ऋतुराज बसन्त

शकुन्तला बहादुर

आ गया ऋतुराज बसन्त।
छा गया ऋतुराज बसन्त ।।
*
हरित घेंघरी पीत चुनरिया ,
पहिन प्रकृति ने ली अँगड़ाई
नव- समृद्धि पा विनत हुए तरु,
झूम उठी देखो अमराई ।
आज सुखद सुरभित सा क्यों ये
मादक पवन बहा अति मन्द ।।
आ गया ….
*
फूल उठी खेतों में सरसों
महक उठी क्यारी क्यारी ।
लाल ,गुलाबी, नीले,पीले
फूलों की छवि है न्यारी ।
आज सजे फिर नये साज
वसुधा पर बिखर गये सतरंग ।।
आ गया …
*
हुआ पराजित आज शिशिर है
विजयी हुआ आज ऋतुराज ।
विजय दुंदुभी बजा रहे हैं
गुन-गुन सा करते अलिराज ।
कष्ट शीत का दूर हो गया
मधु-ऋतु लाई सुख अनन्त।।
आ गया ….
*
थिरक उठी है प्रकृति सुन्दरी ,
आज मिलन की वेला आई
कूक कूक कोकिल-कुल ने भी
सुखकर सुमधुर तान सुनाई।
सखि, बसन्त आए वर बनकर
साथ लिये अपने अनंग ।।
आ गया .
*
आ गया ऋतुराज बसन्त ।
छा गया ऋतुराज बसन्त ।।

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शकुन्तला बहादुर
भारत में उत्तरप्रदेश की राजधानी लखनऊ में जन्मी शकुन्तला बहादुर लखनऊ विश्वविद्यालय तथा उसके महिला परास्नातक महाविद्यालय में ३७वर्षों तक संस्कृतप्रवक्ता,विभागाध्यक्षा रहकर प्राचार्या पद से अवकाशप्राप्त । इसी बीच जर्मनी के ट्यूबिंगेन विश्वविद्यालय में जर्मन एकेडेमिक एक्सचेंज सर्विस की फ़ेलोशिप पर जर्मनी में दो वर्षों तक शोधकार्य एवं वहीं हिन्दी,संस्कृत का शिक्षण भी। यूरोप एवं अमेरिका की साहित्यिक गोष्ठियों में प्रतिभागिता । अभी तक दो काव्य कृतियाँ, तीन गद्य की( ललित निबन्ध, संस्मरण)पुस्तकें प्रकाशित। भारत एवं अमेरिका की विभिन्न पत्रिकाओं में कविताएँ एवं लेख प्रकाशित । दोनों देशों की प्रमुख हिन्दी एवं संस्कृत की संस्थाओं से सम्बद्ध । सम्प्रति विगत १८ वर्षों से कैलिफ़ोर्निया में निवास ।

4 COMMENTS

  1. शब्दों की ऊर्जा होती है, कविता की ऊर्जा।
    और शब्द होता है ऊर्जस्वी पंखोवाला अश्व।
    ऐसा अश्व जो धरापर मुक्त-बंध दौडता है, और जब सीमा पार हो जाता है; तो आकाश में, उडान भी भरता है।
    पर तीनों आयामों से भी उसकी उडान प्रतिबंधित नहीं होती।
    ऋतु के बंधन से मुक्त ऐसी यह कविता इस ऊर्जा का प्रमाण है।
    सुन्दर कविता पर कवयित्री को बहुत बहुत बधाई।

  2. कविता में समाई वसन्त की सुषमा चतुर्दिक ऐसी छाई कि हिमपात की सिहरन में भी अनुभूति-प्रवण मन को मधुऋतु के सुख-सौरभ का आनन्द मिल सका – बधाई !

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