सिपाहीजी से सुरक्षा की गारंटी…!

-तारकेश कुमार ओझा-
railway grp

देश की नई सरकार के नए रेल मंत्री ने एक बार फिर यात्री सुरक्षा के लिए महिलाओं समेत करीब 20 हजार आरपीएफ जवानों की नियुक्ति की घोषणा की है। लेकिन सवाल उठता है कि जवानों की यह अधिक संख्या क्या रेल यात्रियों को यात्रा के दौरान पूर्ण सुरक्षा का अहसास करा पाएगी। क्या इससे ट्रेनों में होने वाली डकैतियां रुक जाएंगी। उनका माल-आसबाब गायब नहीं होगा। यात्री नशाखुरान गिरोह का शिकार नहीं होंंगे। ट्रेनों में यात्रियों को हिजड़े परेशान नहीं करेंगे। क्या इस बात की कोई गारंटी है। जहां तक आरपीएफ में महिला जवानों की नियुक्ति का सवाल है। वर्तमान में हालत यह है कि तमाम तामझाम और दावों के बावजूद महिला रेल यात्री महिलाओं के लिए संरक्षित डिब्बों के बजाय पुरुषों वाले सामान्य डिब्बों में सफर करना इसलिए अधिक पसंद करती हैं क्योंकि इसमें वे खुद को अधिक सुरक्षित महसूस करती है। महिला डिब्बों में सुरक्षा की कोई गारंटी नहीं। जबकि आरपीएफ और जीअारपी में अभी भी पर्याप्त संख्या में महिला जवान हैं। जहां तक यात्री सुरक्षा का सवाल है, तो जवानों की संख्या बढ़ाने के बजाय नियमों की जटिलता को दूर करना ज्यादा जरूरी है। क्योंकि यह मामला शुरू से राज्यों की पुलिस और रेलवे सुरक्षा बल के बीच लटका हुआ है। राजकीय रेल पुलिस पर आरोप लगता रहा है कि यात्रियों को सुरक्षा देने के मामले में वह अनमने भाव से कार्य करती है। वहीं आरपीएफ जवानों के पास अपराध नियंत्रण के लिए कोई अधिकार ही नहीं है। ट्रेनों में होने वाले हर अपराध को उसे आखिरकार जीअारपी के सुपुर्द करना पड़ता है। जबकि रेलवे में एकल सुरक्षा प्रणाली लागू करने की मांग वर्षों से की जा रही है। जिससे यात्रियों की सुरक्षा का पूरा दायित्व आरपीएफ या जीअारपी में किसी एक दिया जाए। नीतीश कुमार के रेल मंत्रीत्वकाल में एेेसी चर्चा शुरू हुई थी कि सरकार ने रेलवे में यात्री सुरक्षा की जिम्मेदारी पूरी तरह से आरपीएफ को देने का फैसला कर लिया है। लेकिन बाद में बात अाई-गई हो गई। एेसे में स्पष्ट है कि नियमों की जटिलता को खत्म व सुरक्षा बलों को जवाबदेह बनाए बगैर केवल जवानों की भर्ती से यात्रियों की पूर्ण सुरक्षा की उम्मीद बेमानी ही कही जाएगी।

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