191 सीटों पर जनता की नब्ज और कार्यकर्ताओं का मिज़ाज भापेंगे अमित शाह के जासूस!

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प्रदेश की 39 सीटों पर प्रत्याशी घोषित, 03 महिलाओं को बनाया उम्मीदावार, 20 से 27 तक प्रदेश में कैंप करेंगे यूपी महाराष्ट्र के विधायक!

(लिमटी खरे)

राजस्थान, छत्तीसगढ़, तेलंगाना, मिजोरम सहित मध्य प्रदेश में इस साल के अंत तक विधान सभा चुनाव होना है। कांग्रेस भाजपा सहित सभी सियासी दलों ने अपनी अपनी सरकार बनाने या बचाने के लिए तरह तरह के जतन आरंभ कर दिए हैं। कांग्रेस सदैव कहती आई है कि वह अपने उम्मीदवारों की घोषणा समय रहते कर देगी, पर वस्तुतः ऐसा होता नहीं है। इस बार भाजपा ने टिकिट की घोषणा में बाजी मार ली है। भाजपा की ओर से मध्य प्रदेश के 39 विधान सभा क्षेत्रों में उम्मीदवार घोषित कर दिए गए हैं।

भाजपा के राष्ट्रीय मुख्यालय के सूत्रों ने समाचार एजेंसी ऑफ इंडिया को बताया कि कुछ दिनों पूर्व भाजपा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में मध्य प्रदेश सहित चुनावी राज्यों में उन सीटों पर विशेष चर्चा हुई थी, जिन सीटों पर पिछले दो बार से भाजपा पराजित होती आई है। इन सीटों पर सभी दृष्टिकोण से विचार, सर्वेक्षण के उपरांत यह तय किया गया कि मध्य प्रदेश की उन 39 एवं छत्तीसगढ़ की उन 21 सीटों पर प्रत्याशियों का चयन कर घोषणा कर दी जाए जहां भाजपा को पराजय का मुंह देखना पड़ा था।

सूत्रों ने इस बात के संकेत भी दिए हैं कि जिन भी सीटों पर विचार किया गया है, उन सीटों के संभावित चेहरों को संगठन की जवाबदेही से पूर्व में ही मुक्त किया जाकर संकेत दिए गए थे कि वे अपने अपने संभावित विधान सभा क्षेत्रों में जनसंपर्क आरंभ कर दें। इन सारी सीट्स पर बहुत गहन मंथन के उपरांत नामों को अंतिम रूप दिया गया है।

सिवनी जिले की बरघाट विधान सभा क्षेत्र से दो बार विधायक रहे कमल मर्सकोले की टिकिट पिछले चुनाव में अंतिम समय में काट दिए जाने से भाजपा को बरघाट में नुकसान उठाना पड़ा था। कमल मर्सकोले को टिकिट नहीं मिली, पर वे पांच सालों तक क्षेत्र में सक्रिय रहे और उन्होंने अपनी लोकप्रियता बरकरार रखी। इस बार बरघाट विधान सभा सीट से कमल मर्सकोले का नाम चुनाव से काफी पहले घोषित किया गया है, जो इस बात का घोतक है कि कमल मर्सकोले की सक्रियता के कारण वे भाजपा आलाकमान के हर टेस्ट में उत्तीर्ण हुए हैं। अब अगर सधी रणनीति से आगे बढ़ते हैं तो वे बरघाट में एक बार फिर भाजपा का परचम लहरा सकते हैं।

सूत्रों ने यह भी बताया कि अनेक स्तर के सर्वेक्षण के उपरांत अब भाजपा के चाणक्य कहे जाने वाले अमित शाह के द्वारा चुनावी राज्यों में किसी तरह का कोई रिस्क नहीं लेने का निर्णय लिया गया है। उन्होंने देश के हृदय प्रदेश में वर्तमान मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान का चेहरा आगे कर चुनाव लड़ने पर सहमति तो दे दी थी किन्तु टिकिटों पर नामों को अंतिम रूप देते वक्त वे बहुत ही ज्यादा सावधानी बरतते नजर आ रहे हैं।

भाजपा के राष्ट्रीय मुख्यालय के उच्च पदस्थ सूत्रों ने समाचार एजेंसी ऑफ इंडिया से चर्चा के दौरान यह भी बताया कि अमित शाह के निर्देश पर उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, बिहार एवं गुजरात के भाजपा विधायकों को चुनावी राज्यों में एक सप्ताह तक एक एक  विधान सभा सीट पर जाकर जनता की नब्ज, कार्यकर्ताओं की भावनाएं, वर्तमान विधायक की स्वीकार्यता एवं लोकप्रियता, विधायक की उपलब्धता, सहजता, लोगों से जुड़ाव, संगठन में हिस्सेदारी, विधायकों के व्यवसाय आदि पर बारीक नजर रखकर रिपोर्ट आलाकमान को सौंपेंगे।

सूत्रों की मानें तो 20 अगस्त से 27 अगस्त तक मध्य प्रदेश में महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश और गुजरात के विधायकों के द्वारा भाजपा के एक एक मण्डल की खाक छानी जाएगी। उनके द्वारा युवाओं का मानस टटोला जाएगा, क्योंकि राजनैतिक दलों के परंपरागत वोटर्स के अलावा अब युवाओं को अपनी झोली में डालना सियासी दलों के लिए किसी चुनौति से कम नहीं होगा।

सूत्रों का कहना था कि मध्य प्रदेश के अनेक सिटिंग एमएलए (वर्तमान विधायक) अपने अपने आकाओं को खुश करके खुद की टिकिट सौ फीसदी पक्की ही समझने लगे थे और टिकिट मिल जाएगी इस मुगालते के चलते उनके द्वारा कार्यकर्ताओं एवं वरिष्ठ नेताओं की उपेक्षा भी आरंभ कर दी गई थी, जिससे पार्टी की छवि प्रभावित हुए बिना नहीं थी। कुछ विधायकों के द्वारा अधिकारियों और ठेकदारों की बैसाखी का उपयोग भी आरंभ कर दिया गया था, इस सबकी गोपनीय रिपोर्ट भी आलाकमान तक पहुंच चुकी है।

भाजपा के राष्ट्रीय स्तर के एक वरिष्ठ नेता ने पहचान उजागर न करने की शर्त पर समाचार एजेंसी ऑफ इंडिया से चर्चा के दौरान कहा कि एक समय था जब मुख्यमंत्री या प्रधानमंत्री अथवा किसी बड़े नेता की सभा में नेताओं के द्वारा भीड़ ले जाई जाती रही है, जिससे उस नेता की जमीनी पकड़ का आंकलना वरिष्ठ नेताओं के द्वारा बहुत ही आसानी से लगाया जाता रहा है, किन्तु एक डेढ़ दशक से सत्ताधारी दल के नेताओं की सभा को सरकारी इवेंट में तब्दील कर दिया जाता है और सरकारी स्तर पर ही इस तरह के इवेंट में शामिल होने वाली भीड़ को लाने ले जाने, भोजन आदि के लिए बाकायदा बजट का आवंटन किया जाता है। इस तरह की कवायद से जमीनी नेताओं का टोटा अगर आने वाले समय में होने लगे तो किसी को आश्चर्य नहीं होना चाहिए।

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लिमटी खरे
हमने मध्य प्रदेश के सिवनी जैसे छोटे जिले से निकलकर न जाने कितने शहरो की खाक छानने के बाद दिल्ली जैसे समंदर में गोते लगाने आरंभ किए हैं। हमने पत्रकारिता 1983 से आरंभ की, न जाने कितने पड़ाव देखने के उपरांत आज दिल्ली को अपना बसेरा बनाए हुए हैं। देश भर के न जाने कितने अखबारों, पत्रिकाओं, राजनेताओं की नौकरी करने के बाद अब फ्री लांसर पत्रकार के तौर पर जीवन यापन कर रहे हैं। हमारा अब तक का जीवन यायावर की भांति ही बीता है। पत्रकारिता को हमने पेशा बनाया है, किन्तु वर्तमान समय में पत्रकारिता के हालात पर रोना ही आता है। आज पत्रकारिता सेठ साहूकारों की लौंडी बनकर रह गई है। हमें इसे मुक्त कराना ही होगा, वरना आजाद हिन्दुस्तान में प्रजातंत्र का यह चौथा स्तंभ धराशायी होने में वक्त नहीं लगेगा. . . .

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