नई दिल्लीः पिछले साल अमेरिका समेत तमाम दुनिया में ‘#मीटू’ मूवमेंट की बाढ़ आ गई थी। कई नामी चेहरों ने अपने साथ हुए हैरसमेंट के बारे में खुलकर बात की। नाना पाटेकर-तनुश्री दत्ता के विवाद के बीच भारत में भी यह मूवमेंट तेजी से रफ्तार पकड़ रहा है लेकिन इस बीच सबसे ज्यादा बात यह उठ रही है कि इसको लेकर कानूनी तौर पर क्या किया जा सकता है? यौन उत्पीड़न या सेक्शुअल हैरसमेंट न केवल नैतिकता के पैमाने पर बल्कि कानूनी तौर भी गलत है। इसको लेकर भारत में कई स्तर पर कड़े कानून मौजूद हैं।

सुप्रीम कोर्ट के द्वारा विशाखा गाइडलाइंस 1997 में जारी की गई थी। इसके बाद इनके बदले दिसंबर 2013 में प्रीवेंशन आॅफ सेक्शुअल हैरसमेंट आॅफ विमेन एट वर्कप्लेस एक्ट लागू किया गया था और साथ ही क्रिमिनल लॉ अमेंडमेंट एक्ट ( अपराधी कानून अधिनियम) 2013 भी सेक्शुअल हैरसमेंट को लेकर काफी सख्त कानून है। इन कानूनों में सेक्शुअल हैरसमेंट के तहत आने वाले अलग-अलग अपराधों के हिसाब से सजा का विधान है।