अनुप्रश्न

2
204

 विजय निकोर

स्तब्धता को मसोसती

बूँद-बूँद

टपकते पानी की टप-टप

रसोई की साँस हो जैसे !

 

थाली में गरम रोटी परोसे

पुकार रही है प्रतिदिन

कई सालों से बार-बार

तुम्हारी प्यारी आवाज़ ।

 

जीभ पर स्वाद तो अभी भी है

तुम्हारी मलका-मसूर का,

तुम्हारे कोमल हाथों के खिलाए

मक्की की रोटी के कौर का ।

 

पड़ा है जहाँ-तहाँ, कब से

सभी कुछ यहाँ

यह पतीला, कलछी, यह थाल

तुम्हारी उपस्थिति के साथ ।

 

लेकिन दीवारों पर अब

सालों से लगी सीलन,

काँसे की कटोरी पर

कभी न उतरती कलौंस

और रसोई की हवा में फैली

सदैव निगरानी रखती

तुम्हारी चेतना का विस्तार,

अब यह सभी

चूल्हे से उठते धुएँ के संग

मेरी साँसों में घुल-घुल

मुझे छिन्न-भिन्न कर रहे हैं ।

 

माँ, आज बस एक दिन

तुम मुझको

हाथ में गरम रोटी लिए

इतने प्यार से न पुकारो,

और बस इतना बता दो

कि दूर उस परलोक में

तुम कैसी हो ?

Previous articleकुछ मीत मिले एक मीट हुई
Next articleआखिरकर बनाना रिपब्लिक बनाया किसने!
विजय निकोर
विजय निकोर जी का जन्म दिसम्बर १९४१ में लाहोर में हुआ। १९४७ में देश के दुखद बटवारे के बाद दिल्ली में निवास। अब १९६५ से यू.एस.ए. में हैं । १९६० और १९७० के दशकों में हिन्दी और अन्ग्रेज़ी में कई रचनाएँ प्रकाशित हुईं...(कल्पना, लहर, आजकल, वातायन, रानी, Hindustan Times, Thought, आदि में) । अब कई वर्षों के अवकाश के बाद लेखन में पुन: सक्रिय हैं और गत कुछ वर्षों में तीन सो से अधिक कविताएँ लिखी हैं। कवि सम्मेलनों में नियमित रूप से भाग लेते हैं।

2 COMMENTS

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

* Copy This Password *

* Type Or Paste Password Here *

17,871 Spam Comments Blocked so far by Spam Free Wordpress