पाकिस्तानी क्रिकेट टीम के कप्तान शाहिद खान अफरीदी के बयान पर पाकिस्तान में जो हंगामा मच रहा है, वह स्वाभाविक है लेकिन वह सही है या नहीं, यह कहना मुश्किल है। पाकिस्तान और भारत के रिश्ते वैसे नहीं हैं, जैसे कि किन्हीं दो पड़ौसी देशों के प्रायः होते हैं। यदि अफरीदी जैसी बात कोई नेपाली या भूटानी कह देता तो उसके देश के लोग उसका बुरा नहीं मानते बल्कि वे कहते कि उसने क्या कूटनीतिक छक्का मारा है। भारत के लोगों का दिल उसने इस बयान से जीत लिया है।

अफरीदी ने यही तो कहा है कि उसे भारत में पाकिस्तान से भी ज्यादा प्यार मिला है। दूसरे के घर पहुंचकर क्या इसी तरह का जुमला हम लोग नहीं बोल देते हैं? शालीन और शिष्ट लोगों की यह विशेष अदा होती है। यह तो सबको पता है कि हिंदुस्तानी हों या पाकिस्तानी, हम लोग मेहमाननवाजी में एक-दूसरे से बढ़कर हैं, क्योंकि हम लोग हैं तो सभी एक ही पेड़ की शाखाएं! क्या भारत की क्रिकेट टीम के खिलाडि़यों ने पाकिस्तान की तारीफ अफरीदी के शब्दों में ही नहीं की थी? शाहिद पठान हैं। अफरीदी कबीले के हैं। वे किसी से ‘अफरेड’ नहीं होते। वे अपनी बात दो-टूक ढंग से कहा करते थे।

लेकिन पाकिस्तान के कई खिलाडि़यों और टीवी चैनलों ने हंगामा खड़ा कर दिया है। खिलाड़ी लोग तो शाहिद से अपना हिसाब चुकता कर रहे हैं और टीवी चैनल तो टीआरपी के लिए जान देते हैं। यदि किसी को राष्ट्रद्रोही कह देने से उन्हें ज्यादा दर्शक मिलते हैं तो वे किसी को भी राष्ट्रद्रोही कह देते हैं। इस मामले में भारतीय और पाकिस्तानी चैनलों में कोई फर्क नहीं है। यह ठीक है कि जब भारतीय और पाकिस्तानी टीमें आपस में भिड़ती हैं तो दोनों देशों के लोगों में काफी तनाव हो जाता है। खेल में राजनीति की छाया पड़ने लगती है लेकिन अभी तो दोनों टीमों में कोई टक्कर नहीं थी। एक सहज-स्वाभाविक बयान पर इतना आपा खोना अनावश्यक लगता है। वह दिन दूर नहीं, जब दोनों देशों के लोग एक-दूसरे के बारे में शाहीद अफरीदी की जुबान ही बोलेंगे।

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