कल कहीं बहुत देर न हो जाये! भाग-3


ठीक है कि गुलामी के दौर में विधर्मी आक्रांताओं ने हमारी संस्कृति, हमारे धर्म पर भी हृदय विदारक एवं जघन्यतम हमले किये। देवी-देवताओं के मंदिरों को ही नहीं ज्ञान के मंदिरों को भी भारी क्षति पहुंचाई गई। मंदिरों की अकूत सम्पत्तियों को लूटा खसोटा गया और पुजारियों व रक्षकों की निर्मम हत्यायें की गई। और तो और अनेक प्रख्यात हिन्दू मंदिरों को तोड़कर वहां/उन पर मस्जिदें तामीर कर दी गई।
यह तो नहीं कहा जा सकता है कि सनातन धर्म व सनातन संस्कृति की रक्षा हेतु हिन्दुओं ने कुछ किया ही नहीं। कुर्बानियां दी ही नहीं पर नि:संदेह सिखों की कुर्बानियों के आगे उनकी कुर्बानियां फ ीकी पड़ जाती हैं। हालांकि सिख भी जैन, बौद्ध की तरह हिन्दू से ही उपजे हैं। सत्य तो यह है कि सिखों का आर्विभाव ही सनातन संस्कृति की रक्षार्थ हुआ था। यह बात दीगर है कि कालांतर में उनकी अपनी अलग पहचान बन गई। जैसा कि इसी स्तम्भ में पूर्व में बार-बार लिखा जा चुका है कि दुनिया के सारे धर्म/सम्प्रदाय वैदिक धर्म की ही देन है। और अधिसंख्य धर्म व्यक्ति विशेष द्वारा प्रवर्तित हैं इसी लिये ऐसे धर्मो को सम्प्रदाय कहा जाता है।
अहम सवाल यह उठता है कि आखिर देश आजाद होने के बाद धर्मान्तरण क्यों कर जारी रहा/जारी है? यह तथ्य भी बार-बार उजागर हो चुका है कि धर्मान्तरण के शिकार मुख्य रूप से दलित वर्ग के ही लोग होते रहे हैं।
अब सवाल उठता है कि इसके लिये कौन जिम्मेदार है? सपाट उत्तर है कि सरकार व समाज दोनो बराबर के जिम्मेदार हैं। सरकार इसलिये कि उसने धर्मान्तरण के विरूद्ध कोई प्रभारी कानून ही नहीं बनाया। यह भी कि संविधान में ‘धर्म निरपेक्षÓ शब्द जोड़कर देश में हिन्दुत्व के साथ सनातन धर्म को भी कमजोर करने का सधा खेल खेला गया और ऐसा महज मुस्लिम वोटों के लिये किया गया। सरकार के कर्णधार माने जाने वाले राजनीतिक दलों ने वोटों के लिये हिन्दुत्व व सनातन धर्म का कितना नुकसान किया अब यह तथ्य भी किसी से छिपा नहीं रह गया है।
आजादी के बाद जातिपात को नये सिरे से परवान चढ़ाने का काम देश के कुछ चुनिंदा राजनीतिक दलों ने किया ही नहीं आज भी करने में संलग्न है।
और अंतत: इन सबके लिये हमारा हिन्दू समाज जिम्मेदार है। विशेषकर हिन्दू समाज के ठेकेदार प्रभुत्वशाली सर्वण व दलित वर्ग के कथित मसीहाओं ने अपने तुच्छ स्वार्थो के खातिर समाज व राष्ट्र के साथ अक्षम्य अपघात किया व आज भी कर रहे हंै।
दुर्भाग्य देखिये कि ऐसे मुठ्ठी भर तत्वों ने समाज की एक जुटता को जो नुकसान पहुंचाया उसका न तो समाज ने कभी संगठित विरोध किया और न ही उसके गंभीर परिणामों पर चिंतन की आवश्यकता ही समझी।
इसमें दो राय नहीं है कि हर स्तर पर सरकारी संरक्षण मिलने के बावजूद आज भी दलितों के साथ घृणित भेदभाव की घटनायें सामने आती ही रहती हैं। इससे अधिक लज्जाजनक हो भी क्या सकता है कि आजादी के ७४ वर्षो बाद भी समाज, ऊंच-नीच, सवर्ण एवं दलित के खांचे में बंटा हुआ है। छुआ-छूत का कंलक आज तक नहीं मिट सका है।
यह भी कम लोमहर्षक नहीं है कि कल के अपमानित दलित वर्ग के वे लोग जो आज ताकतवर बन चुके है प्रत्यक्ष/अप्रत्यक्ष अपने स्वार्थो हेतु अपने ही भाई बन्धुओं को सवर्णो के खिलाफ भड़काने का कोई अवसर हाथ से नहीं जाने देते। चुनाव के समय ऐसे ही लोग अपनी विरादरी के वोटों का ठेका लेने में भी गुरेज नहीं करते।
ऐसी स्थिति में सवर्ण समाज का चाहे ब्राह्मण हो, चाहे क्षत्रिय और चाहे वैश्य सभी का दायित्व और बढ़ जाता है। सर्वण समाज को पूरी ईमानदारी से खासकर समाज के दलित भाईयों को समाज की मुख्य धारा में लाना ही होगा। उनकी परेशानियों को दूर करने के साथ उनकी जरूरते पूरी करनी होगी ताकि वे विधर्मियों के चंगुल में फ ंसने को मजबूर न हो।
कुल मिलाकर आज पूरे देश में पूरी ताकत के साथ ‘छुआछूत विरोधी आंदोलन, ‘दलित आत्म सम्मान जैसे आंदोलन चलाने की जरूरत है। यदि ऐसा होता है तो कोई ताकत नहीं जो एक भी हिन्दू का धर्म परिवर्तन करा सके। अथवा कोई भी हिन्दू धर्म परिवर्तन को विवश हो सके।

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