सतह पर आ गई कांग्रेस की कबीलाई कल्चर

0
227


डॉ अजय खेमरिया

         मप्र की सभी 29 लोकसभा सीटों के लिये बीजेपी और कांग्रेस के उम्मीदवारों का एलान हो गया है मुख्यमंत्री कमलनाथ के नेतृत्व में यह पहला चुनाव है इसलिये उनकी सीधी प्रतिष्ठा दांव पर लगी है लेकिन मौजूदा परिदृश्य कांग्रेस के दावों से इतर भी एक दूसरी कहानी कहता है मप्र कांग्रेस की चिरस्थायी गुटबाजी खेमों से आगे कबीलों में बंटी पार्टी और उसके सरदारों का महत्वाकांक्षी आचरण।2018 में 15 बरस बाद कांग्रेस को प्रदेश में सत्ता मिली पर पिछले 5 महीनों में पार्टी कबीलाई संस्कृति से खुद को दूर नही रख पाई.मन्त्रिमण्डल गठन की बातों को छोड़ दिया जाए और लोकसभा चुनाव की ही बात की जाए तो साफ है कि पार्टी का नेतृत्व किसी मिशन पर फ़ोकस होने की जगह आपस मे निपटाने पर ज्यादा केंद्रित है।मप्र के मुख्यमंत्री कमलनाथ के बारे मे एक बात तो सबको स्वीकार करनी ही होगी कि वे सीएम बनने से पहले तक कभी भी मप्र के सर्व स्वीकार नेता नही रहे है दिल्ली दरबार मे पॉवरफुल होने के बाबजूद वे छिंदवाड़ा औऱ ज्यादा हुआ तो बैतूल,जबलपुर, मण्डला,की सीमाओं से बाहर नही निकले ।कमोबेश सिंधिया भी ग्वालियर अंचल औऱ ज्यादा हुआ तो इंदौर तक सक्रिय रहे है।इसके उलट दिग्गिराजा अकेले ऐसे नेता है जो पिछले 25 साल से मप्र भर मे अपनी उपस्थिति दर्ज कराए हुए है 10 साल सीएम रहने का फायदा भी उन्हें मिला है।अब बात मौजूदा लोकसभा की जहां यह साफ हो चुका है कि कांग्रेस मप्र में जीतने से ज्यादा सरदारों को आपस मे ठिकाने लगाने के लिये लड़ रही है मुख्यमंत्री बनने के लिये कमलनाथ ने सिंधिया को रोकने के किया जिस दिग्गिराजा को साथ लिया था वही दिग्गिराजा अब बदली परिस्थितियों में कमलनाथ औऱ सिंधिया दोनो के निशाने पर है भोपाल से मैदान में अकेले कठिन सीट पर रह गए पूर्व सीएम की लड़ाई से स्पष्ट है कि उन्हें प्लान करके फसाया गया है क्योंकि सिंधिया ,कमलनाथ,तन्खा, अजय सिंह,भूरिया,सभी अपनी अपनी परम्परागत सीटों से लड़ रहे है अकेले दिग्गिराजा ही है जो कांग्रेस के कठिन सीट फार्मूला पर भोपाल में लड़ाई लड़ रहे है वह भी संघ भाजपा की तगड़ी घेराबंदी के खिलाफ।क्या कमलनाथ औऱ सिंधिया ने प्लान करके दिग्विजयसिंह को भोपाल में फंसाया है?यह फैक्ट है कि मप्र की राजनीति में दिग्विजय सिंह को बड़ा वर्ग पसन्द न करता हो पर यह भी सच्चाई है कि उन्हें आज भी प्रदेश की सियासत से कोई खारिज करने की हिम्मत नही कर सकता है।आज भी मप्र में सर्वाधिक विधायक उन्ही के वफादार है और 15 साल से लगातार उनके ही विधायक चुनकर आते रहे है उनके प्रभाव क्षेत्र की सीमा भी कोई एक इलाका नही है उनकी फॉलोइंग लाइन आज भी सबसे विशाल और व्यापक  है ।लेकिन क्या कमलनाथ दिग्गिराजा को मप्र से बाहर करना चाहते है ?क्या इस काम में सिंधिया भी सीएम के साथ है?इन सवालों के जबाब किसी शोध के विषय नही है दीवार पर लिखी इबारत की तरह साफ है कि दिग्गिराजा को मप्र की कांग्रेस राजनीति से बाहर करने का सयुंक्त प्रयास इस लोकसभा चुनाव के माध्यम से कांग्रेस में हो रहा है भोपाल को बाटरलू बनाकर पेश किया जा रहा है वरन कोई कारण नही था कि कमलनाथ छिंदवाड़ा की जगह मालवा,ग्वालियर क्षेत्र की किसी सीट से विधायक का चुनाव नही लड़ते?क्यों सिंधिया ने गुना की जगह इंदौर या विदिशा से चुनाव नही लड़ा? तब जब खुद मुख्यमंत्री ने कांग्रेस के लोकसभा मिशन हेतु बड़े नेताओं के कठिन सीट से लड़ने का प्लान पेश किया था।क्या ये प्लान सिर्फ दिग्विजयसिंह के लिये घेरने के लिये बनाया गया था ? क्योंकि कठिन सीटो पर भोपाल को छोड़कर कहीं भी ऐसे प्रत्याशी नजर नही आ रहे है जो पक्की जीत दिलाने वाले हो। विदिशा में शेलेन्द्र पटेल से ज्यादा प्रभावी राजकुमार पटेल होते लेकिन उन्हें इसलिये टिकट नही मिली क्योंकि वे दिग्गिराजा से जुड़े है और उनके परिवार का सीधा टकराव शिवराज सिंह से है।इसी तरह इंदौर की सीट पर जिस पुराने भाजपाई पंकज संघवी को टिकट दी गई है उसके बारे में खुद मुख्यमंत्री कमलनाथ सार्वजनिक रूप से कह चुके है कि ये जीतने वाला नही है फैक्ट भी है कि संघवी 4 चुनाव हार चुके है। ग्वालियर ,इंदौर से खुद सिंधिया लड़ सकते थे लेकिन उन्होंने गुना से लडना पसन्द किया।विवेक तन्खा जबलपुर से पिछला चुनाव  हार चुके है लेकिन वे बालाघाट नही गए,जहां लगातार पार्टी हार रही है।कांतिलाल भूरिया रतलाम की जगह मालवा की दूसरी आदिवासी सीटों धार,खरगौन, जाने की हिम्मत नही दिखा पाये।सागर,टीकमगढ़ पन्ना से लड़ने की जगह अजय सिंह अपने घर की सीट सीधी से मैदान में है  तो क्या माना जाए कि मुख्यमंत्री कमलनाथ का कामराज जैसा प्लान   सिर्फ  दिग्विजयसिंह के लिये  था ।लेकिन अभी यह कह पाना जल्दबाजी होगी कि दिग्विजयसिंह इस चक्रव्यूह में फंस कर  राजनीतिक रूप से खत्म होने वाले है.क्योंकिं दिग्विजय सियासत के तपे हुए खिलाड़ी है वे कठिन परिस्थितियों को भी अपने पक्ष में मोड़ने में माहिर है अगर वे भोपाल से हार भी जाते है तब भी उनकी ब्रांड वेल्यू अल्पसंख्यकवाद के बाजार में कम होने की जगह बढ़ेगी ही उनके पास खोने के लिये सिर्फ एक चुनाव होगा क्योंकि वे उस दौर में कठिन सीट से हारे होंगे जब मप्र के सभी नेता अपने घर छोड़ने का साहस नही दिखा पाए  तब दिग्विजयसिंह राजगढ़ की सीट छोड़कर साध्वी औऱ पूरे संघ परिवार से भिड़ने आ गए।वे कांग्रेस के हिन्दू आतंकवाद थ्योरी को मथने में कामयाब गिने जाएंगे जिसकी बुनियाद पर कांग्रेस का अल्पसंख्यक वोट बैंक फिर से खड़ा किया जा रहा है।अगर वे जीत गए तब तो यह साबित हो ही जायेगा कि मप्र के असली राजा कांग्रेस में दिग्गिराजा ही है तब कल्पना कीजिये मप्र की सियासत क्या गुल खिलाएगी ????फिलहाल तो मप्र की कांग्रेस कबीलाई सँघर्ष में फंसी है दिग्गिराजा सभी कबीलों के निशाने पर है।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

* Copy This Password *

* Type Or Paste Password Here *

17,871 Spam Comments Blocked so far by Spam Free Wordpress