इंद्रप्रस्थ अध्ययन केंद्र एवं नेहरु स्मारक संग्रहालय एवं पुस्तकालय के संयुक्त तत्वाधान में 29 सितम्बर, 2019 को “राष्ट्रीय शिक्षा नीति : सिद्धांत एवं व्यवहार” विषयपर नेहरू स्मारक एवं पुस्तकालय में संगोष्ठी आयोजित की गयी । इस कार्यक्रम में सामाजिक सरोकारों से जुड़े हुए हर वर्ग के बुद्धिजीवी, शिक्षाविद, प्रशासक, शोध-छात्र, उद्यमी, कार्मिक आदि लोगों ने भाग लिया। इस संगोष्ठी में देश में नई शिक्षा नीति को लेकर चल रही बहस को एक सकारात्मक रूप देने और इसके सन्दर्भ में फैलाये जा रहे भ्रम को भी दूर करने का प्रयास किया गया। इस कार्यक्रम में मुख्य वक्ता के रूप में राज्यसभा सांसद और भारतीय सांस्कृतिक संबंध परिषद के अध्यक्ष डॉ विनय सहस्रबुद्धे, नेहरू स्मारक संग्रहालय और पुस्तकालय के उपनिदेशक श्री रवि कुमार मिश्रा एवं राष्ट्रीय शैक्षिक योजना एवं प्रशासन विश्वविद्यालय में प्रोफ़ेसर डॉ मनीषा प्रियम ने राष्ट्रीय शिक्षा नीति के सिद्धांतों और व्यवहार के सभी पहलुओं को बड़े ही स्पष्ट शब्दों में रखा। डॉ. मनीषा प्रियम ने नई शिक्षा नीति को भारत केंद्रित बताया एवं कहा कि इसमें समतामूलक भाव है।

डॉ. विनय सहस्त्रबुद्धे ने विषय पर बोलते हुए कहा कि नई शिक्षा नीति का निर्माण अभी तक की सभी समस्याओं की पृष्ठभूमि में की गई है। इस शिक्षा नीति के सही क्रियान्वयन से देश में मैकाले की सोच से मुक्ति संभव हो पायेगी ।  नई शिक्षा नीति के माध्यम से शिक्षा में एकात्मता और समग्रता लाने का प्रयास किया गया है। आगे बोलते हुए उन्होंने कहा कि शिक्षा और भाषा के संबंध को समझने की  भी जरूरत है । देशी भाषाओं को भी इस नीति से फायदा होगा । साथ हीं 2025 तक देश में कुल 50 प्रतिशत छात्रों को व्यवसायिक शिक्षा प्रदान की जाएगी । इस शिक्षा नीति में बहु निकास का विकल्प भी स्वागत योग्य कदम है । डॉ. विनय सहस्त्रबुद्धे ने कहा कि हमारी  शिक्षा व्यवस्था के समक्ष व्यापक चुनौतियाँ  भी हैं । अपने सुझाव की चर्चा करते हुए उन्होंने कहा कि एकेडमिक ऑडिट इंस्टिट्यूशन बिल्डिंग और विदेशी भाषा की शिक्षा पर बल देने की जरूरत है ।

इस कार्यक्रम में इन्द्रप्रस्थ अध्ययन केंद्र के संयोजक श्री विनोद जी “विवेक”  राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के उत्तर क्षेत्र बौद्धिक शिक्षण प्रमुख श्री अजय कुमार भी उपस्थित रहे । इस संगोष्ठी में लगभग 350 विद्वत जनों की उपस्थिति रही | इस कार्यक्रम का सफल मंच संचालन डॉ. आरती एवं श्री मूलचंद्र ने किया | 

– इन्द्रप्रस्थ अध्ययन केंद्र

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