पाकिस्तान जैसे मजहबी देशों में अमन चैन हेतु स्वधर्म वापसी ही एकमात्र विकल्प है

—विनय कुमार विनायक
अगर बृहदतर भारत का इतिहास देखा जाए तो आरंभ से ही सत्ताधारियों एवं उनकी प्रजा ने अपने जीवन काल में कईबार अपने धर्म को बदला है। जब-जब राजसत्ता अत्यधिक क्रूर अताताई और अत्याचारी हुआ है तब-तब संबद्ध शासकों ने आत्म मूल्यांकन करके तत्कालीन सहिष्णु और अहिंसक धर्म को अपनाया है। प्राचीन भारत का प्रामाणिक इतिहास महाभारत कालीन बृहद्रथ पुत्र जरासंध के वंशजों को सत्ता से बेदखल करने के पश्चात एक क्षत्रिय सैनिक भट्टी द्वारा स्थापित हर्यक साम्राज्य से आरंभ होता है। जिसे पितृहंता साम्राज्य कहा गया है। इस वंश के पहले प्रतापी शासक भट्टी पुत्र बिम्बिसार को उनके पुत्र अजातशत्रु ने हत्या करके मगध की सत्ता हासिल की थी। जिसके बाद उन्होंने पश्चाताप करके अपने पिता के अहिंसक बौद्ध धर्म को अपना लिया था और अपने पिता की धार्मिक
सहिष्णुता और विरोधियों के साथ वैवाहिक संबंध स्थापित कर अपना राज्य विस्तार किया था। भारत में देशज धर्म की कभी
कमी नहीं रही है। हर काल में राजा एवं प्रजा को एक साथ कई स्वदेशी धर्मों को चुनने का विकल्प रहा है। हर्यक शासकों के काल में भी सनातन धर्म की कम से कम तीन शाखाएं एकसाथ प्रचलित थी। एक वैदिक कर्मकांडी पशुबलि समर्थक ब्राह्मण धर्म, दूसरा प्रथम मनु स्वायंभुव काल से चल रहे मनुर्भरतवंशी चौबीस क्षत्रिय तीर्थंकरों के अहिंसक नागवंशी क्षत्रिय राजकुमार पार्श्वनाथ व आर्य व्रात्य क्षत्रिय राजकुमार महावीर जिन का जैन धर्म और तीसरा आर्य व्रात्य क्षत्रिय राजकुमार गौतम बुद्ध का वर्ण-जाति विहीन समता और अहिंसावादी बौद्ध धर्म। हर्यकों के पश्चात शिशुनागवंश और नंदवंशी वृषल क्षत्रिय बौद्ध शासकों के बाद ब्राह्मण चाणक्य समर्थित मौर्य कृषक राजवंश ने ब्राह्मण धर्मी चाणक्य नीति और ब्राह्मण धर्म को अपनाया। धर्मसहिष्णु उदार चंद्रगुप्त मौर्य व उनके महान पुत्र बिंदुसार से उनके पुत्र सम्राट अशोक तक आते आते ब्राह्मण राजधर्म काफी क्रूर और हिंसक हो गया। खुद ब्राह्मण धर्मी अशोक ने निन्यानबे भाई की हत्या करके मगध की सत्ता हथियाई थी।उनका खूनी दौर का अंत कलिंग विजय के दौरान राजकुमारी पद्मावती से सामना होने पर हृदय परिवर्तन तथा अहिंसावादी बौद्ध धर्म स्वीकारने से हुआ। अशोक विश्व के चहेते महान सम्राट तभी बन पाए जब उन्होंने हिंसावादी
ब्राह्मण धर्म का परित्याग किया। अशोक कालीन भारत का बौद्ध राजधर्म मौर्य राजवंश के अंतिम सम्राट बृहद्रथ मौर्य तक चला।
जिसे उनके अनार्य ब्राह्मण सेनापति पुष्यमित्र शुंग ने हत्या करके पुनः यज्ञ बलिप्रथा कर्मकांडी ब्राह्मण धर्म को चलाया। वस्तुत: पुष्यमित्र शुंग ईरानी आक्रांता अहुर माजदा पुत्र भृगु के प्रपौत्र मातृहंता क्षत्रिय कुलघाती भार्गव ब्राह्मण परशुराम परंपरा के भृगु रचित मनुस्मृतिवादी घोर क्रूरकर्मा ब्राह्मण थे। जिन्होंने असंख्य अहिंसक बौद्ध भिक्षुओं की हत्या करके हिंसावादी ब्राह्मण धर्म का पुनः प्रचार किया। उन्होंने महाभारत काल के बाद बुद्ध अशोक काल तक बंद अश्वमेध यज्ञ को आरंभ किया। जिसमें यज्ञ पशु घोड़े की बलि दी जाती थी। यह धर्म परवर्ती ब्राह्मण कण्व आंध्र सातवाहन तक जारी रहा। यह भारतीय इतिहास का अंधकार युग था। इस अंधकार युग की समाप्ति वैष्णव धर्मावलंबी श्रीगुप्तवंशी चंद्रगुप्त के स्वर्णयुग से हुआ। गुप्त शासकों का वैष्णव धर्म हिंसावादी ब्राह्मण धर्म से हटकर अहिंसक बौद्ध धर्म के निकट था। गुप्त शासक कुमारगुप्त ने ही तक्षशिला के पश्चात विश्व के सबसे बड़े बौद्ध विद्यामहाविहार नालंदा
विश्वविद्यालय की स्थापना की। जो अहिंसावादी बौद्ध वैष्णव शासक हर्षवर्धन के राज्याश्रय में काफी फली फूली। गुप्त एवं हर्षवर्धन के पश्चात बौद्ध धर्मावलंबी पाल शासन काल में भारत में शांति काल रहा। गोपाल एवं उनके पुत्र धर्मपाल से उदंतपुरी एवं विक्रमशिला जैसे दो बड़े विश्वविद्यालय एवं शिक्षा केन्द्रों का उदय एवं विस्तार हुआ।जिसका अंत ग्यारह सौ बेरानबे में महान वैष्णव हिन्दू शासक पृथ्वीराज चौहान का विदेशी आक्रमणकारी मुहम्मद गोरी के हाथों पराजय से हुआ था। गोरी के गुलाम बख्तियार खिलजी के द्वारा तीनों
विश्वविद्यालयों के दहन के बाद भारत में दिल्ली सल्तनत से विदेशी धर्म इस्लाम के अनुयायियों क्रमशः गुलाम खिलजी
तुगलक सैयद लोदी एवं आगरा से मुगल शासकों का निरंकुश अत्याचारी शासन का अंतहीन सिलसिला चला जो अंग्रेजों के आने तक जारी रहा। इस दरम्यान हिन्दुओं का व्यापक कत्लेआम और धर्मांतरण किया जाता रहा। जहांगीर ने गुरु अर्जुन देव को इस्लाम नहीं स्वीकारने पर गर्म तवे में तपाकर हत्या की जो जहांगीर मातृ पक्ष से हिन्दू राजकुमारी जोधाबाई का पुत्र था। गुरु अर्जुन देव के सोढ़ी क्षत्रिय वंश में जन्मे गुरु तेगबहादुर से उनके पुत्र गुरु गोविंद सिंह और उनके चारों पुत्रों में से दो नाबालिग पुत्रों को दीवार में चुनवा
कर एवं दो पुत्रों को धोखे से औरंगजेब ने इस्लाम नहीं कबूलने के कारण मौत का घात उतार दिया। मुगलों के वक्त कश्मीर से मगध बिहार बंगाल उड़ीसा में बहुत अधिक धर्मांतरण हुआ। आज के भारत, पाकिस्तान, बांग्लादेश अफगानिस्तान के सबके सब मुस्लिम धर्मावलंबी मध्यकालीन भारत के धर्मांतरित हिन्दू ही हैं। जो अज्ञानता और भ्रम के कारण खुद को अरबी तुर्की मूल के इस्लामी
आक्रांताओं के वंशज समझने लगे हैं। इन देशों के सारे मुस्लिम धर्मावलंबियों का रक्त वंश और डी एन ए वर्तमान भारतीय हिन्दुओं का ही है। ये कद काठी, हाव भाव स्वभाव एवं नस्ल से पूर्णतः हिन्दू ही लगते हैं। ये हिन्दू मूल के मुस्लिम कहीं से भी अरबी क़बीलाई नस्ल के नहीं हैं तथा इस्लाम की जन्म भूमि अरब के इस्लामी समाज द्वारा इन्हें हिकारत की नजर से देखा जाता है।इन देशों की बदहाली इनके विदेशी मजहब को अपनाने की वजह से ही है। इन देशों की अपनी पितृभूमि भारत से दुश्मनी इसी विदेशी मजहब व गलतफहमी की वजह से है। आए दिन बृहदतर भारतीय देशों के धर्मांतरित मुस्लिमों की अरब देश के शहरों व मक्का-मदीना में भेदभाव और बेइज्जती होते रहती है।
इन देशों के मुस्लिमों की अरब देशों में मान न मान मैं तेरा मेहमान की स्थिति है।इन देशों के हुक्मरानों और प्रजा को अपनी तरक्की के लिए जितना जल्दी हो सके अपने मूल धर्म सनातन हिन्दू बौद्ध जैन सिख आर्य समाज में वापसी कर लेना चाहिए तथा अपने आर्थिक सामाजिक बौद्धिक अध्यात्मिक दशा में लगातार सुधार करना चाहिए। सच तो यह भी है कि इन पड़ोसी देशों के सच्चे हितैषी और शुभचिंतक भारत के अलावा कोई और देश कभी नहीं हो सकता। हाल के दिनों में अपने पूर्वजों के बामियानी बौद्ध मूर्ति को मोर्टार से ढाहने वाले तालिबानी शासकों और इस्लामी प्रजा को मानवीय आधार पर खाद्य पदार्थ गेहूँ दवा आदि पहुंचाने वाली तथाकथित कट्टर हिन्दूवादी मोदी सरकार ही है। आज की तालिबानी अफगान सरकार अपने हममजहबी पाकिस्तान से अधिक भारत को ही अपना हमदर्द समझती है। इतिहास गवाह है कि धर्म मजहब मानव जाति की बेहतरी के लिए स्थान विशेष के स्थानीय महामानवों द्वारा ईजाद किया गया है। जो स्थानीय भौगोलिक बसोवास रहन सहन संस्कृति पर आधारित होता है। सदा से विश्व भर में अपनी बेहतरी के लिए लगातार लोग अपना मत मजहब धर्म बदलते रहते हैं। सच कहा जाए तो हम जाने अनजाने प्रत्येक दिन अपना मत मजहब विचार धर्म संस्कार बदलते रहते हैं। आज कोई नहीं कह सकता कि वर्तमान हिन्दू धर्म अतीत का वर्णवादी और जातिवादी कट्टर ब्राह्मण धर्म है। आज ब्राह्मणों का सोच बदल गया है। हिन्दू धर्म में पंडा पुरोहितों का महत्व घट गया है। आज ब्राह्मण जाति की अधिकांश आबादी मंदिरों की पुरोहिताई को छोड़कर अन्य सेवा कर्म में लग गए। ईसाई व इस्लाम धर्म के पोप पादरी और मुल्ला मौलवियों
की तरह हिन्दू पंडित पुरोहित किसी तरह का आदेश फतवा जारी नहीं कर सकते हैं। हिन्दू धर्म पंडा पुरोहित वैदिक
कर्मकाण्ड बलिप्रथा से लगभग आजाद हो चुका है। यहां तक कि हिन्दू अपने मठ मंदिर गुरुद्वारे में बिना ब्राह्मण
पुरोहित के ही पूजा पाठ करने लगे हैं। हिन्दू धर्म में ब्राह्मण पुरोहितों का थोड़ा सा वर्चस्व बचा है। वो मनमानी दक्षिणा का हठ भी नहीं कर सकते है। हिन्दू मंदिरों में पूजा स्वत: बिना ब्राह्मण पुरोहित का होने लगा है। सच बात तो यह है कि आज का ब्राह्मण वेद पुराण का
अध्ययन भी नहीं करते। वे सिर्फ नाम के द्विवेदी त्रिवेदी चतुर्वेदी त्रिपाठी उपाध्याय झा मिश्र तिवारी बने हुए हैं। भारत में जाति का वर्चस्व और जातिवाद का पोषण लगभग समाप्त हो गया। जो भी ऐसा करते वे खुद उपेक्षित होने लगे हैं। आज हिन्दुओं में अंतरजातीय विवाह
भी परस्पर समझौता से होने लगा है। ऐसे विवाह में शंकराचार्य भी हस्तक्षेप नहीं कर सकते। वर्तमान हिन्दू धर्म में भेदभाव छुआछूत तेजी से घटता जा रहा है। रहन सहन वस्त्र आभूषण पहनावे में किसी तरह का प्रतिबंध या ड्रेस कोड जोर जबरदस्ती नहीं है। आप पगड़ी धोती साड़ी पहने या नहीं पहने कोई मायने नहीं रखता। विवाह तक में धोती नहीं पहनने की छूट हो गई है। हिन्दू नारियों को
समानता का वास्तविक अधिकार प्राप्त है। बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ हिन्दुओं का लक्ष्य हो गया है। नजदीकी रिश्तेरों में वैवाहिक संबंध वर्जित और धार्मिक वैज्ञानिक कारण से दोषपूर्ण घृणित करार दिए जाने के कारण हिन्दू धर्म में
स्त्री जाति की यौन सुचिता और पवित्रता बनी रहती है। साथ ही हिन्दू धर्म में एकल विवाह नियम का पूर्णतः पालन
होने से दाम्पत्य संबंध में विश्वसनीयता बढ़ी है तथा जनसंख्या वृद्धि पर स्वत: रोक लग गई है। इस तरह
वर्तमान हिन्दू धर्म भेदभाव की शून्यता की ओर अग्रसर है। साथ ही हिन्दू तेजी से अंधविश्वास रहित कुप्रथा को
त्याग कर पूर्णतः उदार सहिष्णु बनता जा रहा है। हिन्दुओं में मांस भक्षण की प्रवृत्ति बहुत तेजी से घट रही है। राजस्थान गुजरात जैसे राज्यों के हिन्दू आरंभ से ही पूर्णतया शाकाहारी एवं पशुबलि विरोधी हैं। हिन्दू धर्म को ऐसे वर्तमान प्रगतिशील सुधारवादी स्थिति प्रदान करने के लिए भगवान राम का मर्यादावादी व्यक्तित्व, कृष्ण का उपनिषदीय गीता ज्ञान,बुद्ध महावीर का अहिंसा दर्शन
एवं दस सिख सद्गुरुओं सहित दशमेश पिता गुरु गोविंद सिंह का समतावाद तथा दयानंद, विवेकानंद, रामानंद,
प्रच्छन्न बौद्ध शंकराचार्य, ज्योति बा फूले, कबीर, रहीम, रसखान रैदास अंबेडकर आदि तथा आलवार लिंगायत संत भक्त महापुरुषों के मानवतावादी विचारों का सर्वाधिक योगदान है। धार्मिक स्वतंत्रता के मामले में भी हिन्दू धर्म सबसे श्रेष्ठ धर्म है। जहां ईसाई और इस्लाम धर्म में तर्क को ईश निंदा की कोटि में माना गया है। जबकि हिन्दू धर्म तार्किक जिज्ञासु और ज्ञान पिपासुओं का धर्म है।बालक नचिकेता अपने पिता की खोखली दानशीलता पर तर्क कर सकता है। गर्भस्थ शिशु अष्टावक्र अपने पिता के अशुद्ध वेद मंत्र उच्चारण के लिए गर्भ से ही टोका टोकी कर सकता है और तो और हिन्दू अपने भगवान के अच्छे बुरे कर्म की आलोचना समालोचना करते हैं। हिन्दू धर्म में सबसे अच्छी बात यह है कि प्राचीन ऋषियों मुनियों ने अपने नीच कुल अधम जाति में जन्म वृतांत को पूरी ईमानदारी से शास्त्रों में लेखबद्ध कर दिया है। चाहे ब्रह्मऋषि वाल्मीकि वशिष्ठ शक्ति पराशर व्यास अगस्त श्रृंगी द्रोणाचार्य कृपाचार्य आदि क्यों ना हो सबके वैध अवैध जन्म वृतांत को शास्त्रों में स्पष्ट रुप से ज्ञानी ब्राह्मणों द्वारा ही लिपिबद्ध किया गया है।अस्तु हिन्दू धर्म के जैसा उदारमना और कोई दूसरा धर्म नहीं है। ब्राह्मणों ने अगर समय काल स्थिति के अनुसार तमाम जातियों को शूद्र वर्णसंकर व्रात्य वृषल कहा है तो खुद की उत्पत्ति के बारे में कुछ भी नहीं छिपाया है। हिन्दू धर्मग्रंथों और शास्त्रों में ज्ञान भरा पड़ा है। जिसका अवगाहन सिर्फ
हिन्दू बनकर ही किया जा सकता है।
—विनय कुमार विनायक

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