रुमाल खो गया

0
1530

-रवि कुमार छवि-

eyes

शनिवार का दिन था। शाम के 5 बज चुके थे। दफ्तर के ज्यादातर कमरे बंद होने शुरु हो गए थे। रवि अपना बचा हुआ निपटाने में लगा हुआ था। इतने में पीछे से आवाज़ आती है अरे दोस्त चलना नहीं है क्या, कुछ देर अपनी उंगुलियों को थामते हुए ने कहा बस दो मिनट यार तू चल बस एक फाइल का काम निपटा आ कर आता हूं। ओके बॉय परसो मिलते है।

ऑफिस से बाहर निकलते ही फोन आया। कहां हो कब तक आओगे स्वीटी रो रही है हां यार बस आता हूं। ऑफिस में काम ज्यादा आ गया था। इसलिए एक घंटा लग जाएगा आने में। शाम अब ढल चुकी थी। लेकिन पसीना अभी भी आ रहा था तब मैंने अपना रुमाल निकाला और माथे पर आ रहे पसीने को पोछकर बस पकड़ने के लिए चल पड़ा। कुछ देर इंतजार करने के बाद एक बस आई मगर वो भी भरी हुई थी लेकिन घर जल्दी पहुंचने की कवायद में भरी हुई बस में चढ़ना पड़ा। भीड़ के कारण लोगों की काखों से निकलने वाले पसीने की दुर्गंध को महसूस किया जा सकता था. इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता था कि कुछ दूरी पर खड़ी हुई लड़कियों ने अपने मुंह पर रुमाल बांधा हुआ था. सड़क भी माशाअल्लाह बस कभी इधर होती तो कभी उधर। एक तरफ से बस का हैंडल पकड़ता तो एक ओर से अपना बैग।
आखिरकार मैं. अपने घर पहुंच ही गया। थकान का असर साफ तौर पर चेहरे पर देखा जा सकता था…

दरवाज़ा राधिका ने खोला आ गए आप बहुत देर कर दी। आपने, अरे ऑफिस में आज ज्यादा काम आ गया था और ट्रैफिक तो पूछो मत और उस पर बस में सीट तक नहीं मिली। एक गिलास पानी ला दो और सुनो ये बैग भी रख देना। शर्ट का बटन खोलते ही धड़ाम से जा गिरा बेड पर। राधिका बिन कुछ कहे चाय बनाने चली गई। इतने में स्वीटी आ गई पापा-पापा आ गए आप मेरे लिए क्या लाए हो मैंने उसे चूमते हुए कहा, अले मेरा बच्चा कैसा है। जाओ आप जाकर खेलो । ये लो पापा आपके लिए चॉकलेट लाए है उसे देखकर मानो सारी थकान गायब हो जाती है। इस तरह से मैंने अपनी लाचारी को कुछ हद तक उसकी मासूमियत में छुपाना चाह।

आज आपको इतना पसीना क्यों आ रहा है राधिका ने मेज पर चाय रखते हुए कहा आप आपना रुमाल क्यों नहीं निकाल लेते जब इतने ही पसीने आ रहे है। मैंने अपने बाएं जेब की पेंट में जैसे ही हाथ डाला मैं, थोड़ा परेशान हो गया अरे मेरा रुमाल कहां गया अभी तो यहीं रखा था।
दूसरी जेब में भी रुमाल नहीं मिलने पर मैं, परेशान सा हो गया। राधिका ने कहा कहीं बैग में तो नहीं रख दिया ना आपने अरे नहीं मैं, रुमाल कभी बैग में नहीं रखता। अरे ऑफिस में तो नहीं छोड़ दिया ना । अरे बाबा नहीं मुझे याद है ऑफिस से निकलते –निकलते मैंने रुमाल अपनी बाएं जेब की पेंट में ही रखा था, कुछ देर रुमाल ना मिलने पर राधिका गंभीर होकर बोली एक रुमाल तक भी ठीक से नहीं रख सकते मेरी मां ने इतने प्यार से तुमको दिया था. मैं, कुछ नहीं जानती आप दुबारा ऑफिस जाइए और वहां से वो रुमाल ले कर आइए मैंने उसे बाहों में भरते हुए कहा अरे जानू कल बाज़ार जाकर दूसरा ले लेना नहीं उसने जोर से धक्का देकर कहा मुझे वहीं चाहिए। और वो गुस्सा होकर चली गई। इधर, स्वीटी भी सो गई।

मेरे बास बस स्टॉप जाने के सिवाय कोई दूसरा उपाय नहीं था… तब सोचा शायद राधिका मान लेकिन वो अपनी जिद्द पर अड़ी रही औरत जो ठहरी… अब फिर से ऑफिस की ओर भागा लेकिन कुछ फायदा नहीं हुआ। जहां से घर के लिए बस ली थी उस बस स्टॉप पर भी ढूंढा लेकिन वहां भी निराशा ही हाथ लगी।
थकान और गर्मी के कारण गला सूख गया और गर्मी थी जो चीख-चीख कह रही थी कि आज मेरा दिन है। मन बैचेन और माथे पर शिकन थी और खुद से सवाल ना जाने कैसे बीवी मिली है। एक रुमाल के लिए इतनी हाय तौबा मचाई हुई है। ये नहीं देखा कि पति ऑफिस से थका हारा हुआ आया है। प्यार से दो लफ्ज बोलने के बजाय सिर्फ एक रुमाल के लिए फिर से बाहर भेज दिया। मन में कुछ बड़बड़ाते –बड़बड़ाते रुमाल को ढूंढने में लगा रहा । इस बीच अपनी बीवी के खिलाफ मनगढ़ंत बातें आई जा रही थी…
आखिरकार थक हार कर वापस घर की ओर चल दिया शाम की जगह अब रात ने ले ली थी… सोचते –सोचते अपना सफर भी पूरा कर लिया, मैं, उसकी कोई भी ख्वाहिश अधूरी नहीं छोड़ता। लेकिन ये कैसे पूरा करुं. कैसे समझाजाऊंगा उसे यही सब बातें मेरे दिमाग में रह रह कर चल रही थी. घर आ कर देखा कि राधिका चुचपाप बैठी है। जाते ही बोला यार वो रुमाल नहीं मिला। बहुत ढूंढा मगर मिला नहीं सॉरी यार अब कहां से लाऊं वो अभी भी शांत और स्थिर थी, तुम कुछ बोलती क्यों नहीं, थोड़ा नजरे झुकाकर बोली वो बात ये है कि जब तुम ऑफिस से आए थे तो मैंने ही तुम्हारा बैग उतारा था। ऊसकी ऊपर वाली चैन में ही रखा था मैं तुम्हें बताना ही भूल गई । और मेरी वजह से तुमको इतनी परेशानी हुई सो सॉरी।

मेरा गुस्सा उसका चेहरा देख कर शांत हो गया। अपने पर हंसने के अलावा कुछ कर भी नहीं सकता था. तब मैंने तपाक से बोला तो रुमाल मिल गया ना. हां उसने मुस्कराते हुए कहा तुम्हारा बैग चैक करते हुए मिला सॉरी जान तुम्हें मेरी वजह से इतनी परेशानी हुई। तुम्हारा रुमाल मिल गया ना बस और क्या चाहिए। मैंने अपनी शर्ट उतारी और एक और एक तरफ रख दी। थोड़ी देर शांत बैठा रहा इतने में राधिका चाय ले कर आ गई। धीरे-धीरे चाय पीते हुए बोली तुम क्यों इतना प्यार करते हो मुझसे और ये कहकर वो जोर-जोर से हंसने लगी। मैंने राहत की सांस लेते हुए कहा आखिरकार तुम्हें भी मेरी फ्रिक्र है। और दोनों साथ-साथ चल दिए क्योंकि अब रात बहुत हो गई थी. हमारे चाय के खाली कप मानो अपनी ही दुनिया में खोए हुए थे। राधिका के कप में लिपस्टिक लगी हुई थी, जिससे पता लग रहा था कि आज उसे कहीं घुमने जाना था। छत पर अब रात हो गई थी। रुमाल मिलने की खुशी को उसके हाव-भाव से पढ़ा जा सकता था… मैं, खाली कैनवास पर अपने जज्बातों का चित्र बनने लगा लगा।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

* Copy This Password *

* Type Or Paste Password Here *

17,871 Spam Comments Blocked so far by Spam Free Wordpress