नई दिल्लीः राजधानी में निजी स्कूलों के खातों का हर साल ऑडिट नहीं कराए जाने पर हाईकोर्ट ने दिल्ली सरकार और नगर निगमों से विस्तृत रिपोर्ट मांगी है। हाईकोर्ट ने सरकार और नगर निगमों को यह बताने के लिए कहा है कि सभी निजी स्कूलों के खातों का हर साल ऑडिट क्यों नहीं कराया जा रहा है। चीफ जस्टिस राजेंद्र मेनन और जस्टिस अनूप जे. भम्भानी की पीठ ने निजी स्कूलों के खातों का हर साल ऑडिट कराने और अन्य मांगों को लेकर दाखिल जनहित याचिका पर यह आदेश दिया है। गैर सरकारी संगठन जस्टिस फॉर ऑल की याचिका में कहा गया है कि सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बावजूद निजी स्कूलों के खातों का हर साल ऑडिट कराने में सरकार विफल रही है। राजधानी में दिल्ली सरकार के अलावा नगर निगम भी निजी स्कूलों को मान्यता देती है, इसलिए नगर निगमों से भी रिपोर्ट मांगा गया है। पीठ ने सभी पक्षों को 4 सप्ताह के भीतर अपनी रिपोर्ट पेश करने को कहा है।

मामले की अगली सुनवाई 16 जनवरी को होगी। संगठन की ओर से अधिवक्ता खगेश झा ने पीठ को बताया कि सुप्रीम कोर्ट ने मॉडर्न स्कूल मामले में सरकार को सभी निजी स्कूलों के खातों की हर साल ऑडिट कराने और यह सुनिश्चित करने का आदेश दिया था कि छात्रों से जिस मद में पैसा लिया जा रहा है, वह उसी मद में खर्च हो। सुप्रीम कोर्ट के निर्देश के अनुसार, सरकारी जमीन पर बने स्कूलों में हर साल फीस बढ़ाने से पहले और निजी जमीन पर बने स्कूलों में बाद में खातों के ऑडिट कराने का प्रावधान है।

बिना पूर्व मंजूरी के फीस में बढ़ोतरी का कारण बताएं

हाईकोर्ट ने तीनों निगमों और नई दिल्ली पालिका परिषद से यह बताने के लिए कहा है कि सरकारी जमीन पर बने उनसे मान्यता प्राप्त निजी स्कूलों में बिना पूर्व मंजूरी के फीस में कैसे बढ़ोतरी हो रही है। हाईकोर्ट ने यह आदेश तब दिया जब याचिकाकर्ता संगठन ने कहा कि सरकार के शिक्षा निदेशालय सरकारी जमीन पर बने स्कूलों को फीस बढ़ाने की अनुमति नहीं देती है। लेकिन नगर निगम व परिषद इस निर्देश का पालन नहीं कर रहे हैं।