राजनैतिक व सैद्धान्तिक पर किया । इसलिए अमित शाह ने ऐसी कौन सी ग़लत बात कह दी जिसके चलते कांग्रेस परिवार में सोनिया -राहुल-प्रियंका तीनों ग़ुस्से में हैं । ग़ुस्से में सबसे पहले सत्य दिखाई देना बन्द होता है । इसलिए वे सबसे पहले किसी ‘आम्बेडकर अध्ययन केन्द्र’ के नियमित सदस्य बनें । आम्बेडकर को पढ़ने के बाद यदि उनको लगे कि आम्बेडकर ठीक थे तो वे आम्बेडकर का ग़लत विरोध करने व उन्हें मानसिक कष्ट पहुँचाने के लिए सार्वजनिक प्रायश्चित करें । उसके बाद कांग्रेस की ग़लत नीतियों को आम्बेडकर चिन्तन की पृष्ठभूमि में दुरुस्त करें । क्या कांग्रेस इसके लिए तैयार है ? दरअसल अमित शाह ने आम्बेडकर का अपमान नहीं किया है बल्कि कांग्रेस को आम्बेडकर आईना दिखाया है , जिसमें कांग्रेस ने अपना असली चेहरा देख लिया है , उस चेहरे को देश न देख सके इसलिए कांग्रेस हर रोज़ आम्बेडकर की माला जप रही है । जिसने दर्द दिया है वही दवा देगा । आम्बेडकर ने केवल कांग्रेस को आईना दिखाया है । कांग्रेस को अपने इतिहास में झाँक कर अपना इष्टदेव ढूँढ लेना चाहिए । लेकिन इसमें शायद एक वाधा है । क्या आज की कांग्रेस यानि एसआरपी (सोनिया गान्धी+राहुल गान्धी+प्रियंका बाड्रा) का भारत की कांग्रेस से कोई ऐतिहासिक सम्बध है भी या नहीं ?