इस्लाम, आईएसआईएस और जार्डन का अभियान

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jordan pilot
डा. सुरजीत कुमार सिंह

असली 56 इंच का सीना क्या होता है, यह कोई जार्डन के सुल्तान अब्दुल्ला द्वितीय से सीखे। अभी कुछ दिन पहले पहले इस्लामिक स्टेट के धर्मांध आतंकी नर-पिशाचों ने जार्डन के एक लड़ाकू विमान के पायलट को एक लोहे के पिंचड़े में बंद करके जिन्दा जलाकर मार डाला था और जलाते हुए उसका वीडियो सार्वजनिक कर दिया था। जब यह बात जार्डन को पता चली तो उसने बिना कोई समय गवाएं इस्लामिक स्टेट के दो धर्मांध आतंकियों (जिसमें एक महिला और एक पुरुष था) को तुरंत फांसी की पर लटका। उस समय जार्डन के सुल्तान जो अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा के साथ वाशिंगटन में थे, अपना दौरा बीच में छोड़कर अपने देश लौट आए। उन्होंने आते ही इस्लामिक स्टेट के इन धर्मांध आतंकवादियों से लड़ने और उनको जड़ से नष्ट करने की शपथ लेते हुए कहा कि जब तक हमारे पास तेल की आखिरी बूंद है और हमारी बंदूकों में आखिरी गोली है, तब तक हम उन आतंकवादियों से लड़ते रहेंगे और उनको चुन-चुन के मारेंगे, उनका सब कुछ नष्ट कर देंगे।
जैसी प्रतिज्ञा जार्डन के सुल्तान अब्दुल्ला द्वितीय ने की थी, वैसी ही वचनबद्धता  समाचार पत्रों में हमको देखने को मिली। उन्होंने इस्लामिक स्टेट के धर्मांध आतंकी नर-पिशाचों के विरुद्ध अपना अभियान शुरू कर दिया।  अभियान की शुरुआत में ही इस्लामिक स्टेट के आतंकियों का प्रशिक्षण शिविर और हथियार डिपो नष्ट करते हुए 55 आतंकवादियों को मार गिराया। यह तो अभी शुरुआत है। अब इस क्षेत्र में खून-खराबा और होगा, निर्दोषों की जान पर बन आएगी। इस्लाम धर्म के नाम पर जो यह इस्लामिक स्टेट के धर्मांध आतंकवादियों द्वारा खून-खराबा किया जा रहा है। वह बहुत ही निंदनीय और घृणा भरा है। आखिर इस्लाम तो पूरी दुनिया में भाईचारे और बराबरी के लिए जाना जाता है। उसमें यह कहां लिखा है कि मजलूमों और यतीमों पर जुल्म किया जाए? पाक कुरान  और पैगम्बर हजरत मोहम्मद साहब ने जिन जंगली लोगों को जीना सिखाया, वे अभी भी बर्बर और क्रूर बने हुए हैं। वह भी पैगम्बर हजरत मोहम्मद साहब के नाम पर और पाक कुरआन की आयतों और सूरों  का हवाला देते हुए खूब-खराबे पर उतारू हैं। जिस एशिया खंड जैसे गैर बराबरी वाले-जातिवादी-कट्टर-अंधविश्वासी-मजहबों में बंटे लोगों को पैगम्बर हजरत मोहम्मद साहब  ने बराबरी और भाईचारे का संदेश दिया था, तभी तो इस्लाम धर्म लोगों को अपनाते देर ना लगी।
पैगम्बर हजरत मोहम्मद साहब  ने कहा कि जो गरीब और मजलूम हैं उनकी मदद करो, यही जकात  की अवधारणा है इस्लाम धर्म में, जैसा मैंने बी.ए. में इस्लाम दर्शन पढ़ते हुए जाना था। मेरे प्रो. डॉ. रिजवानउल्ल्हा शास्त्री जी ने मुझे पढ़ाते हुए समझाया था, पाक कुरआन में कहा गया है कि जो यतीम हैं, जो मजलूम हैं, उनकी मदद करो और ईमान, हज, रोजा, नमाज और जकात हमेशा करते रहो। पाक कुरआन में लिखा है कि इस्लाम मे जोर-जबरदस्ती से धर्म-परिवर्तन की मनाही के साथ-साथ इससे भी आगे बढ़Þकर किसी भी प्रकार की जोर-जबरदस्ती की इजाजत नही है। देखिए अल्लाह का यह आदेश: दीने-इस्लाम (इस्लाम धर्म) में जबरदस्ती नही हैं। (कुरआन,सूरा-2,आयत-256) जो बुरे काम करेगा और असत्य नीति अपनाएगा मरने के बाद आनेवाले जीवन मे उसका फल भोगेगा। जो बुरे काम करे और उसके गुनाह (हर तरफ से) उसको घेर लें तो ऐसे लोग दोजख (में जाने) वाले हैं। (और) वे हमेशा उसमें (जलते) रहेंगे। (कुरआन, सूरा-2,आयत-81) पैगम्बर मुहम्मद की जीवनी व कुरआन मजीद की इन आयतों को देखने के बाद स्पष्ट हैं कि हजरत मुहम्मद की करनी और कुरआन की कथनी मे कही भी आतंकवाद नही हैं। माँ-बाप के साथ अच्छा बरताओ करो। अगर उनमें से कोई एक या दोनों ही तुम्हारे सामने बुढ़ापे की मंजिल पर पहुंच जाएं तो उन्हें उफ तक न कहो और न उन्हें झिड़को, बल्कि उनसे मेहरबानी से बात करो। जो धर्म इंसान की मानवीय गरिमा को सबसे ज्यादा यहां तक कि हज, रोजा व नमाज से भी ज्यादा अहमियत देता है, जहाँ गैर बराबरी है ही नहीं. वह इस्लाम बेगुनाहों की हत्याएं किए जाने, आत्मघाती बम बनाने या इस्लाम के नाम पर दहशत फैलाए जाने की इजाजत आखिर कैसे दे सकता है? जिन आधुनिक हथियारों और गोला बारूद से इस्लामिक स्टेट के आतंकवादी लड़ रहें हैं, वे हथियार भी उन्होंने नहीं बनाए हैं। जिस टेलीविजन और इंटरनेट व यू-ट्यूब का इस्तेमाल वे कर रहें हैं, यह भी उन कट्ठमुल्लों ने नहीं बनाया है। इन आधुनिक वस्तुओं का आविष्कार इनके लोगों और देश ने नहीं किया। यह लोगों की गर्दन काटते वक्त पाक कुरआन की आयतों को पढ़ते हुए अपनी वीडियो खिंचवा कर इंटरनेट पर पोस्ट करके कौन सा संदेश देना चाहते हैं.? यह कट्ठ्मुल्ले इस्लाम धर्म की ऐसी खतरनाक व्याख्याएँ कर रहें, जिनसे लोगों को सतर्क रहने की जरुरत है और पूरी दुनिया के इस्लाम धर्म के मानने वालों को इनका बहिष्कार करना चाहिए। इनके विरोध में सामूहिक सम्मेलन, रैली और तकरीरें करना बहुत जरुरी है।
(लेखक डॉ. सुरजीत कुमार सिंह वर्धा स्थित महात्मा गांधी अन्तर्राष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय के डॉ. भदंत आनंद कौसल्यायन बौद्ध अध्ययन केंद्र के प्रभारी निदेशक हैं)

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संजय कुमार
पत्रकारिता में स्नातकोत्तर डिप्लोमा।समाचार संपादक, आकाशवाणी, पटना पत्रकारिता : शुरूआत वर्ष 1989 से। राष्ट्रीय व स्थानीय पत्र-पत्रिकाओं में, विविध विषयों पर ढेरों आलेख, रिपोर्ट-समाचार, फीचर आदि प्रकाशित। आकाशवाणी: वार्ता /रेडियो नाटकों में भागीदारी। पत्रिकाओं में कई कहानी/ कविताएं प्रकाशित। चर्चित साहित्यिक पत्रिका वर्तमान साहित्य द्वारा आयोजित कमलेश्‍वर कहानी प्रतियोगिता में कहानी ''आकाश पर मत थूको'' चयनित व प्रकाशित। कई पुस्‍तकें प्रकाशित। बिहार राष्ट्रभाषा परिषद् द्वारा ''नवोदित साहित्य सम्मानसहित विभिन्न प्रतिष्ठित संस्थाओं द्वारा कई सम्मानों से सम्मानित। सम्प्रति: आकाशवाणी पटना के प्रादेशिक समाचार एकांश, पटना में समाचार संपादक के पद पर कार्यरत।

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  1. एकदम सही है. जहाँ तक मैंने इस्लाम के बारे में समझा है सुना है,और पढ़ा है ,आतंकवाद इस्लाम में प्रशंसित नहीं किया गया। किन्तु भारत में जब इस्लामिक शासक आये तो उन्होंने आतंक.का ही सहारा लिया. तलवार की नोक पर धर्मान्तरण की घटनाएं अवश्य हुई है. विवाह समारोहों पर कर,जजिया कर ,जनेऊ कर,तीर्थ यात्रा पर कर इतिहास में उल्लेखित है. हिन्दुओं के प्रसिद्द तीर्थ स्थानो पर या उनके एकदम नजदीक मस्जिद या मजारें बनायी गयी हैं. इसे पुरे भारत में देखा जा सकता है. यदि मध्यकाल की बातें छोड़ दी जावें तो अभी अभी बंगलादेश बना तब कौनसी जाती की लड़कियों के साथ क्या हुआ,कितनी गर्भवती हुईं ,कितने मंदिर जलाये गए ,बांग्लादेश के पास अभिलेख है. तसलीमा नसरीन की ”लज्जा”पढ़ लीजिए. पवित्र ”कुरान”में ऐसी आज्ञा नहीं है. किन्तु ये शासक यह सब करते आये हैं. तालिबान ने ”विशव विरासत” की बुद्ध की पहाड़ में बनाई प्रतिमा को संयुक्त राष्ट्र संघ की अपील के बावजूद डायना माइट से उड़ा दिया. दिक्कत यही थी की इनका प्रतिकार अभी तक सशक्त रूप से नहीं हुआ. जॉर्डन के शाह को वास्तव में माना जायेगा की उनका निर्णय एक मील पत्थर साबित होगा. उनका सकलप तो देखिये की ”तेल की आखरी बून्द और बन्दूक की आखरी गोली”तक वे लड़ेंगे. जॉर्डन शाह इस्लाम के सच्चे सेवक सिद्ध होंगे. हालांकि उन्होंने यह कदम अपने पायलेट को खोकर किया है. और वह भी इस तरीके से की रोंगटे खड़े हो जाएँ।

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