चुनावी काले धन के जनकल्याण

2
224

प्रमोद भार्गव

अब चुनावी धन काला हो या सफेद अपने राम को क्या? धन पर थोड़े ही काला-सफेद लिखा होता है। उसकी महिमा तो राष्ट्रपिता की छपी तस्वीर से है। राष्ट्रपिता को तो अफ्रीका में काले होने के कारण ही गोरों का अपमान झेलना पड़ा। लेकिन वहां बात नस्ल की थी। नस्लीय सोच की थी। धन में नस्लीय भेद कैसा ? डालर-पौंड की तूती पूरी दुनिया मे बोलती है। फन्ने खां कामरेड भी अपनी संतानों को अमेरिका-ब्रिटेन में नौकरी कराकर गौरवा ; गौरवानिवतद्ध रहे हैं। विदेशी मुद्रा की आमद पर इतरा रहे हैं।

अब अपने राम ; मतदाताद्ध को पांच साल में तो महज एक बार काले धन की महिमा पर इतराने का मौका मिलता है। उस पर भी इस मुएं चुनाव आयोग ने इस्तेमाल पर रोक लगा दी। तुगलकी फरमान जारी कर दिया। एक लाख से ज्यादा का लेन-देन बही खातों में दर्ज किए बिना किया तो जब्ती होगी। लो जब्ती का सिलसिला भी शुरु भी हो गया। करोड़ों का धन ! अभी तक सेठो, नेताओं और माफियाओं की तहखानों में पड़ी जंग खार्इ तिजोरियों से सीधा निकलकर बेचारे लाचार मतदाताओं की जेबें गर्म करने चल पड़ा था। अपने राम जैसों की आर्थिक मंदी में तड़का लगाने वाला था। धत तेरी की बीच रास्ते में ही पकड़ा गया। जब्ती हो गर्इ। सरकारी तिजोरियों में दीमकों के हवाले कर दिया। अब आयोग से पूछो, अरे निर्वाचन करैया…,सरकारी बैंको, बीमा कंपनियों और भविष्य निधि खातों में तो पचास हजार करोड़ से भी ज्यादा का लावारिश पड़ा धन पहले से ही देश की सकल घरेलू उत्पाद दर को पलीता लगा रहा है, इस काले धन को और क्यों जीडीपी घटाने की फेहरिश्त में शामिल करने में लगे हो?

अपने राम को तो लगता है इस सूचना-युग में भी आयोग के ज्ञान-चक्षुओं पर पर्दा पड़ा है। इसीलिए तो वह पर्दा डालने के बेतुके फरमानों में लगा है। अब हाथी क्या पर्दे में ढंकने से हाथी नहीं रह गए? आज सुबह ही तो अपने पोते को साइकिल के केरियर पर बिठाकर ठिठुरते पंजों से हेंडिल कसकर पकड़े हुए ‘दलित स्मारक स्थल सैर कराने ले गया था। स्थल के द्वार पर बैठे माली से एक रुपए का एक कमल का फूल खरीदा। पोता ज्ञान गुण सागर गणेश को अपने अंग प्रत्यारोपित कर जीवन-दान देने वाले हाथी के चरणों में कमल डालकर आशीष जरुर लेता है। पोता, हैरानी से चहका, दादाजी हाथियों को भी ठंडी लग गर्इ, जो चादर ओढ़ें है ? अब लो जब तीन-सवा तीन साल के बाल-मन से भी हाथियों की छवि विलुप्त नहीं हुर्इ तो, वयस्क और जागरुक वोटर के स्मृति पटल से कैसे लुप्त होगी ? हे राम….! कहां है, इनमें आर्इ क्यू ?

अब अपने राम तो अर्थशासित्रयों की ज्यादा आंकड़ों की कला बाजी समझ-बूझते नहीं। अखबारों में जो थोड़ा-बहुत बांचा-पढ़ा है। उसमें भी जो थोड़ा बहुत याद रहा है, उसके मुताबिक काले धन के जन कल्याण से जुड़े सरोकार हैं। चुनाव में इसके लाभ समावेशी लक्ष्य को साधते हैं। बताते हैं, आयोग जरा आंख फेर ले तो दस हजार करोड़ की काली कमार्इ पांच राज्यों के चुनाव में बरसने को इतरा रही है। तिस पर भी करीब पांच हजार करोड़ की सफेद धन राशि सरकार खर्च होगी।

चुनाव की सबसे अच्छी ताकीद यह हैं कि काली कमार्इ निकलती तो पूंजीपति और भ्रष्टाचारियों की तिजोरियों से है, लेकिन जाती मध्यवर्गीय और आम-आदमियों के हाथों में है। परिवहन, उडडयन, कागज, रंग-रोगन, ध्वनि विस्तारक यंत्र, मुद्रक, टेंट हाउस, फोटो व वीडियोंग्राफर चाय – काफी और पूड़ी सब्जी बनाने के कारोबारों से जुड़े लोगों की बल्ले-बल्ले हो जाती है। अब तो पेड-न्यूज का भी चलन चल निकला है, सो भैया प्रिंट और इलेक्टोनिक मीडिया में लगे पत्रकारों-गैर पत्रकारों की भी पौ-बारह होने लगी है। इलेक्टोनिक वोटिंग मशीनों से वोटिंग का जब से सिलसिला हुआ है, तब से आर्इटी उधोग की भी चकाचक है। मशीनें खराब तो होती ही हैं। पिछले चुनावों में बूथ कब्जाने के फेर में तोड़-फोड़ भी जाती हैं। तो कुछ में तोड़-फोड़ भी जाती है, तो कुछ निर्वाचन प्रक्रिया में गड़बड़ी की शिकायत के चलते उच्च न्यायालयों से स्थगन मिल जाने की वजह से सरकारी कोषालयों में पड़ी-पड़ी दम तोड़ देती हैं। इन सब की पूर्ति के लिए नर्इ र्इवीएम खरीददारी होती हैं। अब मशीन है तो बिना पर्याप्त उर्जा मिले तो यह चलने वाली नहीं है, सो इनकी बैटरियां बदलने में भी करोड़ों खर्च होते हैं।

काला धन इफरात बह रहा हो तो भैया कुशल-अकुशल, शिक्षित-अशिक्षित बेरोजगार भी रोजगार की लेने पर कुछ समय के लिए चल पड़ते हैं। वाहन चालकों से लेकर आटो रिक्शा, साइकिल रिक्शा व चुनावी रथों पर प्रचार विशेषज्ञों की भी पूछ-परख बढ़ जाती है। प्रचार हेतु फिल्मी गीतों के आधार पर पैरोडी लिखने व नाट्य रुपांतरण करने वालों की भी बन आती है। लोक कलाकारों को मुंह मांगे दाम मिलते है। इन गीत व नाटकों की सीडी व टेप बनाने वाली कंपनियां भी बाग-बाग हो जाती हैं।

चुनाव में नुक्कड़ नाटक खेलने, स्वांग रचने व विरोधी उम्मीदवार अथवा प्रतिपक्ष की कमजोरी व करतूतों पर चुटीले कटाक्ष की कमजोरी व करतूतों पर चुटीले कटाक्ष करने वाले मर्मज्ञों की भी खूब पूछ बड़ जाती है। सड़कों पर चप्पल चटकाने वाले इन कला-पथिकों को इस दौरान लग्जरी गाडि़यां, पौष्टिक आहार, मनचाहा मानदेय और उम्दा ब्राण्ड की सुरा उपलब्ध कराने की जिम्मेदारी दल और उम्मीदवारों की होती हैं।

अब भैया इतने बड़े पैमाने पर जो काला धन रोजगार के अवसर पैदा करता है, उस पर प्रतिबंध तो बेजा ही कहलाएगा न ? अब तो वे मतदाता भी चिंतित हैं, जो अपना वोट बेचने के लिए बाजार में थे। बाजारवाद के इस युग में आवारा पूंजी के पंख काट दिए जाएंगे तो मनमोहन जी, प्रणव दा जी सोचिए बाजार में उपभोक्ता वस्तुओं का क्या हाल होगा ? जब माल बिकेगा नहीं तो औधोगिक विकास और सकल घरेलू उत्पाद दरें तो गिरेंगी ही न ? इसलिए लोक कल्याण के लिए माननीय सुनिए…, आंख मूंद लीजिए और काले धन को उदारवादी खुले बाजार की तरह उनमुक्त विचरने दीजिए।

 

2 COMMENTS

  1. सफ़ेद नेता काला धन.
    मुंह में गांधी, बगल में ‘गन’.
    मन में बार-बार सवाल उठाता है कि जब देश के प्रधानमंत्री ईमानदार हैं, कोंग्रेस पाक-साफ़ है, गांधी परिवार पवित्र है तो फिर कालेधन के खिलाफ मुहीम से उन्हें एतराज क्यों है?
    काले धन को देश की संपत्ति घोषित करनेवालों पर आधी रात को रामलीला में रावणी दमन क्यों??
    जब काला धन देश को मिलेगा तो सरकार के बाप का क्या नुक्सान है?? या मां का भी क्या नुक्सान है ??

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

* Copy This Password *

* Type Or Paste Password Here *

17,871 Spam Comments Blocked so far by Spam Free Wordpress