इंसानों की दुनिया में सुनीता ने रखा कदम?

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डॉ. रमेश ठाकुर


इंसानों की दुनिया में तुम्हारा फिर से स्वागत है सुनीता। तुम्हारी इस शानदार उपलब्धि ने नारी शक्ति की गाथा को नए सिरे से लिख दिया है। धरा पर सकुशल लौटी सुनीता के लिए बस यही कहा जाएगा,…. ‘नारी तू नारायणी’। बीते 9 महीनों से अंतरिक्ष में फंसी सुनीता विलियम्स की आकाश से धरती पर सफल लैंडिंग की अद्भुत, अकल्पनीय कहानी ने जो कारनामा कर दिखाया है, उसे दुनिया युगांतर तक याद रखेगी। जब तक धरती रहेगी, उनके किस्से सुनाए जाते रहेंगे। सुनीता की यात्रा महज 10 दिनों की थी, लेकिन तकनीकी खामियों ने उन्हें आकाश में लंबे समय तक रोके रखा। बुधवार भोर में जब ड्रैगन अंतरिक्ष यान सफलतापूर्वक पृथ्वी पर उतरा, तो समूचे संसार ने अंतरिक्ष यात्रियों का दिल खोलकर स्वागत किया। पूरा संसार टीवी की स्क्रीन पर नजरें गड़ाए हुए था। उनकी सकुशल वापसी की दुआएं कर रहे थे। आखिरकार लोगों की दुआएं और नासा की कोशिशें सफल हुईं। सुनीता विलियम्स और क्रू सदस्य बुच वेल्लोर, निक हेग और रूसी यात्री अलेक्सांद्र गोरबुनोव लंबा समय बिताकर लौट आए। धरा पर पांव रखने के बाद सुनीता ने जो बताया उसे सुनकर लोगों के रोंगटे खड़े हो गए, उन्होंने बताया कि एक वक्त तो उन्होंने जीने की उम्मीदें छोड़ दी थी, उन्हें लगा अब धरती पर लौट पाना संभव नहीं? जीने की तकरीबन उम्मीदें उन्होंने त्याग दी थी। लेकिन हौसले को टूटने नहीं दिया?

 
नासा के लगभग 11 प्रयास असफल हुए थे। विटामिन-डी की कमी सुनीता के शरीर में लगातार कम हो रही थी। इस दरम्यान उन्होंने निश्चय किया, बेशक वो जमीन पर न लौट पाए? पर, अंतरिक्ष में उनकी दुर्लभ रिसर्च जारी रहेंगी। उनकी हिम्मत को आज मानव जीवन का प्रत्येक शख्स दाद दे रहा है। शेर के मुंह से कैसे निकलते हैं, जिसका सजीव उदाहरण सुनीता ने पेश किया है। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड टर्म का चुनावी वादा भी पूरा हुआ। चुनाव में उन्होंने सुनीता को वापस लाने का वादा देशवासियों से किया था। सुनीता को अंतरिक्ष से लाने वाला ड्रैगन कैप्सूल का निर्माण हाल में ही राष्ट्रपति की विशेष अनुमति से युद्वस्तर पर करवाया गया। अंतरिक्ष यात्री को लेकर जब ड्रैगन कैप्सूल समुद्र में गिरा, तो उसका नजारा देखने लायक था। डॉल्फिन मछलियां भी उछल-उछल कर उनका स्वागत कर रही थीं। एस ऐतिहासिक पल का साक्षी बनकर पूरा जगत भी गदगद हुआ।

 
सुनीता के हौसले ने नया इतिहास लिखा है। नारी शक्ति का बेजोड़ उदाहरण पेश किया है। 5 जून 2024 को सुनीता विलियम्स और बुच विल्मोर दोनों ने नासा के मिशन के तहत बोइंग के अंतरिक्ष यान में बैठकर इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन के लिए उड़ान भरी थी। मिशन की अवधि मात्र 10 दिनों में पूरा करने की थी। लेकिन अंतरिक्ष यान में खराबी आने से मिशन महीनों आकाश में फंसा रहा। इसी कारण 10 दिनी मिशन को 9 महीनों में पूरा किया गया। शायद नियति को यही मंजूर था, इसलिए उसने 19 मार्च 2025 की तारीख को सुनीता और बुच, निक हेग और अलेक्जेंडर गोर्बुनोव का आना धरती पर मुकर्रर कर रखा था। 19 मार्च का तड़के सुबह 3.27 बजे का समय भी इतिहास के पन्नों में दर्ज हो गया। सुनीता समेत अंतरिक्ष यात्री क़ी सकुशल वापसी ने पुरे विश्व में खुशी का माहौल पैदा किया है।

 
सुनीता से परिचित तो अब सभी का हो चुका है, जानते भी हैं कि वह भारतीय मूल की हैं। उनका परिवार भारत के गुजरात राज्य से वास्ता रखता है। पिता दीपक पांड्या गुजरात के झूलासण के रहने वाले थे, जो वर्ष-1957 में अमेरिका जाकर बस गए थे। झूलासण के लोग भी कल से आपस में लड्डू बांटकर सुनीता के आगमन में खुशियां मना रहे हैं। ढोल-नगाड़ों से स्वागत कर रहे हैं। सुनीता अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारतीय मूल की दूसरी अमेरिकी अंतरिक्ष यात्री हैं। उनसे पहले हरियाणा की कल्पना चावला भी ये उपलब्धि हासिल कर चुकी थीं। पर, 2003 में कोलंबिया स्पेस शटल के दुर्घटना होने से उनकी दुखद मृत्यु हो गई थी। सुनीता का जन्म 1965 में हुआ था। उनकी मां का नाम उर्सुलाइन बोनी पांड्या है, जो स्लोवेनिया से हैं। सुनीता ने पहली बार वर्ष-2006 में डिस्कवरी स्पेस शटल के जरिए अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन पर गई थीं।

 
बहरहाल, अमेरिकी हुकूमत के इस पूरे मिशन और नासा स्पेसएक्स टीम की कड़ी मेहनत और समर्पण की लोग सराहना कर रहे हैं। ड्रैगन कैप्सूल जब आकाश से नीचे गिर रहा था, और धरती पर उतरने की दूरी जब 18 हजार फिट रह गई थी, तब उसे पैराशूट के जरिए समंदर में लैंड करवाया गया। उस समय सभी दिल थामे बैठे थे। मन में डर का भाव भी उमड़ रहा था। क्योंकि 2003 में हम कल्पना चावला को खो चुके थे। उनका ख्याल भी मन को विचलित कर रहा था। लैंडिंग के वक्त न सिर्फ नासा के कंट्रोल रूम के साइंटिस्टों की नजरें स्क्रीन पर टिकी थी, बल्कि संपूर्ण जगत टीवी से चिपका हुआ था। निश्चित रूप से दृश्य धड़कनें बढ़ाने वाला था। समंदर में उतरने के करीब 10-12 मिनट तक तो चारों ओर सन्नाटा पसरा रहा, थोड़ी देर बाद वैज्ञानिकों ने सिक्यॉरिटी चेक किया। नासा के मुताबिक कैप्सूल को तुरंत और सीधे नहीं खोला जाता। भीतरी और बाहरी तापमान को एक लेवल पर किया जाता है। क्योंकि कैप्सूल जब धरती के वातावरण में घुसता है, तो जमीन की गर्मी से एकदम लाल होता है। इसलिए समंदर में उतरने के बाद भी उसके तापमान के सामान्य होने का इंतजार किया जाता है। नासा ने इस प्रक्रिया में किसी भी तरीका का कोई जोखिम नहीं उठाया। उन्हें आभास हो चुका था, कि उनका मिशन सफल होने को है।



डॉ. रमेश ठाकुर

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