राहुल को पीछे छोड़,आगे बढ़ती कांग्रेस!

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Uttar-Pradesh-Election-2017संजय सक्सेना
उत्तर प्रदेश जीतने को आतुर कांग्रेस में आजकल रेवड़ियां बांटने का काम चल रहा है। न किसी नेता की विवादित छवि पर गौर किया जा रहा है, न ही किसी की सियासी हैसियत का अंदाजा लगाया जा रहा है। ‘एक साधे सब सधे’ की तर्ज पर आगे बढ़ रहे कांग्रेस के रणनीतिकारों ने ऐसा शमा बांध रखा है, मानों प्रदेश की 21 करोड़ जनता अगले वर्ष होने वाले विधान सभा चुनाव में सत्ता की चाबी उन्हीं को सौंपने वाली हैं। सिर्फ जातीय समीकरणों का ध्यान रखकर आगे बढ़ती कांग्रेस में सबके हिस्से में कुछ न कुछ आ रहा है। जिनको अभी तक ‘चुका’ हुआ मान कर हासिये पर डाल दिया गया था, उनकी ‘रेवड़ी बाजार’ में अच्छी कीमत लग गई। वह नेता जिनका यूपी से कभी दूर-दूर तक कोई लेना-देना नहीं था, वह 27 साल से प्रदेश में वनवास काट रही कांग्रेस को नंबर एक पर ले आने के बड़े-बड़े दावे कर रहे हैं। हर उस चेहरे पर दांव लगाया जा रहा है जिनके सहारे कुछ वोटों का जुगाड़ हो सकता है। दिल्ली की सीएम रहीं शीला दीक्षित हों या फिर जम्मू कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री गुलाम नबी आजाद अथवा अभिनेता से नेता बने राजब्बर या फिर मोदी की बोटी-बोटी काट देने का दम भरने वाले विवादित नेता इमरान मसूद। लिस्ट काफी लम्बी है। इसमे संजय सिंह भी शामिल हैं और प्रमोद तिवारी, पूर्व केन्द्रीय मंत्री सलमान खुर्शीद, श्री प्रकाश जायसवाल का भी नाम शामिल है। ऐसा लगता है कि कांग्रेस के रणनीतिकारों ने तय कर लिया है कि एक ही घाट पर वह सबको ‘पानी’ पिलायेंगे।
फिलहाल, किसी को कोई काम नहीं दिया गया है तो वह राहुल गांधी हैं, जो राहुल 2009 के लोकसभा, 2012 के विधान सभा, 2014 के लोकसभा चुनाव तक प्रदेश में कांग्रेस को आगे लाने के लिये ‘वन मैन आर्मी’ की तरह जुझते रहे थे। यह और बात थी कि उन्हें सफलता नहीं मिली। इसी लिये ऐसा प्रतीत होता है कि कांग्रेस का थिंक टैंक राहुल को पीछे छोड़कर आगे बढ़ने को बेताब है। मगर,यह बात प्रत्यक्ष तौर पर शायद ही कोई स्वीकार्य करे। राहुल को कांग्रेस का स्टार प्रचारक बताया जायेगा। उनकी ही सरपरस्ती में चुनाव लड़े जाने का दावा किया जायेगा, लेकिन कांग्रेस को बढ़त दिलाने का जिम्मा प्रियंका गांधी,शीला दीक्षित,गुलाम नबी आजाद, राबब्बर, जेसे नेताओं पर होगा। अगर कांग्रेस के पक्ष में नतीजे आये तो सेहरा गांधी परिवार के बंध जायेगा,लेकिन नतीजे उलटे आये तो बलि का बकरा बनने के लिये तमाम नेता मौजूद रहेगे।
कौन पार्टी बाजी मारेगी और कौन पिटा मोहरा साबित होगा। यह सब नतीजे आने के बाद पता चलेगा,मगर सियासी गलियारों में चर्चा इस बात की भी हो रही है कि अगर कांग्रेस का चुनाव में रिकार्ड अच्छा रहा तो इसका असर पूरे देश की सियासत पर दिखाई देगा। हो सकता है कांग्रेस में राहुल अध्याय बंद हो जाये और प्रियंका वाड्रा का चेप्टर खुल जाये। निश्चित तौर पर दस जनपथ का ध्यान इस ओर भी होगा। राजनीति संभावनाओं का खेल है,इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता है और फिर कांग्रेस का तो इस तरह का इतिहास भी रहा है। राजीव और संजय गांधी के मामले मंे क्या हुआ किसी से छिपा नहीं है।वैसे भी राहुल गांधी की सियासी समझ पर सवाल उठते रहते हैं। स्वयं कांग्रेसी ही प्रियंका को राहुल से ज्यादा तवज्जो देते हैं। यूपी में नतीजे कांग्रेस के पक्ष में आये तो प्रियंका को बहुत समय तक राष्ट्रीय राजनीति से दूर रखना दस जनपथ के लिये मुश्किल हो जायेगा।
कांग्रेस के रणनीतिकार प्रशांत किशोर भले ही अपनी सियासी चालों से कांग्रेसियों में उर्जा भरने की कोशिश कर रहे हों, लेकिन जाने-अंजाने उन्होंने बीजेपी को भी हमलावर होने का मौका दे दिया है। बीजेपी नेता चुनावी बिसात पर मजबूती के साथ कदम बढ़ाते हुए यूपी में प्रियंका वाड्रा को आगे किये जाने के बहाने राहुल गांधी की योग्यता पर सवाल खड़े कर रहे हैं तो प्रियंका के आगे बढ़ने की खबर आते ही बीजेपी ने उनके पति राबर्ट वाड्रा के विवादित जमीन सौदों पर भी सुर तेज कर दिये है। शीला दीक्षित के भ्रष्टाचार को उछाला जाने लगा है। दिल्ली का सीएम रहते यूपी वालांे को दिल्ली पर बोझ बताने वाले शीला दीक्षित के बयान को सियासी हवा में उछाला जा रहा है तो मोदी के खिलाफ अपशब्द बोलने वाले इमरान मसूद के बहाने हिन्दुओं को कांग्रेस का असली चेहरा दिखाने की भी कोशिश हो रही है।
भले ही कांग्रेसी कुछ भी कहें लेकिन हकीकत यही है कि कांग्रेस ने हमेशा से वोट बैंक की राजनीति की हैं,जिसे 2017 के विधान सभाा चुनाव में भी वह आगे बढ़ाने जा रही है। अगर शीला दीक्षित को दिल्ली से यूपी लाया गया है तो इसकी वजह प्रदेश के लगभग 14 प्रतिशत ब्राहमण वोटर हैं। प्रमोद तिवारी को भी इसी लिये तरजीह मिलना शुरू हो गई है। गुलाम नबी आजाद की भी यूपी में इंट्री इसी लिये हुए है क्योंकि कांग्रेस आलाकमान को लगता है कि आजाद और इमरान मसूद जैसे विवादित बोल वाले नेताओं का मुसलमानों में बड़ा प्रभाव है और इनके सहारे वह मुसलमानों के वोट हासिल कर सकती है। मिशन मुस्लिम वोटर को सलमान खुर्शीद,जफर अली नकवी जैसे नेता भी आगे बढ़ायेंगे। नवनियुक्त यूपी कांग्रेस अध्यक्ष राजब्बर की अभी तक यही पहचान थी कि वह अभिनेता से नेता बने थे,लेकिन अब कांग्रेस के लिये राजब्बर पिछड़ों को लुभाने वाला एक चेहरा बन गये हैं। संजय सिंह को क्षत्रिय होने के नाते महत्व दिया गया है।
कांग्रेस ने अपने सभी क्षत्रपों को आगे जरूर कर दिया है,परंतु इसका यह मतलब नहीं है कि इससे कांग्रेस की राह आसान हो जायेगी। ब्राहमण और क्षत्रिय कांग्रेस से दूरी बनाने के बाद बीजेपी के करीब आ गया है। मुसलमानों पर समाजवादी पार्टी अपना ठप्पा लगाये रहती है। वैसे,भी मुसलमान कभी भी देश या प्रदेश के हित में वोटिंग नहीं करते हैं। उनका एक ही लक्ष्य होता है। वह उसी प्रत्याशी को जिताने की कोशिश में रहते हैं जो बीजेपी को शिकस्त दे सकता है। इस मामले में समाजवादी पार्टी और कुछ हद तक बसपा भी कांग्रेस से ज्यादा बेहतर है।बात पिछड़ों की कि जाये तो यह वर्ग हिस्सों में बंटा हुआ है। यादव सपा के साथ खड़े दिखते हैं तो भाजपा इस बार पिछड़ों को लुभाने के लिये शुरू से ही जोर लगाये हुए है। दलित कभी कांग्रेस का मजबूत वोट बैंक हुआ था लेकिन अब परम्परागत रूप से दलितों को बसपा का वोट बैंक माना जाता है। 2014 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी इसमें कुछ हद तक सेंध लगाने में सफल रही थी।इसके बाद से बीजेपी लगतार दलितों पर फोकस करके सियासत करती चली आ रही है।

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संजय सक्‍सेना
मूल रूप से उत्तर प्रदेश के लखनऊ निवासी संजय कुमार सक्सेना ने पत्रकारिता में परास्नातक की डिग्री हासिल करने के बाद मिशन के रूप में पत्रकारिता की शुरूआत 1990 में लखनऊ से ही प्रकाशित हिन्दी समाचार पत्र 'नवजीवन' से की।यह सफर आगे बढ़ा तो 'दैनिक जागरण' बरेली और मुरादाबाद में बतौर उप-संपादक/रिपोर्टर अगले पड़ाव पर पहुंचा। इसके पश्चात एक बार फिर लेखक को अपनी जन्मस्थली लखनऊ से प्रकाशित समाचार पत्र 'स्वतंत्र चेतना' और 'राष्ट्रीय स्वरूप' में काम करने का मौका मिला। इस दौरान विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं जैसे दैनिक 'आज' 'पंजाब केसरी' 'मिलाप' 'सहारा समय' ' इंडिया न्यूज''नई सदी' 'प्रवक्ता' आदि में समय-समय पर राजनीतिक लेखों के अलावा क्राइम रिपोर्ट पर आधारित पत्रिकाओं 'सत्यकथा ' 'मनोहर कहानियां' 'महानगर कहानियां' में भी स्वतंत्र लेखन का कार्य करता रहा तो ई न्यूज पोर्टल 'प्रभासाक्षी' से जुड़ने का अवसर भी मिला।

2 COMMENTS

  1. कांग्रेस का इतिहास सदैव धर्म ,जाति , व क्षेत्रवादिता की दीवार खड़ी कर वोटों को बांटना व चुनाव जीतना रहा है ,सही मायने में तो देश का उच्च्तम श्रेणी का साम्प्रदायिक दल रही है , देश की जनता पहले उसके इस खेल को शायद न समझ पाई हो , लेकिन अब उसका असली चेहरा जनता से छुपा नहीं रहा है ,कांग्रेस की हालत में इस चुनाव के बाद कुछ वोट बैंक बढ़ने की सम्भावना जरूर है लेकिन उसके पीछे मुख्य कारण जनता का असंतोष ही होगा , लेकिन जो कुछ भी होगा वह प्रियंका का ही प्रभाव होगा , शेष पर न तो जनता का विश्वास है न उनमें कोई क्षमता है , दीक्षित जैसी थकी, बूढी, व दिल्ली की जनता द्वारा अस्वीकृत नेता पर जनता अब ज्यादा यकीन नहीं करने वाली है
    उससे ऊपर ये भी है कि अन्य दल भी यही कार्ड खेलने वाले हैं , स पा सत्ता में होने का लाभ जरूर उठाएगी , मायावती दलितों को जरूर गुमराह करने का जतन करेगी, और भा ज पा तो साम, दण्ड भेद सभी कुछ अपनाएगी , प्रशांत किशोर की इंजीनियरिंग की असली परीक्षा अब ही होनी है , और लगता है अबकी बार वे रहेंगे और उनका मुलम्मा उतर जाएगा , अमित शाह का पिछला होम वर्क भी कुछ काम जरूर आएगा , राहुल तो मात्र मुखौटा बन कर रह गए हैं व कांग्रेस ने अंदर ही अंदर उनकी क्षमताओं का गहन मूल्यांकन कर लिया है , जो कहा नहीं जा सकता
    कुछ यह भी सम्भावना है कि स्पष्ट बहुमत ही न आ पाये , लेकिन अभी ऊँठ कई करवट बदलेगा

  2. लेख में शीला दीक्षित को “यू.पी. की सी एम रहीं’ बताया गया है जो एक गम्भीर तथ्यात्मक त्रुटि है! कृपया इसे सुधारने का कष्ट करें!

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