—विनय कुमार विनायक
कोई प्यार करना सीखे तो हिन्दुओं से
हिन्दू धर्म अति सहिष्णु एवं उदार है
हिन्दू धोखेबाज,वादाखिलाफ नहीं होते
हिन्दू धर्म में तलाक की कुप्रथा नहीं है!
हिन्दू मां-पिता परिवार की सहमति से
विवाह संस्कार में बंधना पसंद करते,
विवाह के पहले वर वधू अनजाने होते,
हिन्दू विवाह को ईश्वरीय विधान कहते!
हिन्दू आजीवन अनजाने प्यार को निभाते
हिन्दुओं का प्यार जिस्मानी नहीं होते,
हिन्दुओं में प्यार कुदरती प्रवृत्ति से होते!
हिन्दुओं का प्यार अटूट है
हिन्दू सात जन्मों तक निर्वाह का प्रण लेते,
हिन्दू शारीरिक नहीं आत्मिक प्यार करते,
हिन्दू खूबसूरती से नहीं, दिल से प्यार करते!
हिन्दू अपनी संतान के प्रति जबावदेह होते
हिन्दू संतान को ईश्वर की खेती नहीं
वंश वृद्धि और पितर की मुक्ति समझते!
हिन्दू उतनी ही संतान की चाहत रखते
जितने को शिक्षा दीक्षा संस्कार दे सकते!
हिन्दुओं के शब्दकोश में तलाक का
कोई पर्यायवाची संस्कृत शब्द नहीं होते!
हिन्दू सोलह संस्कार में जीवन जीते
सात जन्मों तक साथ जीने की कसम खाते,
यूरोपीय लोग हिन्दुओं सा प्यार को तरसते!
हिन्दू में तलाक संस्कार नहीं कुरीति है
जो दूसरे मजहब से बुराई के रूप में आती!
सोलह संस्कार से परे, हिन्दू मित्रता को भी
एक अतिरिक्त संस्कार निर्वाह सा मानते!
हिन्दू की मैत्री कृष्ण सुदामा जैसी होती
हिन्दू मित्रता को समझते एक दावेदारी भी
राजा द्रुपद और द्रोणाचार्य की मित्रता जैसी!
—विनय कुमार विनायक