कठुआ कांड__जिहाद का नया रूप__

विनोद कुमार सर्वोदय

हिंदुओं की पुण्य भूमि भारत को इस्लामिक राष्ट्र बनाने के लिये  सैकड़ों वर्षों से जिहाद जारी है। इतिहास साक्षी है कि समय के साथ साथ जिहाद भी नित्य नये नये रूप लेते जा रहा हैं। इसी संदर्भ में राष्ट्रीय एकता व अखंडता पर प्रहार करने के षड़यंत्र रचे जा रहे हैं। इस दृष्टि में मुख्य रूप से देश का सीमांत प्रदेश जम्मू-कश्मीर सन 1947 से ही सर्वाधिक पीड़ित राज्य बना हुआ है। क्या जम्मू-कश्मीर में दशकों से हो रहें अनेक अमानवीय अत्याचारों को भुलाया जा सकता हैं ? उन समस्त अत्याचारों से केवल हिन्दू समाज ही क्यों पीड़ित होता हैं ? अधिक पीछे न जाते हुए 1990-91 में जब सामूहिक रूप से कश्मीर घाटी में कश्मीरी हिंदुओं की बच्चियों, युवतियों और महिलाओं की इज्जत लूटी और हत्या की गयी तब उस दहशतगर्दी पर क्यों नही कोई राजनैतिक चालबाज अपने तथाकथित प्रगतिशील वर्ग के साथ आगे आया ? क्यों नही उस समय की भयावह पीड़ा दायक परिस्थितियों में खदेड़े गये लगभग पांच लाख हिंदू जो अपने ही देश में विस्थापित कश्मीरी हिंदू कहलाये जाने को विवश हैं, के प्रति 28 वर्षों बाद भी देश व प्रदेश की सरकारों के अतिरिक्त तथाकथित मानवाधिकारवादियों , बुद्धिजीवियों व पत्रकारों में भी कोई संवेदना नही जागी ? उस समय की सरकारें हिंदुओं पर हो रहें ऐसे अत्याचारों के प्रति उदासीन व निष्क्रिय होकर कहती थी कि यह तो आतंकवाद है, हम क्या कर सकते हैं ? क्यों नही उस समय 100 करोड़ देशवासियों ने कश्मीरी हिंदुओं के पक्ष में धरना-प्रदर्शन करके उनको न्याय दिलवाने का प्रयास किया ?
लेकिन अभी तीन माह पूर्व जनवरी 2018 में कठुआ (जम्मू) में एक मुस्लिम बालिका (आसिफा) की निर्मम हत्या जो अत्यंत दुखदायी हैं, से प्रदेश सहित देश का एक विशिष्ट वर्ग सड़कों पर धरना-प्रदर्शन करके अपनी पूर्वाग्रही हिन्दू विरोधी मानसिकता के भ्रम में डटा हुआ हैं। ऐसा प्रतीत होता है कि कुछ अराष्ट्रीय तत्वों ने इस निंदनीय कांड की ओट में राजनैतिक चालबाजों को साथ लेकर अपनी रोटियां सेकनी आरंभ कर दी हैं। जम्मू-कश्मीर की मुख्यमंत्री महबूबा मुफ़्ती के नेतृत्व वाली पीडीपी-भाजपा गठबंधन की सरकार अनेक आतंकी व देशद्रोही गतिविधियों की अनदेखी करते हुए लगभग तीन मास बाद कठुआ कांड के प्रति अचानक क्यों इतनी अधिक सक्रिय हो गयी , सोचने को विवश करती है ? कठुआ के हीरानगर के रसना गाँव में हुए इस कांड को लेकर अनेक अनसुलझी विवादों भरी चर्चाएं हो रही हैं। कुछ सूत्रों से यह भी ज्ञात हुआ है कि वहां के प्रशासन ने पहले भी कठुआ कांड के कुछ दोषियों को पकड़ा था परंतु उनको छोड़ा गया और कुछ अन्य तथाकथित दोषियों को बंदी बनाया गया है। क्या ऐसी विकट स्थिति में कोई निष्पक्ष जांच हो पाएगी ऐसा अभी स्पष्ट नही कहा जा सकता। इसीलिये जिन लोगों को आरोपी बनाया गया हैं उन्होने व उनके परिवार सहित वहां के अधिकांश लोगों ने राज्य सरकार से सीबीआई से जॉच कराने की मांग करी हैं। परंतु क्या राज्य सरकार इसको स्वीकार करेगी इसमें संदेह है। फिर भी सच्चाई सामने आने में अभी समय अवश्य लगेगा ?
लेकिन क्या म्यांमार से अवैध रूप से घुसपैठ करके आये रोहिंग्या मुसलमानों को जम्मू में बसा कर वहां के जनसांख्यिकी अनुपात के असंतुलित होने की सच्चाई पर राज्य सरकार का चिंताग्रस्त न होना सर्वथा अनुचित नही है ? क्या इस प्रकार वहां के नागरिकों में असंतोष फैलने से वातावरण दूषित नही हो रहा है ?  यह सर्वथा राष्ट्रहित की अवहेलना है। जम्मू की जनता ने ऐसे अवैध घुसपैठियों को वहां से बाहर करने के लिए अनेक आंदोलन करें पर वहां की सरकार सहित केंद्रीय सरकार भी ऐसे राष्ट्रीय सुरक्षा के विषय की प्राथमिकता से बचती हैं। देश व प्रदेश में हो रहें  दीमक के समान समाज को अंदर ही अंदर खोखला करने वाले ऐसे घुसपैठिये जिनका जनून ही जिहाद करना है हमारे राजनैतिक चालबाजों व तथाकथित मान्यवरों को दिखायी ही नही देते। संभवतः कठुआ के घटनाक्रम से कुछ कुछ ऐसा प्रतीत हो रहा है कि वहां रोहिंग्या घुसपैठियों के विरुद्ध चलाये जा रहें अभियान का यह दुष्परिणाम राष्ट्रवादी नागरिकों पर भारी पड़ रहा है । ऐसे में कठुआ जैसे प्रकरणों पर सच-झूठ  की आड़ में चुनावी वातावरण में सत्ताहीनता की पीड़ा से पीड़ित कुछ नेतागण अपनी दूषित कूटनीतिज्ञता से सत्ताधारियों को कटघरे में खड़ा करने के लिये समाज को धार्मिक व जातीय आधार पर परस्पर भेदभाव बढ़ाने में सरलता से सफल हो जाते हैं। हमारे देश के अनेक बुद्धिजीवियों व पत्रकारों की सोच केवल हिन्दू विरोध तक ही सीमित होने के कारण कोई ऐसी घटना जिसमें कोई मुस्लिम या ईसाई रूपी मानव उत्पीड़ित हो तो तुरंत धरना व प्रदर्शन करके अपने आकाओं के षडयंत्रो को आगे बढ़ाने में प्रभावी भूमिका निभाने से नही चूकते। जबकि प्रायः देश में इस्लास्मिक आतंकवाद (जिहाद) से अधिकांश पीड़ित हिंदुओं के पक्ष में ऐसे मान्यवर केवल बगलें झांकते दिखायी देतें हैं। उन्हें वास्तव में देश व देशवासियों के प्रति कोई सरोकार नही…ये संवेदनहीन तत्व अपने ऐसे ही आचरणों से राष्ट्रीय विकास में बाधक होते जा रहें हैं। ऐसे तथाकथित नेता व समाज सेवक समाज व राष्ट्र का भला करने के नाम पर नकारात्मक वातावरण बना कर समाज के विभिन्न भटके हुए युवा वर्ग को धरना-प्रदर्शन करने के लिये उकसाते है। विभिन्न विद्यार्थियों, युवाओं व बेरोजगारों को ऐसे ही आन्दोलनों में कुछ लालच देकर व्यस्त करने का कार्य करके उनके भविष्य से खिलवाड़ करने का सिलसिला चलता आ रहा है। हमारे नेतागण कब तक धर्मनिर्पेक्षता की वास्तविकता से बचते हुए विशेष रूप से मुस्लिम समुदाय के प्रति अधिक चिंतित होते रहेंगे और हिंदुओं की पीड़ाओं पर कोई प्रतिक्रिया भी नही करेंगे ? क्योंकि ऐसा होने व करने से वे कम से कम साम्प्रदायिक तो नही कहलायेंगे ?
यह दुःखद है कि हिंदुत्व व राष्ट्रीयत्व के लिये संघर्षरत भाजपा के एक महासचिव ने अपने उन मंत्रियों व कार्यकर्ताओं को ही दोषी बना दिया जो कठुआ कांड पर हो रहे शासकीय कार्यवाही के विरोध में  “हिन्दू एकता मंच” के एक कार्यक्रम में सम्मलित हुए थे। क्या गठबंधन की यह राजनीति भाजपा के उन सिद्धांतों को भी ठुकरा रही है जिसके कारण आज भाजपा दस करोड़ से अधिक सदस्यों वाली विश्व की सबसे बड़ी पार्टी बन चुकी हैं। क्या आज सत्तालोलुपता और सिद्धांतहीनता एक दूसरे के पूरक हैं? ऐसे में भाजपा को यह समझना होगा कि उसने करोड़ों राष्ट्रवादियों को निराश करके अपनी अदूरदर्शिता का परिचय दिया हैं। इस पर भी किसी राजनैतिक षडयंत्र के अंतर्गत अगर कठुआ कांड के मुख्य आरोपियों को बचाया जायेगा तो यह राष्ट्रवादी समाज के साथ अन्याय ही नही विश्वासघात भी होगा ? ऐसे में राष्ट्रविरोधी देशी-विदेशी शक्तियां राष्ट्रवादियों को भी भ्रमित करने में सफल होती हैं तो यह “अफजल प्रेमी गैंग” व “भारत तेरे टुकड़े होंगे” के समर्थकों को प्रोत्साहित करेगी। अतः कठुआ कांड को “जिहाद का नया रूप” कहें तो अनुचित नही होगा।

 

1 COMMENT

  1. देश मे आजकल जो हो रहा है वह सब कोंग्रेस रचित है यह सत्य है। कोंग्रेस 60-70 सालो तक सत्ता मैं रही ज़ाहिर है उसके चमचे ज़्यादा होंगे। जितनी चोर बजारी, लूटपाट, बलात्कार दबंगई कोंग्रेस राज़ मैं हुई उतनी कभी नही हुई। आज का बिकाऊ मीडिया पैसा लेकर व कोंग्रेस की दोबारा वापसी की आस में ओर ताकि उसकी अय्याशियां फिर शुरू हो सके धड़ले से भ्रामिक खबरे फेला रहा है। कोंग्रेस काल मे मीडिया वही छाप सकता था जो कोंग्रेस कहे। यह मानसिकता धीरे धीरे खत्म होगी।

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