इंसानियत से प्यार मुझे

—विनय कुमार विनायक
मैंने जहां से इश्क किया है,
इंसानियत से प्यार मुझे!

धर्म व मजहब में आडम्बर,
कभी नहीं स्वीकार मुझे!

धर्म वहां तक जायज लगते,
जहां लगे सब यार मुझे!

मानव मानव में भेदभाव हो,
वह धर्म लगे बेकार मुझे!

धर्म मजहब की बुराइयों से,
सदा से है तकरार मुझे!

धर्म नहीं वो जो हथियार हो,
नापसंद ये औजार मुझे!

धर्म वो जो करे सबका उपकार,
पसंद नहीं अपकार मुझे!

हर धर्म में अच्छाई बुराई होती,
पसंद धर्मों का सार मुझे!

धर्म नहीं है धमकाने का अस्त्र,
ऐसे धर्मों से इंकार मुझे!

धर्म मजहब नहीं ईश्वर का घर,
व्यर्थ लगे ऐसे संसार मुझे!

धर्म-मजहब-रब है मानव निर्मित,
घृणित लगे इनकी मार मुझे!

मानव विनाश का कारण है धर्म,
ऐसे धर्मों से है रार मुझे!

धर्म बने आत्म संतुष्टि साधन,
चाह है धर्म में सुधार मुझे!

धर्म यदि सृष्टि का संहार करे,
तो ना सुना धर्म प्रचार मुझे!

ऐसे अध्यात्मिक मानव दर्शन से,
करो ना साजिशी प्रहार मुझे!
—विनय कुमार विनायक

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