बिहार जनादेश को लेकर ‘प्रवक्‍ता’ पर आईं प्रमुख टिप्‍पणियां

नरेश भारतीय, लेखक, पत्रकार एवं समीक्षक, लंदन :

बिहार के चुनाव परिणाम देश के लिए दिशा निर्धारक प्रतीत होते हैं. लगता है जातीय समीकरणों की बरसों से चली आ रही चुनावी राजनीती के लिए यह एक चेतावनी भरी चुनौती है. यह चुनौती बिहार कि जनता ने दी है और सभी राजनीतिक दलों के नेताओं को अपनी अपनी अपनी रीति नीति पर अब नए सिरे से विचार करने की आवश्यकता महसूस होनी चाहिए. इसे विकास की जीत बताया जा रहा है. कुशल प्रशासक-द्वय नीतीश कुमार और सुशील मोदी की जीत. इसी दृष्टि से यदि गुजरात की संतुलित एवं जनहित परक नीतियों के निर्धारक नरेन्द्र मोदी की उपलब्धियों का बिना पूर्वाग्रहों के मूल्यांकन किया जाये तो वह भी विकास की ही जीत रही है. शीशे की तरह से स्पष्ट हो रहा है भारत की जनता अब क्या चाहती है. यदि इस दिशा संकेत की सत्ताकांक्षी दलों ने उपेक्षा करने की गलती की और पूर्ववत सामाजिक विभाजन विखंडन की घृणित रणनीति से बाज़ नहीं आये तो यह राष्ट्रहित के विरुद्ध उनकी हठधर्मिता मानी जा कर जनता के कोपभाजन का कारण बन सकते हैं. सीधे अर्थों में देश की समस्त जनता के लिए बिहार और गुजरात श्रेष्ठ उदहारण बन कर खड़े हो रहे हैं. जन उद्बोधन और भविष्य में आम लोगों को मूर्ख बनाने वाले नेताओं का साहस के साथ सामना करने का यह विकासास्त्र, भारत को अनेक समस्याओं से मुक्ति दिलाने का अमोघ अस्त्र सिद्ध हो सकता है. आशा की जानी चाहिए कि इसका अगला वार भ्रष्टाचार से देश को मुक्ति दिलाने के लिए होगा, क्योंकि विकास प्रक्रिया को स्थायित्व तभी मिलने की सम्भावना हो सकती है यदि भ्रष्टाचार मुक्त वातावरण का साथ उसे मिले. उसके उन्मूलन के बिना आज भारत विश्व की एक महाशक्ति बन सकने की क्षमता का दावा करते हुए भी अनेक देशों द्वारा शंका की दृष्टि से देखा जाता है. देश की जनता इस रूकावट को भी दूर करने का साहस कर दिखायेगी उन्हें ऑंखें दिखा कर जो अपनी जबें भरने में लगे हैं तो भारत का और अपना बहुत बड़ा हित करेगी.

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डॉ. गौतम सचदेव, साहित्‍यकार, लंदन :

बिहार चुनाव ने बिहार राज्य की राजनीति की भावी दिशा ज़रूर तय की है, पूरे भारत की नहीं, क्योंकि भारत के अलग-अलग राज्यों की अपनी-अपनी राजनीति है और अपने-अपने राजनीतिक समीकरण। अभी देश से प्रान्तवाद, पाखंडपूर्ण जनवाद, भ्रष्टाचार, बाहुबलीवाद और नक़ली पन्थनिरपेक्षतावाद समाप्त नहीं हुए हैं। उनकी जड़ें कैंसर की तरह बहुत दूर तक फैली हुई हैं। हाँ, अन्य राज्य बिहार से सबक़ ज़रूर लेंगे कि चुनाव केवल जातिवाद या वंशवाद या झूठे वायदों से नहीं जीते जा सकेंगे। राजनीतिज्ञों को कुछ ठोस काम करके दिखाने होंगे। सीमित और स्वार्थपूर्ण राजनीति से ऊपर उठकर राज्य का विकास करना होगा। मतदाता को उल्लू बनाने की बजाय सन्तुष्ट करना होगा। बिहार के मतदाताओं की प्रशंसा की जानी चाहिये, जिन्होंने पुराने खिलाड़ियों और भ्रष्ट जातिवादियों तथा वंशवादियों की धमकियों और प्रलोभनों से ऊपर उठकर व्यापक हितों को महत्त्व दिया है, लेकिन साथ ही उससे यह भी पूछना चाहिये कि उसने दाग़ी और गम्भीर आपराधिक मामलों से जुड़े 60 प्रतिशत विधायकों को क्यों चुना?

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डॉ. मधुसूदन, प्रोफेसर, युनिवर्सीटी ऑफ मॅसाच्युसेटस, अमेरिका :

नीतिश कुमार और नरेंद्र मोदी साथ आए बिना जो गुजरात में चमत्कार हुआ है, अतुल्य(शक हो तो जाकर देख आइए।) विकास हुआ है, और बिहार में जो विकास प्रक्रिया प्रारंभ हुयी है, इन प्रतिमानों के आधारपर समग्र संपूर्ण भारत का विकास होना, असंभव नहीं, तो कठिन निश्चित ही है। देशहित में आप दोनोको जुडना ही होगा। जब जयप्रकाश जी नाना जी देशमुखके साथ हुए तब आपात्काल का अंत हुआ था। आपको चाणक्य बनना होगा। फिरसे पाटलिपुत्र के पुत्र से क्या यह अपेक्षा की जा सकती है? यह मत्स्यकी आंख को जो देख सकता है, वही शर संधान कर पाएगा। देशकी उन्नति, देशकी उन्नति, देशकी उन्नति यही है वह मत्स्यकी आंख। नरेंद्रजी और नीतिश जी साथ होकर ही इसका शर संधान कर पाएंगे। अन्यथा आपसी मतभेदमें शक्तिया बांटकर फिरसे भारतको आगे बढाने में असफल हो जाएंगे। क्या यह विवेक यह समझदारी की अपेक्षा की जा सकती है। स्वर्ण अवसर आया है।

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डॉ. धनाकर ठाकुर, सुप्रसिद्ध चिकित्‍सक एवं प्रवक्‍ता, अंतर्राष्‍ट्रीय मैथिली परिषद् :

एन डी ए को बिहार में ३९.१ प्रतिशत वोट मिला है और ६१ प्रतिशत वोट विपक्ष में पड़े हैं। ५२ प्रतिशत कुल मतदान हुआ है यानी २०.३३ लोगो ने ही पक्ष में वोट दिया। यह हमारे निर्वाचन पद्धति की कमजोरी है कि हम आकासकुसुम की तरह सोचने लगते हैं। बिहार का विकास कुछ इसी तरह का है। थोड़े काम में बहुत परिणाम पा जाते हैं। पर चुनावों से परिवर्तन नहीं होता न ही यह जयप्रकाश नारायण की ही अवधारणा थी जिनकी असफलता का कारण भी चुनावी सफलता रही। आखिर इस चुनाव फल से जयप्रकाश के एक चेले ने दूसरे को परास्त ही किया है और कुछ नहीं। कोई यह क्यों नहीं बताते कि विकास पुरुष नीतीश ने कितने करोडपति और अपराधियों को टिकट दिया? कितने गरीब कार्यकर्ता चुनाव में जीते हैं? कितने खर्च सरकारी विज्ञापनों में विकास के नाम पर अखबारों में किये गए? वैसे पटना का कुछ विकास जरुर हुआ है पर यह मिथिला के पिछड़ेपन के आधार पर हो रहा है वैसे भी इस चुनाव परिणाम में भी मधुबनी –दरभंगा में विरोध के स्वर पहचाने जा सकते हैं। जातीय समीकरण के माहिर विविध नामों से समाज को बाँटनेवाले गद्दी तो पा सकते हैं पर स्वस्थ समाज की रचना नहीं कर सकते पोस्ट मंडल और पोस्ट कमंडल क्या कैश कास्ट क्रिमिनल विधायकों का जमाना होगा? मैं लालू का समर्थक कभी नहीं रहा, लालू खराब थे, पर तीसरा अच्छा विकल्प क्यों नहीं बना? कमजोर विपक्ष से तानाशाही हे आती है. सही बात यह है की लालू के जिन ने अगड़ों का वोट महादलितों के मसीहा को बिना मांगे दिला दिया है, और बी जे पी ने जमीनी कार्यकर्ताओं से अपने को दूर कर लिया है – जीतनेवालों में संघ के स्वयमसेवक तो नगण्य हैं हाँ दलबदलुओं से दल भरा है किसी ने हाल में बदला पला तो किसी ने कुछ वर्ष पहले जिसमे प्रदेश अध्‍यक्ष भी हैं जिनका इस्तीफ़ा बेटे के परिषद् में भेजने पर वापस हुआ, अब आगे देखें होता है क्या?

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प्रो. रामेश्‍वर मिश्र पंकज, निदेशक, धर्मपाल शोध पीठ, संस्‍कृति मंत्रालय, भोपाल, मप्र :

बिहार चुनाव इस बात के प्रमाण हैं :समाज में कांग्रेस द्वारा फैलाई जा रही साम्प्रदायिकता को भारतीय समाज खतरनाक मान रहा है .मुसलमानों ने भी इस खतरे को पहचान लिया है; वे बहकावे में आने को तैयार नहीं है .विकास की बात तो हर पार्टी करती है .जनता दलों के नारे पर नहीं जाती. काम देखती है. भारतीय समाज मुस्लिम और नक्सली आतंकवाद को बढ़ावा देने की कांग्रेस राजनीति को भयावह मानता है. इसलिए भाजपा जनता दल मंच को उसने चुना.

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डॉ. सी.पी. राय, पूर्व राज्‍य मंत्री, उत्तर प्रदेश :

बिहार चुनाव में नितीश को स्वीकारने वालो ने तों पूरे गठबंधन को समान वोट दिया लेकिन कट्टर भाजपाइयों ने केवल भा जा पा को वोट दिया। उनकी रणनीति थी नितीश को नीचे ले जाना। पर आंधी नितीश कि थी इसलिए वो बच गए। चुनाव परिणाम अपनी कहानी स्वयं बयान कर रहे है | नितीश को क्या इन फासिस्ट ताकतों से सावधान रहना होगा। क्या नितीश को ये पता चल पायेगा कि भा जा पा ने उनको नीचे करने कि कोशिश की। जो बिहार को जानते हैं, जो बिहार कि राजनीति को जानते है, जो फासिस्ट ताकतों के तौर-तरीको को जानते है, उनके विचार आमंत्रित है कि वे इन बातो पर क्या सोचते हैं?

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डॉ. पुरुषोत्तम मीणा, सामाजिक कार्यकर्ता :

बिहार के मतदाता ने अपने फैसले में निम्न संकेत दिये हैं :-

1. गुण्डाराज, हिंसा और भ्रष्टाचार को नकारा है।

2. नीतीश के साथ-साथ भाजपा को स्वीकारा है।

3. विकास करने वाले स्वच्छ छवि के राजनैतिक नेतृत्व को सम्मान मिला है।

4. लालू-पासवान के सिद्धान्तों के विपरीत किये गये गठबन्धन को नकारा है।

5. स्थानीय नेतृत्व को उभारे बिना वोट पाने की कांग्रेसी उम्मीदों पर पानी फेरा है।

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डॉ. राजेश कपूर, पारंपरिक चिकित्‍सक :

कोई समझे तो बिहार का सन्देश है—-
– मुस्लिम मत दाताओं ने कांग्रेस के सारे आर्थिक पॅकेज उपेक्षित कर के कांग्रेस को नकार दिया है.
– भाजपा को मुस्लिम विरोधी बतलाने की मुहीम बे असर रही है.
– अप्रासंगिक होता भ्रष्टाचार बनाम स्वच्छ प्रशासन का मुद्दा सशक्त रूप से उभरा है. जबकि लगाने लगा था कि बढ़ाते असीमित भ्रष्टाचार के प्रति समाज संवेदनहीन होने लगा है.
– जातिवादी, गुंडई, बईमानी की राजनीती करने वालों के लिए ये चुनाव राजनैतिक मृत्यु का पैगाम लेकर आये हैं. लोकतंत्र पर समाप्त होते विश्वास में जीवन फूंकने का काम किया है इन चुनावों ने.
– एक सबसे बड़ी बात यह है कि राजनीति व नेताओं में समाप्त हुआ विश्वास और निराशा के घनघोर बादल तेज़ी से चटाने लगे हैं. एक आशा का संचार हुआ है कि अभी भी हालात लोक तंत्र के माध्यम से सुधर सकते है.
– याद रखना चाहिए कि बिहार के परिणामों के पीछे केवल नीतिश -भाजपा नहीं; स्‍वामी रामदेवजी द्वारा जगाया स्‍वाभिमान,और आशावाद भी है.
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श्रीराम तिवारी, वामपंथी चिंतक :

बिहार की जनता को बधाई। जनादेश में सार्थकता है। नितीश, शरद, सुशील जैसे ईमानदार सुलझे हुए नेताओं को न केवल बिहार अपितु बिहार के बाहर के लोग भी जो इन्हें जानते हैं, इनका आदर करते हैं। सुशील मोदी की छवि अटलजी जैसी धर्मनिरपेक्षतावादी है। नितीश और शरद यादव तो घोषित समाजवादी हैं ही सो उनकी छवि भी कट्टर जातेय्तावादी नहीं है। बिहार में अभी कोई खास विकाश नहीं हुआ और न ही कोई भूमि सुधार, क़ानून लागू हुआ, न सड़कें बनी न गाँवों में स्वच्छ पेय जल सुविधा है। न सरकारी चिकित्सा और न शिक्षा का ठिकाना है। फिर भी लालू जी ने पासवान जी ने और पप्‍पू यादवों ने बिहार की जनता पर जो कहर ढाया था ये उसका सवर्णवादी, पुनरुत्थानवादी तात्कालिक जबाब है। मरता क्या न करता। भले ही राहुल जी ईमानदार हों। युवाओं, गरीबों के लिए गाँव-गाँव में मारे मारे फिरें किन्तु बिहारियों में यदि मसखरों को मुख्यमंत्री वनाने की ललक होते है तो वे संजीदा लोगों को भी दुबारा कमान सौंप सकने में सक्षम हैं। इसीलिए-कुर्मियों, भूमिहारों, ब्राम्हणों, राजपूतों ने पूरी एकजुटता से कांग्रेस और वाम को निराश करते हुए – भाजपा और जदयू को प्रचंड बहुमत दिया की कहीं सवर्ण वोटों के बिखराव से भृष्ट महाबलियों और असहिष्णु जातीयतावादीयों का बिहार की जनता पर दुबारा कहर न टूटे। बिहार जहां था वहीं है। कहीं नहीं जाने वाला ….भ्रष्टाचार के अड्डे इतने मजबूत हैं कि उसमें सेंध मारना भी नितीश को मुश्किल हो रहा है किन्तु फिर भी यदि वे ऐसा कर पाते हैं तो यह देश के लिए बाकई सुखद दिशा निर्देश होगा। यह कठिन डगर है। बिहार में आज भी जातीयता से ही लोकतंत्र का निर्धारण हुआ है। सकारात्मक व्यक्तियों की छवि से चुनाव जीता जा सकता है। व्यवस्था परिवर्तन के लिए जनांदोलन की दरकार है और इसके लिए वर्गीय चेतना परम आवश्यक है। आशा की जानी चाहिए की बिहार की जनता और नेतृत्व धीरे-धीरे इस जात धर्म के गठजोड़ से परे विकास के वैज्ञानिक मापदंडों और वास्तविक लोकतंत्रात्मक मूल्यों को स्थापित करने में कामयाब होगी।

7 COMMENTS

  1. संपादक जी का नया प्रयोग अच्छा लगा, बस एक सुझाव देना चाहूँगा की इस लेख का विषय “बिहार जनादेश को लेकर ‘प्रवक्‍ता’ पर आईं प्रमुख टिप्‍पणियां” से बदलकर “बिहार जनादेश को लेकर ‘प्रवक्‍ता’ पर आईं प्रमुख लोगों की टिप्‍पणियां” कर दिया जाय.

  2. सी.पी.राय एक नेता है और नेता की तरह बात करते है. बिहार की खुशी और वाम-वंश-वर्ग की राजनीति के खिलाफ जनतंत्र की इस जीत को भी अपने नेताई चश्मे से देखते है. उनके अलावा सभी महानुभावो की टिप्पणिया पूर्वाग्रह से मुक्त और सटीक है.

  3. प्रवक्ता ब्यूरो से केवल यही अनुरोध है की महत्व पूर्ण टिप्पणियों का चुनाव करते समय नाम के बजाये टिप्पणियों की महत्ता को आंके.मैं यहाँ एक टिप्पणी का उल्लेख करता हूँ.वह है डाक्टर पि सी राय की टिपण्णी.इस तरह की टिपण्णी का कोई आधार या महत्व है क्या?इसको चुनी हुई टिप्पणियों में स्थान देने का क्या औचित्य है?केवल यही न की टिप्पणीकार उत्तर प्रदेश के मंत्री रह चुके हैं.

  4. एक महत्वपूर्ण सन्देश अनदेखा रह गया है.यही वह बिहार है जिसे भारत का सबसे बड़ा गुंडा राज का गढ़ समझा जाता था. भारत की सबसे निराशाजनक और अपमान जनक कसौटी बिहार को प्रदर्शित किया गया था. अपराध, दादागिरी और ब्रश्ताचार की सबसे बड़ी मिसाल के रूप में कल तक बिहार को ही याद किया जाता था. मुझे याद है कि बिहार के रहने वाले कहते थे कि जिस बहन के ४-५ भाई नहीं और वह परिवार शक्तिशाली लौबी का नहीं तो निश्चित है कि उस बेटी को गुंडे शरेआम उठा ले जायेंगे.. ऐसी दयनीय दशा का बिहार सही नेतृत्व मिलने पर इतना चमत्कारिक रूप में बदल सकता है तो फिर सारा भारत क्यों नहीं बदल सकता ? मतलब साफ़ है कि देश की जनता आज भी सही है, बस बात इतनी है कि देश का शासन गलत हाथों में है, देश के छद्म शत्रुओं द्वारा इसका संचालन हो रहा है. जो कमाल बिहार में हुआ, वही कमाल राष्ट्रीय क्षितिज पर भी होने वाला है, इसमें किसी को संदेह होतो हो; मुझे तो लेशभर भी संदेह नहीं. ये तो बस शुरुआत है जिस से देश के दुश्मनों के औसान गुम हैं. आगे-आगे देखिये होता क्या है !

  5. इन बड़े नामों द्वारा दी गयी टिप्पणिओं से मुझे एक बहुत पुरानी कविता स्मरण आ गयी.कविता अंगरेजी में थी और उसका शीर्षक था,एलिफैंट एंड सेवेन ब्लाइंड मेन ऑफ़ इण्डिया.हमारे इन बड़े टिपण्णी कारों की भी बिहार के सन्दर्भ में यही कुछ हालत लग रही है.ऐसे मैंने भी टिपण्णी की थी,पर उसका उल्लेख प्रवक्ता के संपादक नहीं कर सके,क्योंकि मेरे जैसे लोग तो भीड़ का एक हिस्सा होते हैं.वे क्या और उनकी औकात क्या?यह टिपण्णी भी छाप जाये,मेरे जैसों के लिए यही बहुत है.

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