गाँव खुशहाल हों तो देश की अर्थव्यवस्था सुधरे

– मुलखराज विरमानी

स्वयंसेवी संस्थाएं और जागरूक जनता इस बात से चिंतित है कि हमारे गाँव, 63 वर्ष स्वतंत्रता के पश्चात् भी, गरीब और असहाय क्यों हैं? माना कि खेती की उपज की वस्तुओं की कीमतों में काफी उछाल आया है परंतु इस उछाल का लाभ बीच-विचोले व्यापारियों और फुटकर विक्रेताओं ने अधिक उठाया। किसानों को जो हल्का सा लाभ हुआ है इसके बदले में खेत में पड़ने वाली वस्तुओं के मूल्य बढ़े हैं। रासायनिक खाद जो किसानों की भूमि को 10-15 वर्ष के प्रयोग कर रहे हैं, उसकी कीमतों में बेशुमार उछाल आया है। बीज, कीटनाशक और डीजल इत्यादि की कीमतों में भी वृध्दि हुई है। यह समस्या उन किसानों की है जिनके पास 2-4 एकड़ या इससे अधिक भूमि है। हम बात करें उन किसानों की जिनके पास आधी या एक एकड़ भूमि है और इनकी संख्या संपन्न किसानों से बहुत अधिक है। इनके पास इतनी कम भूमि होने के कारण केवल हल्की-फुल्की खेती, रहने के लिए थोड़ा सा स्थान या एक आध गाय या बकरी रखने का हीं प्रबंध हो सकता है। खेतीहरों में इनकी संख्या 70-80 प्रतिशत हैं। किसान की थोड़ी खेती और बड़ा परिवार होने के कारण इस समय यह गरीबी रेखा से बहुत नीचे है। इनमें से तो बहुत सारे लोग शहरों को पलायन कर चुके हैं और छोटे-छोटे काम विशेषकर मजदूरी करके अपने परिवार को भूखमरी से बचाये हुए हैं।

ऐसी परिस्थियों में सरकार और स्वयंसेवी संस्थायें इन किसानों के लिए क्या कर सकती हैं? महंगाई होते हुए आज भी गाँव के अनाज और शाक-सब्जियों की कीमत कम है। इसलिए गाँव में अगर गरीब आदमी को कुद आमदनी हो जाए उसकी कोशिश यह रहती है कि वह घर को छोड़कर काम करने के लिए शहर न जाए जहां उसे झुग्गी-झोपड़ी में अकसर किसी नाले के किनारे रहना पड़ता है। परंतु उसकी कम-से-कम अवश्यकताओं की पूर्ति तो होनी ही चाहिए। यह सब संभव है। खेतीहार कहलाते हुए भी अधिक किसानों के पास परिवारों में बंटती भूमि एकड़ों में नहीं बल्कि मीटरों में रह गयी है। गाँव में इतना स्थान, तो मिलता है कि किसान 15-20 गाय पाल सकता है। एक यथार्थ अनुमान के अनुसार अगर किसान की गाया का दूध, गोबर, और गोमूत्र ठीक दामों में बिके तो किसान संपन्न हो सकता है। यह आम जनता और देश की अर्थव्यवस्था के हित में है। जहां तक दूध की बात है जनता इतनी जागरूक हो गई है कि गाय के दूध के स्वास्थ्यवर्धक गुणों को भली भांति जानती है। इसलिए उन गांवों में जहाँ छोटे-बड़े शहर केवल 100-200 किलोमीटर दूर है वहाँ विशेषकर किसान को दूध के अच्छे दाम मिल जाते हैं। कुछ गो प्रेमियों ने गाय का दूध हरियाणा और राजस्थान से दिल्ली लाने का प्रबंध किया है। गोपाल को इसके रूपया 20 प्रति लीटर देकर भी यह शुद्ध दूध दिल्ली में रुपये 30 प्रति लीटर बिक रहा है। ऐसे ही अगर कुछ कर्मठ उद्योगपति पंचगव्य संबंधित उद्योग लगाएं तो गाँव में इतनी खुशहाली आ सकती है जो किसी भी अनुमान से अधिक होगी। केवल दस दुधारी गायों वाला किसान भी गाय को अच्छा खिला-पिला कर, घर में खूब दूध-दही का उपभोग कर, हम गाया के पीछे राज का रुपये 50 कमा सकता है। अर्थात् दस गाय पालने वाला किसान केवल दूध की ब्रिकी कर रुपये 15000 हर मास कमा सकता है। अगर दूध की बिक्र ी के साथ-साथ गाय के गोबर और गोमूत्र के भी अच्छे दाम मिले जो एक दम संभव है, अगर इस संबंधी भी उद्योग लगें और इनकी मांग बढ़े। इसका तात्पर्य यह हुआ कि दस गाय रखने वाले किसान की रोज आमदनी रुपये 500 हो सकती है। गांव के रहन-सहन के अनुसार यह आय अच्छी मानी जाती है।

भारतवासी गाय को गोमाता कहते हैं परंतु बहुत बड़ी संख्या में किसानों ने गाय पालना बंद कर दिया है। इसलिए तो गाय की ऐसी दुर्दशा हो रही है। हमारी देशी गाय की महिमा को इजराईल देश ने बहुत पहले जाना। तभी तो हजारों की संख्या में उन्होंने गीर गाय को भारत से अपने देश में आयात किया। आज इजराइल में उन गायों की संख्या बहुत हो गई है। यह सब होते हुए भी इजराइल में उन गायों की संख्या बहुत हो गई है। अब सब होते हुए भी इजराइल की सरकार और जनता इससे संतुष्ट नहीं। अभी कुछ सप्ताह पूर्व ही इजराइल के राजदूत मार्क सोफर ने भारत में घोषणा की थी कि उनका देश भारत में डेरी फार्मिंग ओर एनिमल हसबेंडरी का उपयोग करना चाहता है। एक अनुमान के अनुसार यह कहा जा रहा है कि इजराइल के उद्योगपत्तियों को इस बात का अनुमान है कि भारत में डेयरी उद्योग का धंधा लाभ का होगा क्याेंकि भारत की अच्छी नसलों की गायें जैसे गीर, सहिवाल इत्यादि गुणवत्ता और मात्रा में अच्छी दूध देती हैं और भारत के आस-पास के देशों में दूध से बनी वस्तुओं की बहुत अधिक मांग है। इन देशों को यह भली-भांति पता चल गया है कि देशी गाय के उत्पादकों में अधिक पौष्टिकता और असाध्य रोगों तक को ठीक करने की क्षमता है।

आशा है इजराइल के भारत में डेयरी फार्मिंग और एनिमल हसबेंडरी के उद्योग लगाने से भारत के उद्योगपत्तियों में भी चेतना आएगी कि इजराइल जैसा देश जो औद्योगिक कला में निपुण है, डेयरी फार्मिंग के उद्योग में लाभ लेगा तो यह भी बढ़-चढ़कर उद्योग लगायें। हमारे किसान जिनके पास भूमि थोड़ी है उनके लिए ऐसे उद्योग लगाने से लाभ-ही-लाभ होगा, किसानों में समृध्दि आयेगी और गांव की जो सरकार द्वारा अपेक्षित हैं फिर से संपन्न होंगे। गाय के दूध से डेरी उद्योग और गोमूत्र और गोबर से दवाइयां, टाइलज, कागज, फिनाईल इत्यादि के उद्योग लगें। किसान और अन्य गांव के लोग गाय पालें और गौ उत्पादित वस्तुओं की मांग बढ़े तो हमारे किसान संपन्न हों और गांव तथा देश खुशहाल।

6 COMMENTS

  1. अच्छा आलेख. जानकारी-परक और उपयोगी. काश सुबह अमेरिका का मुंह देखने वाली और विकास के पश्चिमी-बाजारवादी मॉडल अपनाने वाली हमारी सरकार इन बातो पे गौर करे. शर्म की बात है की सरकार दिन-रात गांधी की दुहाई देते हुए बाजारवाद की राह पे चल रही है.

  2. श्री विरमानी जी बिलकुल सच कह रहे है. वास्तव में गाँव खुशाल हो तो देश सम्रध हो जायेगा. पिछले कुछ सालो से technology के नाम पर यांत्रिक खेती पर ज्यादा से ज्यादा जोर दिया जा रहा है और पशुधन का तिरिस्कार किया जा रहा है.

    अगर पशुधन को समुचित प्रोत्सहन दिया जय तो बहुत हद ग्रामीण लोग संपन हो सकते है. दूध दही, इंधन और खाद भरपूर मिल जायेगा.

  3. इस तर्क शुद्ध लेख के आधारपर, यदि छोटी पुस्तिका(हिंदी और प्रादेशिक भाषाओ में) लिखी जाती है, जैसे गुजरातमें लघु घरेलु उद्योगों की पुस्तिकाएं छपी हैं, और उनके आधारपर,हर जिले में शिविर लगाकर प्रशिक्षा दी जाती है। इस पुस्तिकामें क्रमवार (१, २, ३,…) क्रियाएं (Action Plan)होना चाहिए।
    गुजरात प्रशासनभी इसमें सहायक(?) हो सकता है।

    इस योजनाके सारे छोटे मोटे पहलुओंपर विचार कर, अथ से इति तक पूरी योजना बनाकर आगे बढाना चाहिए। फिर,कुछ स्वयंसेवी संस्थाओं के
    नेतृत्वके सामने भी इसे प्रस्तुत किया जाए।
    ग्राम वासियोंका भी “उचित भलाई” केंद्रमें हो।
    डॉ. राजेश कपूर,और डॉ. जानी इस विषयके(निष्णात है), वे, इसके अनेक पहलुओंपर अपना मत, और चिंतन, प्रकट करें, यह प्रार्थना है। प्रवक्ता से बिनती, कि डॉ. राजेश कपूरजी का ध्यान इस टिप्पणी और इस लेख दोनो की ओर आकर्षित करनेमें सहायता करें।
    अमरिकामें भी कुछ भारत भक्तिसे ही प्रेरित निःस्वार्थी संस्थाएं, जीवदया और गौ भक्तिसे प्रेरित (N R I) आप्रवासी, कुछ मात्रामें लाभ पानेकी दृष्टिवाले निवेशक भी है। आवश्यकता(?) हो तो ही, अमरिकामें सहायता या निवेश करनेवाले ढूंढनेमें कुछ संपर्क भी करा सकता हूं।
    वैयक्तिक लाभ की अपेक्षा नहीं है।

  4. लेख अच्छा है .लेकिन आपने जिस चित्र का उपयोग किया है उसे बनाया है गुजरात की रहने वाली चित्रकार-कवयित्री प्रीती ने आपने उनका नाम देकर रचनाकार के साथ अन्याय किया है.

  5. बहुत ही उत्तम विचार ,लेकिन इसमें जिला विकाश की सरकारी योजनाये भी किसानों का सहयोग कर सकती है इसलिए जिला प्रशासन पर भी दवाब बनाया जा सकता है इस दिशा में सहयोग करने के लिए ….

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