आपदा की चपेट में राजधानी

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डॉ.वेदप्रकाश

     बाढ़,भूकंप,आंधी,तूफान आदि के रूप में प्रकृति द्वारा अथवा किसी बिमारी- महामारी की स्थिति में किसी आपदा को झेलना तो मजबूरी होती है लेकिन जब राजनीतिक नेतृत्व ही पूरे वातावरण को आपदा जैसा बना दे तो वहां के लोगों का जीवन बदहाली का शिकार हो जाता है। राजनीतिक नेतृत्व होता ही इसलिए है कि वह जनकल्याण के लिए योजनाएं बनाकर काम करे और किसी भी प्रदेश अथवा जनपद के विकास हेतु प्रयासशील रहे लेकिन देश की राजधानी में लंबे समय से इसके विपरीत ही घटित हो रहा है। सर्वविदित है कि दिल्ली के मुख्यमंत्री सहित कई मंत्री और बड़े नेता कई महीने जेल में रहे। राष्ट्रीय राजधानी में दिन प्रतिदिन अनेक निर्णय ऐसे होते हैं जो मुख्यमंत्री द्वारा तत्काल क्रियान्वित करने की आवश्यकता पड़ती है. सोचिए जहां कई महीनों तक मुख्यमंत्री जेल में रहा तो क्या राजधानी आपदा की चपेट में नहीं थी और उसके बाद भी स्थिति बदहाल ही है।
       दिल्ली सरकार के रूप में नेतृत्व कर रही पार्टी का एक दशक आरोप-प्रत्यारोपों में ही बीत गया। हम ये करेंगे, हम वो करेंगे, हुआ कुछ नहीं। राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरो के आंकड़े बताते हैं कि वर्ष 2022 में महिलाओं के विरुद्ध अपराध की दर सबसे अधिक दिल्ली में 144.4 दर्ज की गई। दिल्ली एनसीआर में विभिन्न सरकारी एवं गैर सरकारी कार्यालय हैं जहां देश-विदेश से स्त्री पुरुष काम के लिए आते हैं, क्या ऐसे में उपर्युक्त आंकड़े चिंताजनक नहीं हैं? विगत दिनों दिल्ली में कचरे की स्थिति पर चिंता व्यक्त करते हुए माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने टिप्पणी करते हुए कहा कि- अशोधित ठोस कचरे से दिल्ली में सार्वजनिक स्वास्थ्य आपातकाल का खतरा है। गौरतलब है कि दिल्ली में अनेक स्थानों पर कूड़े के पहाड़ बने हुए हैं। राष्ट्रीय राजधानी में प्रतिदिन लगभग 11000 टन कूड़ा निकलता है, जिसमें से लगभग 8000 टन ही विभिन्न माध्यमों से निस्तारित हो पाता है, बाकी 3000 टन ठोस कचरा यहां वहां पड़ा रहता है, उसका निस्तारण नहीं हो पा रहा है।

 ई कचरा भी एक बड़ी समस्या बन चुका है। अशोधित कचरे को लेकर दिल्ली सरकार न तो चिंतित है और न ही उसके पास योजना है। फलस्वरूप जन जीवन खतरे में है। राष्ट्रीय राजधानी में अनधिकृत निर्माण और अतिक्रमण की स्थिति भी चिंताजनक है। दिल्ली में जनसंख्या का दबाव लगातार बढ़ रहा है। वोट बैंक की राजनीति के कारण भिन्न-भिन्न रूपों में सड़क, फुटपाथ एवं खाली जमीन पर अतिक्रमण जारी है।
      राष्ट्रीय राजधानी में यमुना में प्रदूषण की स्थिति भी सर्वविदित है। दिल्ली में छोटे बड़े लगभग 713 नाले हैं, जिनमें से कुछ की ही सफाई हुई है। बारिश का पानी कहां जाएगा? प्रतिवर्ष नालों की सफाई के नाम पर करोड़ों रुपया कहां जा रहा है? दिल्ली में अनेक स्थानों पर लगभग 35 सीवरेज संशोधन प्लांट लगने थे, उनका क्या हुआ? सैकड़ों नाले सीधे यमुना में गिर रहे हैं,क्यों? दिल्ली में यमुना का प्रवाह क्षेत्र लगभग 40 किलोमीटर है, वजीराबाद वाटर वर्क्स से कालिंदी कुंज का प्रवाह क्षेत्र सर्वाधिक प्रदूषित है। यहां यमुना नाले में तब्दील हो चुकी है। पिछले 10 वर्षों में यह बदहाली लगातार बढ़ी ही है। पुनः प्रश्न नीति और नियत का खड़ा होता है।

ज्ञात हो कि वायु प्रदूषण की दृष्टि से भी राजधानी दिल्ली सर्वाधिक प्रदूषित शहरों में गिनी जा रही है,जहां एक्यूआई 500 तक पहुंच जाता है। वायु प्रदूषण के गंभीरतम श्रेणी में पहुंचने पर स्थानीय प्रशासन थोड़ा बहुत हरकत में आता है किंतु कभी पराली को कारण बताकर तो कभी पड़ोसी राज्यों पर आरोप लगाकर इतिश्री कर ली जाती है। पर्यावरण वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय द्वारा जारी आंकड़ों से पता चला है कि राष्ट्रीय राजधानी वायु प्रदूषण नियंत्रण हेतु दिए गए धन का केवल 33 प्रतिशत ही उपयोग कर पाई। क्या विद्यालयों की छुट्टी कर देने से और समुचित काम न करने से वायु प्रदूषण की समस्या हल हो सकेगी? राष्ट्रीय राजधानी में चुनाव केवल मुफ्त की घोषणाओं के आधार पर हो रहे हैं, लेकिन फ्रीबीज की इस मानसिकता का खामियाजा यहां के नागरिक भुगत रहे हैं।
      राजधानी में पेय जल का विकट संकट है गर्मियों में यह समस्या इतनी विकराल हो जाती है कि लोग दिनभर पानी के लिए लाइन में खड़े रहते हैं। टैंकर माफिया ऐसी स्थिति का खूब लाभ उठाते हैं और शासन- प्रशासन मूक दृष्टा बना रहता है। क्या शुद्ध वायु और शुद्ध पेयजल नागरिकों का संविधान सम्मत अधिकार नहीं है? दिल्ली सरकार के लोकनायक, गुरु तेग बहादुर, जीबी पंत सहित आठ अस्पतालों में 200 करोड़ रुपए का घोटाला, मोहल्ला क्लीनिकों में भिन्न-भिन्न प्रकार की अनियमितताएं स्वास्थ्य क्षेत्र में राजधानी की बदहाली को उजागर करती हैं। दिल्ली सरकार के वित्त पोषित 12 कॉलेजों में वेतन, मूलभूत सुविधाओं एवं फंड न देने के कारण वहां के हजारों शिक्षक और गैर शिक्षक कर्मचारी लंबे समय से सड़कों पर प्रदर्शन कर रहे हैं। विद्यालयों में हजारों शिक्षक अतिथि शिक्षक अथवा ठेके पर काम कर रहे हैं, क्या यही शिक्षा का वैश्विक मॉडल है? विगत दिनों ओल्ड राजेंद्र नगर में कोचिंग सेंटर के बेसमेंट में पानी घुसने से तीन छात्रों की मौत का मामला सर्वविदित है। दिल्ली में ऐसे हजारों अवैध बेसमेंट बने हुए हैं जिनमें बिना मानकों का पालन किए ही व्यावसायिक गतिविधियां चल रही हैं। थोड़ी सी बारिश होते ही जगह-जगह जल भराव हो जाता है, फिर या तो छुट्टी कर दी जाती है अथवा कोई अन्य बहाना, क्या यही दिल्ली के विकास का सिंगापुर मॉडल है?

विगत दिनों बारिश के मौसम में जल भराव व करंट लगने से 2 महीने में ही 20 लोगों की मौत हुई थी। राजेंद्र नगर हादसे पर उच्च न्यायालय की टिप्पणी भी चिंताजनक है। न्यायालय ने कहा- जब मुफ्तखोरी की संस्कृति के कारण टैक्स का संग्रह नहीं होता है तो ऐसी घटनाएं होनी तय होती हैं। मुफ्तखोरी की कलर के कारण सरकार के पास बुनियादी ढांचे के विस्तार के लिए पैसा नहीं है। सिविक एजेंसियों के पास भी पैसा नहीं है। एमसीडी दिवालिया हो चुकी है। उसके पास कर्मचारियों को सैलरी देने के लिए पैसा नहीं है, तो इंफ्रास्ट्रक्चर को कैसे बेहतर करेंगे?
       राजधानी दिल्ली में शराब नीति घोटाला भी सर्वविदित है जिसमें मुख्यमंत्री और उपमुख्यमंत्री कई महीने जेल में रह चुके हैं। हाल ही की कैग रिपोर्ट में दिल्ली सरकार की शराब नीति के कारण 2026 करोड़ के राजस्व घाटे का समाचार छपा है। दिल्ली जल बोर्ड 2013 में 600 करोड़ के मुनाफे में था,दिल्ली सरकार की मुफ्त की नीति और समुचित योजना न होने से पिछले एक दशक में यह 73000 करोड़ के वित्तीय घाटे में है। 40-50 वर्ष पुरानी पाइप की लाइनें खोखली और जर्जर हो चुकी हैं। कई अनियोजित बस्तियों में पेयजल व सड़के उपलब्ध नहीं हैं।
      दिल्ली परिवहन निगम में हजारों कर्मचारी ठेके पर काम कर रहे हैं, जिन्हें समय पर वेतन नहीं मिलता। फ्री यात्रा और अनियोजित बस खरीद से दिल्ली परिवहन निगम भी लगातार घाटे में चल रहा है। दूरदर्शन के 30 नवंबर 2024 के एक समाचार के अनुसार दिल्ली सरकार राजकोषीय घाटे की ओर बढ़ती जा रही है अधिकारियों व कर्मचारियों के वेतन हेतु भी संकट है,अस्पतालों में दवाइयों और उपकरणों की कमी है, स्वच्छ पेयजल का भी संकट है, समाचारों में दिल्ली सहित हिमाचल,कर्नाटक, तेलंगाना और पंजाब की आर्थिक बदहाली पर भी विस्तार से विश्लेषण किया गया है। ध्यान रहे फ्रीबीज का बोझ अर्थव्यवस्था पर पड़ता है, ऐसे में विकास के लिए योजनाएं क्रियान्वित नहीं हो पाती।

विगत लंबे समय से दिल्ली का मुख्यमंत्री आवास भी सुर्खियों में है। विगत दिनों दिल्ली में 4500 करोड़ की विभिन्न परियोजनाओं के उद्घाटन व शिलान्यास के अवसर पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि-अन्ना हजारे को आगे करके कट्टर बेईमानों ने दिल्ली को आपदा (आप-दा) में धकेल दिया। इन लोगों ने प्रदूषण में, शराब में घोटाला किया। भर्तियों को भी घोटाले का शिकार बनाया। आप आज आपदा बनकर टूट पड़ी है। दिल्ली की हर गली से आवाज आ रही है- आप-दा को नहीं सहेंगे, बदल कर रहेंगे। यह भी सर्वविदित है कि दिल्ली में आयुष्मान योजना लागू नहीं हो पाई है जिससे लाखों लोग अच्छे इलाज से भी वंचित हैं। विगत 10 वर्षों में स्वास्थ्य, शिक्षा,आवास, वायु प्रदूषण से मुक्ति, यमुना की प्रदूषण से मुक्ति, सबको स्वच्छ पेयजल की उपलब्धता और जनकल्याण के अनेक कार्य नहीं हो पा रहे हैं। शराब नीति घोटाला, जल बोर्ड घोटाला, भर्ती घोटाला आदि के कारण राष्ट्रीय राजधानी आपदा की चपेट में है। इस बार के चुनाव में भी सभी दल मुफ्त की योजनाओं की घोषणा कर चुके हैं। ऐसे में राजधानी दिल्ली के मतदाताओं को आप-दा से निकलने के लिए मतदान करना चाहिए, उन्हें अपना और बेहतर दिल्ली का भविष्य चुनना चाहिए।


डॉ.वेदप्रकाश

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