लेखक ने जो कुछ कहा है, वह पूरी वैचारिक ऊर्जा के साथ कहा है, जिसके कारण चिंतन की
निष्पक्षता एवं स्वतंत्रता का ग्रंथ के हर पृष्ठ पर आस्वादन किया जा सकता है।

चर्चित पुस्तक: तीखे तेवर

लेखक: योगेश कुमार गोयल, मीडिया केयर नेटवर्क, 114, गली नं. 6, गोपाल नगर,

एम डी मार्ग, नजफगढ़ नई दिल्ली-110043.
पृष्ठ संख्या: 160 (सजिल्द)
मूल्य: 150 रुपये

प्रकाशक: मीडिया एंटरटेनमेंट फीचर्स, हरियाणा.

वरिष्ठ पत्रकार एवं लेखक श्री योगेश कुमार गोयल, विगत तीन दशकों में सामाजिक तथा
अनेक सामयिक विषयों पर विश्लेषणात्मक टिप्पणियों एवं सृजनात्मक लेखन के लिए पाठकों के
हृदय में एक विशिष्ट स्थान बना चुके हैं। ‘तीखे तेवर’ में संकलित किए गए उनके 25 आलेखों
का फलक विस्तृत है और उनमें एक स्वस्थ तथा संवेदनशील समाज की संरचना के प्रति एक
अनूठी जागरूकता प्रदर्शित की गई है, जो लेखों के साभिप्राय शीर्षक स्वयं भली-भांति व्याख्यायित
करते हैं। उनकी अभिव्यक्ति की एक विशिष्टता यह है कि चाहे जातीय या धार्मिक हिंसा का
प्रश्न हो या कोई दूसरा सामाजिक सरोकार, वे अपने शब्दों और विचारों को संवेदनशीलता के
साथ-साथ एक सहज तटस्थता के साथ पाठकों के समक्ष रखते हैं।
राष्ट्रीय अखण्डता और मीडिया की भूमिका से लेकर चाहे अंधविश्वासों या मादक पदार्थों
का प्रश्न हो अथवा जल के लिए अगले सम्भावित युद्ध पर विमर्श हो, श्री गोयल जिस
सदाशयता और व्यापक दृष्टि से हल की तलाश करते हैं, वह बहुधा विस्मयजनक प्रतीत होता है।

समाज में व्याप्त अनेक विसंगतियां एवं अंतर्विरोध श्री गोयल के तीखे कटाक्षों से नहीं बच सके
हैं। अपनी व्यापक दृष्टि के साथ जहां एक ओर वे अपनी बेबाक टिप्पणियों में विचारधारा की
कट्टरता को चुनौती देने से नहीं चूकते हैं, वहीं अनेक ज्वलंत मुद्दों पर उनका प्रखर चिंतन
पाठकों को कुछ नया सोचने को विवश करता है।
ऐसा लगता है कि लेखक ने अपने चिंतन की विचारोत्तेजक प्राथमिकताओं में जिन विषयों
को गहराई से छुआ गया है, उसमें पर्यावरण, देश की जैव सम्पदा का संरक्षण, बिगड़ता वातावरण,
प्राकृतिक आपदाओं की बढ़ती संख्या, ग्लोबल वार्मिंग आदि प्रमुख हैं। इनका आज के सामाजिक
परिवेश में अपना महत्व है। निर्विवाद रूप से श्री गोयल के यशस्वी लेखन में पारदर्शिता और
सामाजिक चेतना के स्वर इस ग्रंथ के हर पृष्ठ पर अंकित दिखते हैं।
यह कहने का लोभ संवरण नहीं किया जा सकता है कि यह कृति अध्येताओं और शोध
से जुड़े स्नातकोत्तर छात्रों के लिए भी उतनी ही उपयोगी साबित होगी, जितना सामान्य प्रबुद्ध
पाठक को लाभ दे सकती है। लेखक ने जो कुछ कहा है, वह पूरी वैचारिक ऊर्जा के साथ कहा है,
जिसके कारण चिंतन की निष्पक्षता एवं स्वतंत्रता का ग्रंथ के हर पृष्ठ पर आस्वादन किया जा
सकता है। यह सिर्फ दोहराने की बात है कि सुधारवादी चिंतन और पत्रकारिता, व्यावसायिकता से
दूर, श्री गोयल की दिनचर्या के दो असली मोर्चे प्रतीत होते हैं। डा. राधेश्याम शुक्ल ने इस पुस्तक
के लिए अपनी विद्वतापूर्ण भूमिका में कदाचित इसी आग्रह-मुक्त विश्लेषण के संतुलन को
संघर्षशील पत्रकारिता की संज्ञा दी है, जिसके श्री गोयल सक्षम एवं समर्थ पात्र माने गए हैं। डा.
शुक्ल लिखते हैं कि योगेश कुमार गोयल लेखकों व पत्रकारों की उस श्रेणी में आते हैं, जो समाज
की विकृतियों पर तीखी नजर रखते हैं और एक स्वस्थ एवं संवेदनशील समाज के निर्माण के
प्रति सतत प्रयत्नशील रहते हैं। उनके लिए पत्रकारिता केवल सूचना और मनोरंजन का व्यवसाय
नहीं बल्कि उसके अपने सामाजिक सरोकार भी हैं। ये केवल पत्रकारिता के दायित्व से प्रेरित
आलेख नहीं हैं बल्कि इसमें लेखक की पीड़ा, क्षोभ और सामाजिक विकृतियों के निराकरण की
तीव्र आकांक्षा व्यक्त हुई है। ये आलेख पाठक को उद्वेलित ही नहीं करते, उसे कुछ सोचने और
करने के लिए प्रेरित भी करते हैं।
चूंकि इस ग्रंथ में लेखक की पीड़ा, क्षोभ और सामाजिक विकृतियों के निराकरण की तीव्र
आकांक्षा व्याप्त है, पाठकों के मन की बहुत सी उलझनों के सही और स्पष्ट उत्तर मिल सकते हैं,
ऐसी आशा है। यद्यपि आज के परिदृश्य में श्रव्य, दृश्य और मुद्रित मीडिया किस तरह बाजारवाद
का शिकार हो चुका है पर फिर भी लोकतांत्रिक परम्पराओं की रक्षा का उत्तरदायित्व सजग, सचेत

और निर्भीक पत्रकारिता के लिए प्रतिबद्ध व्यक्तियों पर ही है। कुल मिलाकर ‘तीखे तेवर’ एक
बहुमूल्य कृति है, जो हर हिन्दी भाषी के लिए पठनीय एवं संग्रहणीय भी है, मात्र पुस्तकालयों की
शोभा बढ़ाने के लिए नहीं।

  • हरिकृष्ण निगम (वरिष्ठ पत्रकार), मुम्बई

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