प्रियंका को खींचना होगी, राहुल से बड़ी सियासी लकीर

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 संजय सक्सेना   उत्तर प्रदेश की सियासत में 11 फरवरी से प्रियंका वाड्रा की विधिवत इंट्री हो जायेगी। उनके तमाम कार्यक्रम तय कर दिए गए हैं। अबकी बार यूपी में कांगे्रस की सियासत का पहिया रायबरेली अमेठी या इलाहाबाद से नहीं लखनऊ से घूमेंगा। प्रियंका 11 को लखनऊ आएंगी और 14 तक रहंेगी। संभवताः राजनैतिक रूप से अभी तक नेहरू-गांधी परिवार के किसी भी सदस्य ने इतना लम्बा समय लखनऊ में नहीं बिताया होगा। प्रियंका जब 11 फरवरी को लखनऊ आएंगी,तो कांगे्रस और उत्तर प्रदेश में उनकी सियासी पारी को लेकर परिदृश्य और भी साफ हो जाएगा। अभी तक प्रियंका को पूर्वी उत्तर प्रदेश की जिम्मेदारी दिए जाने के बात सामने आ रही है, लेकिन राहुल गांधी के बयानों से लगता है कि प्रियंका पूर्वी उत्तर प्रदेश से हटकर प्रदेश के अन्य हिस्सों में कांगे्रस कैसे मजबूत हो, इसके बार में भी  पार्टी के वरिष्ठ नेताओं से विचार-विमर्श करती रहेंगी। यूपी में टिकट बंटवारें में भी प्रियंका की भूमिका अहम हो सकती है। प्रियंका को जैसे ही यूपी में नई जिम्मेदारी सौंपी गई,उसके तुरंत बाद तमाम जिलों से उनकी जनसभाएं कराने की मांग आने लगी हैं। कांगे्रस के जो भी नेता जिस संसदीय सीट से चुनाव मैदान में उतरना चाहता है,ं वह वहां प्रियंका गांधी की कम से कम एक जनसभा अपने यहां कराना चाहता हैं। जितनी मांग प्रियंका गांधी की जनसभा कराए जाने की हो रही है,उतनी तो कभी राहुल गांधी की भी नहीं हुई,जबकि वह कांगे्रस के अध्यक्ष हैं। कांगे्रसियों को लग रहा है कि यूपी में दो लोकसभा सीट वाली कांगे्रस को आगे ले जाने के लिए प्रियंका वाड्रा अपने भाई से बड़ी सियासी लकीर खींच सकती हैं।    प्रियंका नई पारी की शुरूआत करने के लिए अीाी यूपी में आईं नहीं हैं, लेकिन प्रचार और परिपक्तता में मामले में कांगे्रसियों को राहुल से ज्यादा उन पर भरोसा दिख रहा है,जो पार्टी  के लिये तो शुभ संकेत हो सकता है,परंतु शर्त यह कि प्रियंका की लोकप्रियता से गांधी परिवार प्रभावित न हो। प्रियंका के आने से कांगे्रसी भले खुश हों,लेकिन प्रियंका के सामने मुश्किलें कम नहीं हैं। एक तो उन्हें मोदी-योगी और अमित शाह जैसे नेताओं के सामने अपने आप को साबित करना होगा,वहीं मायावती-अखिलेश के गठबंधन को लेकर उनका क्या रूख रहेगा,यह भी देखने वाली बात होगी। वहीं ईडी के शिकंजे में फंसे उनके पति राबर्ट वाड्रा वाला फैक्टर भी प्रियंका के लिए परेशानी का सबब बन सकता है।    कांगे्रस महासचिव और पूर्वी यूपी प्रभारी प्रियंका को यह भी तय करना होगा कि क्या वह यूपी फतह के लिए भाई राहुल गांधी स्टाइल की सियासत करेंगी ? उनके द्वारा तय किए गए मुद्दों पर अगर प्रियंका चलेंगी तो उन्हें राफेल को लेकर मोदी पर कीचड़ उछालना होगा ? ‘चैकीदार चोर है’ के नारे जनता से लगवाना होगा ? मोदी डरपोक हैं ?जीएसटी को गब्बर सिंह टैक्स बताना होगा?  राहुल गांधी प्रधानमंत्री मोदी पर तंज कसते हैं कि वो मुझसे आंख नहीं मिला सकते। ? राहुल गांधी प्रधानमंत्री को ‘शिजोफ्रेनिक’ भी बताते हैं ? (शिजोफ्रेनिया एक मानसिक अवस्था होती है जो गंभीर बीमारी बन जाती है) राहुल अपनी इसी मोदी विरोधी विवादास्पद शैली के चलते अक्सर सोशल मीडिया पर ट्रोल भी होते रहते हैं। निश्चित ही प्रियंका गांधी अगर सियासत की लंबी और गंभीर पारी खेलना चाहेंगी तो राहुल स्टाइल की शियासत से परहेज करेंगी। प्रियंका यह भी समझना होगा कि राहुल की इन्हीं हरकतों की वजह से उन्हें(राहुल गांधी) अभी तक गंभीरता से नहीं लिया जाता है। कांगे्रस के दिग्गज नेता भी अक्सर राहुल के कारण मुसीबत में पड़ जाते हैं। राहुल अक्सर विरोधियों पर हमलावर होने के चक्कर में सेल्फ गोल भी कर देते हैं। राहुल अपनी अपरिपक्तता के कारण चुनावी जंग में लगातार मुंह की खाते रहते हैं। हाल ही में कांगे्रस को तीन बड़े राज्यों में जीत हासिल हुई तो पब्लिक प्टेलफार्म पर जरूर कांगे्रसियों द्वारा राहुल की तारीफ में कसीदे पढ़े जाने लगे,लेकिन पार्टी के भीतर यह भी सुगबुगाहट भी चलती रही कि तीन राज्यों में कांग्रेस जीती नहीं बल्कि बीजेपी हारी थी। मघ्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में बीजेपी की 15 वर्षो से सरकार थी। जिस कारण सत्ता जनित विरोध पनपना स्वभाविक था। विपक्ष में कांगे्रस के अलावा कोई नहीं था,इस लिए उसके गले में जीत का सेहरा बंध गया था। जबकि अन्य राज्यों में जहां क्षेत्रीय दल मजबूत थे वहां कांगे्रस की कभी दाल नहीं गल पाई।     अगर प्रियंका गांधी अपने हिसाब से जीत का एजेंडा तय करेंगी तो निश्चित ही उनका सबसे अधिक ध्यान युवाओं को रोजगार और महिलाओं को सम्मान और किसानों की समस्याओं को समझने पर देना होगा। किसी नेता पर व्यक्तिगत आरोप लगाने की बजाए प्रियंका को विचारधारा की लड़ाई आगे बढ़ाने पर अधिक ध्यान देना होगा, जो नेता किसी वजह से हासिए पर चले गये हैं उन्हें मुख्यधारा में लाना होगा। कांगे्रस की संगठनात्मक क्षमता काफी कमजोर हैं,राहुल ने कभी इस ओर ध्यान नहीं दिया। प्रियंका के पास भी इतना समय नहीं होगा कि वह संगठन को पूरी तरह से तैयार कर सकें,लेकिन कार्यकर्ताओं में जोश भरने का काम उन्होंने कर दिया तो कांगे्रस की राह आसान हो जाएगी। प्रियंका से कांगे्रसियों को काफी उम्मीद है तो उन्हें भी इस कसौटी पर खरा उतरना होगा।       खैर,बात आगे बढ़ाई जाए। कांगे्रस अध्यक्ष राहुल गांधी ने जब अपनी बहन प्रियंका वाड्रा को पार्टी का महासचिव बनाने के साथ लोकसभा चुनाव को ध्यान में रखते हुए पूर्वी उत्तर प्रदेश की जिम्मेदारी सौंपी थी, उस दिन राहुल ने प्रियंका की शान में काफी कसीदे पढ़े थे। राहुल गांधी ने कहा, ‘‘मुझे काफी खुशी है कि मेरी बहन, जो बहुत सक्षम और कर्मठ हैं, वे मेरे साथ काम करेंगी। राहुल ने यह भी स्पष्ट कर दिया है कि प्रियंका का सियासी दायरा सीमाओं में नहीं बंधा है वह पूरे देश की राजनीति में सक्रिय रहेंगी। 24 जनवरी 2019 को जब प्रियंका वाड्रा को नई जिम्मेदारी सौंपी गई थी तब से वह मीडिया से लेकर कांगे्रसियों तक के बीच में सुर्खिंया बटोर रही थीं,लेकिन अब यह दौर बदलने वाला है। प्रियंका वाड्रा अपने मनोनयन के 18 दिनों के बाद लखनऊ पधार रही हैं। यहां सबसे पहले उनका एक रोड शो होगा। इसी के साथ वह ‘मिशन उत्तर प्रदेश’ पूरा करने में जुट जाएंगी। अभी तक के कार्यक्रम के अनुसार प्रियंका वाड्रा 11 फरवरी को  कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी और पश्चिम यूपी के महासचिव ज्योतिरादित्य सिंधिया के साथ लखनऊ पहुचेंगी। राहुल गांधी का कार्यक्रम पूरी तरह से निश्चित नहीं बताया जा रहा है।   महासचिव बनाए जाने के बाद प्रियंका गांधी के प्रथम लखनऊ आगमन को लेकर कांग्रेसियों में जबरदस्त उत्साह है। तीनों नेताओं के चैधरी चरण सिंह एयरपोर्ट, अमौसी पहुंचने के बाद प्रियंका गांधी का एयरपोर्ट से कांग्रेस मुख्यालय तक रोड शो होगा। लखनऊ में प्रियंका गांधी यूपी कांग्रेस पदाधिकारियों के साथ बैठक के  अलावा मीडिया से भी रूबरू होंगी। गौरतलब हो, प्रियंका गांधी ने दिल्ली में 4 फरवरी को महासचिव का पदभार ग्रहण किया था। इसके बाद प्रियंका ने उत्तर प्रदेश के वरिष्ठ नेताओं और पदाधिकारियों के साथ बैठक की थी।     कांगे्रसी सूत्र बताते हैं कि प्रियंका वाड्रा लखनऊ में चार दिन मौजूद रहेंगी। यहां वह कांगे्रस के जिलेवार संगठन की समीक्षा करेंगी। लोकसभा चुनाव की तैयारियों में पिछड़ी कांग्रेस के बारे में कयास लगाया जा रहा है कि वह  प्रदेश में छोटे दलों से गठबंधन का इंतजार किए बगैर इसी माह उम्मीदवारों की पहली सूची जारी कर सकती हैं। पार्टी कार्यालय में प्रियंका और सिंधिया की पार्टी के प्रमुख नेताओं से संगठन और सियासी हालात पर चर्चा होगी। फ्रंटल संगठनों के पदाधिकारियों से भी वार्ता संभव है।    प्रियंका गांधी लखनऊ में ही ठहरेंगी और इस दौरान वह प्रदेश संगठन की छानबीन करेंगी। हर जिले से आधा दर्जन से अधिक नेताओं को बुलाकर उनके स्थानीय समीकरणों की जानकारी जुटाई जाएगी। प्रोजेक्ट शक्ति और बूथ कमेटियों का ब्योरा जानने के साथ संभावित उम्मीदवारों पर भी चर्चा होगी।  उन जिलों में भी संगठन बदला जाएगा जहां विवाद गंभीर है। प्रदेश संगठन को दो या चार क्षेत्रों में बांटकर पदाधिकारी नियुक्त किए जाने का फैसला एक-दो दिन में हो जाने की उम्मीद है।     कांग्रेस आलाकमान उन सीटों पर ज्यादा ध्यान देगी जहां 2009 और 2014 के लोकसभा चुनाव में उसका प्रदर्शन बेहतर रहा था। इस हिसाब से  प्रदेश में करीब तीन दर्जन लोकसभा क्षेत्र ऐसे हैं, जहां पार्टी अपनी बेहतर स्थिति संतोषजनक मान रही है। ऐसी सीटों को ए-श्रेणी में रखते हुए तैयारी की जाएगी। राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांधी चुनाव अभियान में फ्रंट फुट पर खेलने और वर्ष 2022 में उत्तर प्रदेश में कांग्रेस सरकार बनाने का एलान कर चुके हैं। प्रियंका गांधी के लखनऊ दौरे के बाद कांग्रेस धुआंधार अभियान के साथ भाजपा को निशाने पर रखते हुए यूपी के रण में उतरेगी और बदलजी रणनीति के तहत सपा-बसपा गठबंधन के प्रति भी नरमी नहीं बरतेंगी।  बहरहाल, राजनैतिक पंडितों का कहना है कि प्रियंका के आने से कांगे्रस को थोड़ा बहुत फायदा तो होने की उम्मीद लगाई जा सकती है,लेकिन वह कांगे्रस की किस्मत पलट दंेगी, यह तभी पता चल पायेगा जब  वह भाजपा और सपा कांगे्रस के दिग्गज नेताओं के समकक्ष खड़ी हो पाएंगी। उन्होंने बहुत समझ-समझ कर बोलना होगा। क्योंकि चुनावी मौसम में नेताओं की छोटी से छोटी बात पर भी बड़ा बखेड़ा खड़ा कर दिया जाता है। प्रियंका को अपनी राजनैतिक परिपक्ता तो साबित करना ही होगा,संगठनात्मक रूप से कमजोर कांगे्रस के सहारे वह अपनी बात जनता के बीच तक कैसे पहुंचा पायेंगी,यह भी बड़ा सवाल होगा। प्रियंका के सियासी जंग में कूदते ही उनके पति राबर्ट वाड्रा पर भी राजनैतिक हमला तेज हो गया है। ईडी का शिकंजा भी वाड्रा पर कस रहा है। 

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संजय सक्‍सेना
मूल रूप से उत्तर प्रदेश के लखनऊ निवासी संजय कुमार सक्सेना ने पत्रकारिता में परास्नातक की डिग्री हासिल करने के बाद मिशन के रूप में पत्रकारिता की शुरूआत 1990 में लखनऊ से ही प्रकाशित हिन्दी समाचार पत्र 'नवजीवन' से की।यह सफर आगे बढ़ा तो 'दैनिक जागरण' बरेली और मुरादाबाद में बतौर उप-संपादक/रिपोर्टर अगले पड़ाव पर पहुंचा। इसके पश्चात एक बार फिर लेखक को अपनी जन्मस्थली लखनऊ से प्रकाशित समाचार पत्र 'स्वतंत्र चेतना' और 'राष्ट्रीय स्वरूप' में काम करने का मौका मिला। इस दौरान विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं जैसे दैनिक 'आज' 'पंजाब केसरी' 'मिलाप' 'सहारा समय' ' इंडिया न्यूज''नई सदी' 'प्रवक्ता' आदि में समय-समय पर राजनीतिक लेखों के अलावा क्राइम रिपोर्ट पर आधारित पत्रिकाओं 'सत्यकथा ' 'मनोहर कहानियां' 'महानगर कहानियां' में भी स्वतंत्र लेखन का कार्य करता रहा तो ई न्यूज पोर्टल 'प्रभासाक्षी' से जुड़ने का अवसर भी मिला।

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