व्यर्थ हँसी न उड़वायें

rasoएक दिन घर में बनी योजना,

कि रसगुल्ले बनवायें|

फिर बैठक में हुआ फैसला,

कच्चा माल कहां से लायें|

 

खोवा लल्लू की दुकान से,

शक्कर लाला के घर से|

करें निरीक्षण खुद पापाजी,

माल ठीक से तुलवायें|

 

थोड़ी सी मेंदा और काजू,

खुशबू वाले इत्र जरा,

किसी पड़ौसी के घर जाकर,

मांग के मम्मी खुद लायें|

 

गैस है घर में पानी घर में,

बड़ी कढ़ाई है घर में,

प्रश्न था लेकिन रसगुल्ले अब ,

किसके द्वारा बनवायें|

 

पापा बोले अखवारों में

विग्यापन हम देते हैं|

रसगूल्लों के सिद्धहस्त को,

अपने घर में बुलवायें|

 

एक किलो निर्माण कराने,

में कितना खर्चा होगा,

सभी निवेदन करने वाले,

ठीक ठीक से बतलायें|

 

सुनकर ये बातें मम्मी का,

पारा सौ के पार हुआ|

बोलीं चलते हैं बाज़ार में,

चलकर रसगुल्ले लायें|

 

बात वही अच्छी होती है,

जो यथार्थ में सच्ची हो|

शेख चिल्लियों जैसे बनकर,

व्यर्थ हँसी न उड़वायें|

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प्रभुदयाल श्रीवास्तव
लेखन विगत दो दशकों से अधिक समय से कहानी,कवितायें व्यंग्य ,लघु कथाएं लेख, बुंदेली लोकगीत,बुंदेली लघु कथाए,बुंदेली गज़लों का लेखन प्रकाशन लोकमत समाचार नागपुर में तीन वर्षों तक व्यंग्य स्तंभ तीर तुक्का, रंग बेरंग में प्रकाशन,दैनिक भास्कर ,नवभारत,अमृत संदेश, जबलपुर एक्सप्रेस,पंजाब केसरी,एवं देश के लगभग सभी हिंदी समाचार पत्रों में व्यंग्योँ का प्रकाशन, कविताएं बालगीतों क्षणिकांओं का भी प्रकाशन हुआ|पत्रिकाओं हम सब साथ साथ दिल्ली,शुभ तारिका अंबाला,न्यामती फरीदाबाद ,कादंबिनी दिल्ली बाईसा उज्जैन मसी कागद इत्यादि में कई रचनाएं प्रकाशित|

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