नई दिल्लीः भारत-पाकिस्तान और बांग्लादेश की सीमा पर बॉर्डर सेक्यूरिटी फोर्स (बीएसएफ) में महिलाओं की तैनाती हो रही है, लेकिन बीएसएफ की 89 फीसदी महिलाकर्मी नहीं चाहतीं कि उनके परिचित या रिश्तेदार बीएसएफ से जुड़ें। सोमवार को राष्ट्रीय महिला पुलिस सम्मेलन के दौरान पेश की गई एक शोध रिपोर्ट में यह खुलासा हुआ।
आठवें राष्ट्रीय महिला पुलिस सम्मेलन के दौरान पारा मिलिट्री फोर्स में महिलाओं की अनसुनी आवाज के मुद्दे पर चर्चा के दौरान बीएसएफ अधिकारी मनमोहन मेहता ने रिसर्च पेश की। बीएसएफ में कुल 1,49,346 स्वीकृत पद हैं। 22,509 पद महिलाओं के लिए आरक्षित हैं, लेकिन महिलाकर्मियों की संख्या 5138 है। साल 2008 के बाद से बीएसएफ में महिलाओं की बहाली हो रही है। बीएसएफ अधिकारी मनमोहन मेहता की रिसर्च के मुताबिक, तीन चौथाई महिलाकर्मी बीएसएफ में सेवा कर खुश हैं, लेकिन बावजूद इसके महिला कर्मी नहीं चाहतीं कि उनके परिचित, रिश्तेदार भी बीएसएफ ज्वाइन करें। रिसर्च के मुताबिक, 89 फीसदी महिलाएं बीएसएफ में अपने परिचितों, रिश्तेदारों को ज्वाइन कराना नहीं चाहतीं।
बीएसएफ के 94 फीसदी मुख्यालयों में महिलाकर्मियों के लिए क्रेच की व्यवस्था नहीं है। रिसर्च में महिलाओं की स्वास्थ्य की भी जांच की गई है। रिपोर्ट के मुताबिक, स्वच्छता- शौचालयों की उचित व्यवस्था नहीं होने के कारण महिलाएं पानी भी कम पीती हैं, जिसके कारण स्वास्थ्य संबंधी समस्या हो रही है। रिसर्च के आधार पर बीएसएफ में सुधार की कवायदें हो रही हैं। सम्मेलन के पहले दिन महिला अफसरों की पोस्टिंग का मुद्दा भी उठा।
बीएसएफ में महिलाकर्मियों के लिए माहौल बदला है : सत्वंत अटवाल
बीएसएफ की पहली महिला अधिकारी आईजी सत्वंत अटवाल ने कहा कि बीएसएफ में पहले महिलाओं की उपस्थिति पर सवाल उठाया जाता था। साल 2015 में बीएसएफ में पोस्टिंग के बाद डेढ़ महीनें तक कोई उनसे ठीक से बात तक नहीं करता था। हेडक्वार्टर तक में महिला शौचालयों की व्यवस्था नहीं थी। अपने अनुभव बताते हुए सत्वंत अटवाल ने कहा कि एक समारोह के दौरान महिला मंत्री को बुलाने की बात उठी तो वरिष्ठ अफसर ने कहा कि औरतों को बीएसएफ से दूर रखें। सत्वंत अटवाल ने कहा कि धीरे धीरे बीएसएफ में महिलाओं के लिए माहौल बदला है। लैंगिक संवेदनशीलता के बजाय अब जेंडर न्यूट्रल प्लेस बनाने की जरूरत है। बीएसएफ में अब महिला ट्रेनर भी हैं।