संघ से डरने और डराने वाले

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संघ प्रमुख ने निकट से संघ को जानने-समझने का आह्वान किया

28 फरवरी को भोपाल में ‘हिन्दू समागम’ का आयोजन हुआ। चूंकि यह राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का आयोजन था इसलिए कार्यक्रम के पहले और बाद में काफी चचाएं हुई। चर्चा होना लाजमी भी है, आखिर दुनिया के सबसे बड़े गैर-सरकारी संगठन का कार्यक्रम था। हिन्दू समागम में संघ प्रमुख डॉ. मोहनराव भागवत का उद्बोधन हुआ। कार्यक्रम की अध्यक्षता समाजवादी पृष्ठभूमि से संबंध रखने वाले न्यायमूर्ति आरडी शुक्ला ने की। श्री शुक्ला ईमानदार हैं इसलिए वे संघ के निकट आकर संघ को जानना-समझना चाहते हैं। संघ प्रमुख ने भी अपने भाषण में यही आह्वान किया। उन्होंने कहा संघ आज की जरूरत है। इसे निकट आकर जानिए-समझिए। अनुभूति के बिना संघ समझा नहीं जा सकेगा। लेकिन कुछ जिद्दी लोग हैं जो संघ को जानना-समझना नहीं चाहते। वे सिर्फ आलोचक बने रहना चाहते हैं। संघ की उलझी हुई और विद्रूप छवि बनाना चाहते हैं। यही छवि लोगों को दिखाना चाहते हैं। ऐसे ही लोगों ने संघ का डरावना चेहरा निर्मित किया है। वे चाहते हैं लोग संघ से डरें, भयभीत हों ताकि संघ का विस्तार रूके। देश और दुनिया में संघ से डरने वालों की तादाद कम है, लेकिन डराने वाले ज्यादा हैं। संघ इन डराने वालों को जानता है। इसीलिए संघ प्रमुख ने भोपाल के अपने दौरे में संघ विरोधियों को भी संघ में आकर संघ को जानने का आह्वान किया।

संघ प्रमुख भोपाल में भाषण देकर चले गए। लेकिन अपने पीछे चर्चाएंं छोड़ गए। कुछ चर्चा तो सरकारी कार्यक्रम स्थल लाल परेड मैदान के कारण हुई, तो कुछ एक राजनैतिक दल भाजपा और उसके जनप्रतिनिधि व सरकार के मंत्रियों की उपस्थिति के कारण। सबसे अधिक चर्चा डॉ. भागवत के उस वक्तव्य की हुई जिसमें उन्होंने कहा कि सभी भारतीय हिन्दू हैं और सभी हिन्दू भारतीयं। इसके साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि जो हिन्दू नहीं वह भारतीय नहीं हो सकता। संघ प्रमुख के इस वक्तव्य की चर्चा और आलोचना करने वालों ने अपने-अपने संदर्भों को आधार बनायां। कार्यक्रम के दूसरे ही दिन इसाई समुदाय के नेता का आलोचनात्मक बयान छपा। बाद में इक्के-दुक्के सेक्यूलरिस्ट लोगों ने अपने-अपने हिसाब से संघ प्रमुख के वक्तव्य की आलोचना की।

जैसा कि कई बार और कई स्थानों पर होता है, इस बार भी और भोपाल में भी हुआ। संघ प्रमुख की बातों की आलोचना के लिए तरह-तरह के आधार और तर्क ढूंढे गए। भारत के संविधान से लेकर सरस्वती शिशु मंदिर विद्यालय के साहित्य तक का उल्लेख किया गया। कुछ संघ साहित्य के उद्धरणों का जिक्र करते हुए हिन्दुत्व, नागरिकता और राष्ट्रीयता के बारे में संघ को कटघरे में खड़ा करने की कोशिश की गई। संघ आलोचकों, विरोधियों और विचारकों की अपनी स्वतंत्रता है, जैसे संघ के सर्मथकों, शुभचिंतकों और सद्भावियों की है। विरोधियों का मुह तो बंद किया नहीं जा सकता, करना भी नहीं चाहिए। संघ ने तो अपने विरोधियों तक को अपने घर बुलाया। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को यह लगता होगा कि उसका विरोध अनजाने में और अज्ञानतावश हो रहा होगा। इसलिए संघ स्वयं अपने बारे में अज्ञान और निरक्षरता दूर करने की भरसक कोशिश कर रहा है। डॉ. मोहनराव भागवत का भोपाल प्रवास इस निमित्त भी था। संघ के बारे में अनेक लोगों की अज्ञानता और निरक्षरता 28 फरवरी के दिन दूर हुई होगी। कार्यक्रम की व्यापकता और उसके प्रभाव को देखकर ऐसा कहा ही जा सकता है। लेकिन कुछ लोग न सिर्फ अज्ञानी और निरक्षर ही बने रहना चाहते हैं बल्कि अपनी इस अज्ञानता और निरक्षता को और अधिक पुख्ता करते हुए संघ के बारे में और अधिक गलतफहमी पैदा करना चाहते हैं।

संघ के बारे में वहीं रटी-रटाई बातें। संघ को महिला विरोधी, दलित विरोधी, मुस्लिम और इसाई विरोधी बताने की कवायद। भारतीय संविधान का हवाला देकर कहा गया कि संघ प्रमुख हिन्दू और भारतीय की परिभाषा करते हुए संविधान की व्याख्याओं को नजरंदाज कर गए। अन्य देशों के हिन्दुओं का हवाला देकर कहा गया कि तब तो हिन्दू होने के कारण वे भी भारतीय हो जायेंगे। संघ प्रमुख ने अपने भाषण में कहा था कि चर्च हिन्दू समाज को बांट रहा है, तो संघ से सवाल पूछा गया कि क्या चर्च के अनुयायी जो कि इसाई हैं उन्हें संघ हिन्दू अथवा भारतीय नहीं मानता? एक सवाल यह भी पूछा गया कि अगर संघ हर भारतीय को हिन्दू मानता है तो फिर अपने संकल्प में मंदिर के साथ मस्जिद, चर्च और गुरुद्वारे आदि की रक्षा के लिए प्रतिबद्ध क्यों नहीं होता? इस तरह के अनेक सवाल और इन सवालों के बहाने कई तरह की शंकाएं-दुःशंकाएं प्रकट की गई। इन सवालों को बेतूका कह कर टाला नहीं जा सकता। लेकिन सभी सवालों का एक साथ जवाब देना भी मुश्किल है।

सबसे पहली बात तो यह कि डॉ. मोहनराव भागवत ने अपना भाषण किसी संवैधानिक दायित्व या संविधान के परिपेक्ष्य में नहीं दिया था। इसलिए संविधान को कसौटी बनाकर उनकी बातों की व्याख्या बेइमानी होगी। डॉ. भागवत संघ के संवैधानिक प्रमुख हैं। निश्चित ही उन्होंने अपना भाषण एक हिन्दू, एक भारतीय नागरिक और एक संगठन के प्रमुख के नाते दिया। उसे उसी परिपेक्ष्य और संदर्भ में देखा, सुना और व्याख्यायित किया जाना उचित होगा।

एक सुनियोजित पद्धति और दीर्घ योजना के तहत संघ की शाखाओं को स्त्री-पुरूष के लिए अलग-अलग रखा गया है। संघ के बारे में जो अज्ञान से ग्रस्त हैं उन्हे मालूम हो कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की तरह राष्ट्र सेविका समिति महिलाओं के बीच कार्यरत है। संघ की शाखाओं में महिलाओं की अनुपस्थिति वर्जना नहीं पद्धति के कारण है। अगर स्त्री-वर्जना ही होती तो हिन्दू समागम में हजारों की संख्या में महिलाओं की उपस्थिति न होती। संघ के बारे में अज्ञानता का एक कारण यह भी है कि संघ नाम नहीं लेता, काम करता है। इसीलिए संघ ने दलितों, जनजातियों और पिछड़े वर्गों के लिए बिना नाम लिए अनेक प्रभावी काम किए। गांधी, आंबेडकर से लेकर अनेक आधुनिक नेता इसके साक्षी रहे हैं।

संघ सिर्फ मंदिरों की रक्षा का संकल्प लेता है। क्योंकि गुरुद्वारों को संघ मंदिरों से अलग नहीं मानता। लेकिन चर्च, मदरसे और मस्जिदों की रक्षा का संकल्प संघ नहीं लेता। इसके अनेक कारण हो सकते हैं। संघ के बारे में कम ज्ञान रखने वाले भी यह बता सकते हैं कि संघ वैसे किसी व्यक्ति, स्थल या संगठन की रक्षा के लिए संकल्पित नहीं होता जहां भारतीयता, हिन्दू और राष्ट्र के विरोधी गतिविधियों को बढ़ावा दिया जाता है। इसाई सिर्फ वही नहीं हैं जो चर्च के अनुयायी हैं। ईसा मसीह की शिक्षाओं और उपदेशों को मानने और उसमें अपनी आस्था रखने वाला प्रत्येक व्यक्ति इसाई हो सकता है। लेकिन कौन नहीं जानता कि भारत में चर्च हिन्दुओं में विभेद और वैमनस्य पैदा कर एक राष्ट्रीय समाज को अ-राष्ट्रीय बना रहा है। चर्च-मिशनरी, और मस्जिद-मदरसे सिर्फ अपने मत का प्रचार नहीं कर रहे बल्कि विदेशी धन-बल से भारतीय और राष्ट्रीय हितों के विरूद्ध कार्य कर रहे हैं। क्या किसी मंदिर में चर्च और मस्जिद की तरह मतान्तरण होता है या वहां अ-राष्ट्रीयता की शिक्षा और प्रशिक्षण दिया जाता है? संघ ही क्यों कोई भी राष्ट्रवादी, हिन्दू या भारतीय अपने पैरों पर कुल्हाड़ी नहीं मारेगा। हां जिस दिन यह भरोसा हो जाये कि भारत के मस्जिद-मदरसे, चर्च-मिशनरी सब भारतीयता, हिन्दुत्व और राष्ट्रवाद के पोषक बनेंगे तब निश्चित ही प्रत्येक हिन्दू और संघ का स्वयंसेवक मंदिरों की तरह इनके संरक्षण के लिए भी आगे आयेगा। हिन्दुत्व एक जीवन पद्धति है। हिन्दुत्व एक धर्म है जो विभिन्न मंत-पंथों को अपने में समेटे विविधता में एकता का सूत्र है। यही सूत्र भारतीय राष्ट्रीयता है। इसे संघ मानता है। संघ विरोधी भी दबी जुबान यही बात कहते हैं। आज नहीं तो कल वे स्पष्ट और खुलेआम यह स्वीकारेंगे। आज नहीं तो कल उनकी अज्ञानता और निरक्षरता दूर होगी, संघ को इसका पूरा भरोसा है।

-अनिल सौमित्र

5 COMMENTS

  1. ॥आजका जयचंद है मुद्रित(Print Media) माध्यम॥
    बहुसंख्य भारतीय जन, आजकल “प्रसार माध्यमोंसे” मिली जानकारीके आधारपर प्रभावित होकर अपना मत बनाते हैं; और प्रसार माध्यमका बहुतांश बिका हुआ है। इस् लिए, समाचार पत्र भी जानबूझकर समाचारोंको मोडकर, तोडकर, अस्पष्ट और संदिग्ध बनाकर प्रस्तुत कर रहें है। क्यों कि, समाचार पत्र भी परराष्ट्रीय (राष्ट्र विरोधी) धनसे खरीदे गये हैं। अंग्रेजी समाचारपत्रोंके मालिकोंकी जानकारी तो आप इंटर्नेटपर देख सकते हैं, आंखे खुल जाएगी। केवल प्रयास करके देखिए। (१)इस लिए संघ/राष्ट्र के पक्षमें समाचार, विरोधात्मक टिप्पणी/मोड बिना, रखा नहीं जाता। (२)और, यदि स्पष्ट रूपसे राष्ट्र हितमें समाचार रखा गया, तो उसे तुरंत संघका (propaganda) विज्ञापन घोषित किया जाता है। (३) सारे संत, स्वामी, योगी, साधुओंका भी,(परदेशमें भी) एक एक करके, उनका (Character Assassination) चारित्र्य हनन हो रहा है, और भी होता रहेगा। यह षड्यंत्र विदेशी शक्तियोंका रचाहुआ दिखायी देता है, प्रमाणित किया जा सकता है। सबसे बडा भय उन्हे हिंदुत्वसे माना जाता है। क्यों कि, परदेशमें भी हिंदु योग, ध्यान, और आजकल शिक्षित हिंदु वर्गका वर्चस्व बढ रहा है। जो हिंदू बाहर वर्चस्व बढा रहा है, उससे विपरित भारतमें हिंदु विरोधी पार्टी, और उस पार्टीके, बौने, व्यक्तिगत लाभ (?)से प्रेरित शासक शासनमें, होनेसे भारतमें, उसी हिंदुका प्रभाव नगण्य है।और उपरसे बिका हुआ मिडिया?
    मोहनजी सही कहते हैं। पर सचमे सोए हुए को आप जगा सकते हैं।ढोंगीको, या जो सोनेका नाटक कर रहा हो, उसे जगाया नही जा सकता।
    संघके पास भी असीमित शक्ति/धन नहीं। फिर संघ कार्यसे ही जाना जाता है। उसका स्वयंसेवक मूल रूपसे राष्ट्रभक्तिसे, त्याग भावसे प्रेरित, और युवा भी है। संघ “धर्मयुद्ध” में विश्वास कर सकता है, जिहादमें नही कर सकता। यह हिंदुकी भी सीमा हैं। पर याद रखिए आजके “जय चंद”को, कल पछताना ना पडे?

  2. संघ को एक बहुत ही जबरदस्त थिंक टेंक का निर्माण करना होगा. दुनिया के सर्वश्रेष्ठ लोगों को अपने मैं शामिल करना होगा. संघ के इरादे मजबूत हैं, दुनिया को संघ की विचारधारा की जरूरत है. हर हिन्दू को अपना हर संभव सहयोग संघ को मजबूत करने मैं देना चाहिए. संघ को सबकी एकजुटता के लिए बहुत ही वृहद स्तर पर काम करना होगा. लोग संघ की विचारधारा अपनाने के लिए बिलकुल तैयार हैं, बस संघ को आगे बढकर उनका हाथ थामना होगा.

  3. कोई भी धर्म हो वह कभी अनाचार या अत्याचार की वाणी नहीं कहता सभी धर्मों में नर सेवा को ही नारायण सेवा मन गया है लेकिन कुछ धर्म के ठेकेदारों ने ये प्रत्येक धर्म की परिभाषा ही बदल दी जो किसी भी राष्ट्र के लिए घातक है खासकर भारत में ! ऐसे में डॉ. भगवत जी के अभिभाषण को नकारात्मक लेना अनुचित है ! क्योती हिन्दू कोई ! धर्म नहीं यह जीवन जीने की वयवस्था है जिसे हमारे ऋषि महात्माओं गरंथों में ने प्रतिपादित किया है! डॉ. भागवत जी का आवाहन सही है जिन लोगों को शंशय है वो इसे करीब से जानने के लिए इसकी कार्य प्रणाली को समझे तो बेहतर होगा!

  4. बहुत ही सही लिखा है आपने. संघ के बारे में बहुत सारी ग़लतफ़हमियाँ फैली या फैलाई हुई हैं. पर मेरे ख़याल से संघ विरोधियों के साथ साथ संघ की भी गलती है. संघ अपने कार्यों का प्रचार न करैं पर कम से कम जनता को सच्चाई से तो अवगत करवाए . संघ के सभी प्रकल्पों के बारे में तो संघ समर्थक भी पूरी तरह नहीं जानते .
    आज आम जन संघ को भाजपा से ही जानता है क्यों?
    इस पर संघ को विचार करना चाहिए

    – सौरभ शर्मा

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