नई दिल्लीः भारत में जन्मीं और पिता के तबादले के बाद पाकिस्तान जा बसीं मश्हूर लेखिका फहमीदा रियाज का लंबी बीमारी के बाद बुधवार को निधन हो गया वह 72 वर्ष की थीं। वह पिछले कुछ समय से बीमार चल रही थीं। फहमीदा को साहित्य जगत में अपनी नारीवादी और क्रांतिकारी विचारधारा के लिए जाना जाता है। पाकिस्तान में वह मानवाधिकारों के लिए भी सक्रिय रही हैं। उनके निधन से उर्दू साहित्य जगत को गहरी क्षति पहुंची है।

फहमीदा रियाज़ की पहली साहित्यिक किताब 1967 में प्रकाशित हुई थी जिसका नाम ‘पत्थर की जुबान’ था। उनके अन्य कविता संग्रह में धूप, पूरा चांद, आदमी की जिंदगी इत्यादि शामिल हैं। उन्होंने कई उपन्यास भी लिखे जिनमें जिंदा बहर, गोदवरी और करांची प्रमुख हैं। उनकी कविताओं में क्रांति और बगावत की झलक मिलती है। जब उनका दूसरा कविता संग्रह बदन दरीदा 1973 में प्रकाशित हुआ तो उन पर कविता में वासना और अश्लीलता के इस्तेमाल के आरोप लगे। उस वक्त तक ऐसे विषय महिला लेखिकाओं के लिए वर्जित माने जाते थे। उनके 15 से ज्यादा फिक्शन और कविता संग्रह प्रकाशित हो चुके हैं।

फहमीदा रियाज का जन्म मेरठ में जुलाई 1946 में एक साहित्यिक परिवार में हुआ था। उन्होंने जीवन भर सामाजिक और राजनीतिक मुद्दों पर बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया। चार साल की उम्र में ही पिता की मृत्यु के बाद उनका पालन-पोषण उनकी मां ने किया। बचपन से ही साहित्य में रुचि रखने वाली फ़हमीदा ने उर्दू, सिन्धी और फारसी भाषाएं सीख ली थीं। पढ़ाई पूरी करने के बाद उन्होंने रेडियो पाकिस्तान में न्यूजकास्टर के रूप में काम किया। शादी के बाद वह कुछ वर्ष ब्रिटेन में रहीं और तलाक के बाद पाकिस्तान लौट आईं उनकी दूसरी शादी जफर अली उजान से हुई।