१९ जुलाई से शुरू हुआ संसद का मानसून सत्र विपक्षीदलों के हंगामें व टकराव के चलते २६ जुलाई तक लगातार बाधित बना हुआ है।
विपक्ष का आरोप है कि सरकार पेगासस जासूसी मामला, तीन कृषि कानूनों सहित आक्सीजन की कमी से हुई मौतों, ईंधन की कीमतों में हुई बढ़ोत्तरी पर चर्चा नहीं कराना चाहती जबकि सरकार का कहना है कि विपक्ष जानबूझकर सदन की कार्यवाही नहीं चलने देना चाहता है।
संसद के पहले ही दिन विपक्ष के हंगामें के चलते यदि प्रधानमंत्री को अपने नये मंत्रियों का परिचय तक नहीं कराने दिया गया। यदि गुरूवार को राज्यसभा में तृणमूल कांग्रेस सांसद शांतुन सेन ने आईटी मंत्री अश्विनी वैष्णव के हाथ से कागज छीनकर उसे फ ाड़ा और फि र आसन की ओर उछाल दिया तो इसके क्या मायने है।
सारा खेल २०२२ में होने वाले उत्तर प्रदेश सहित कुछ राज्यों के चुनाव को लेकर खेला जा रहा है। विपक्ष की कोशिश है कि कम से कम उत्तर प्रदेश में भाजपा को हर हालत में परास्त किया जाये ताकि २०२४ के लोकसभा चुनाव में केन्द्र में भी भाजपा को सरकार बनाने से रोका जा सके।

१९ जुलाई से शुरू हुआ मानसून सत्र विपक्षीदलों की हठधर्मिता के चलते सप्ताह बार भी सुचारू रूप से नहीं चल सका है। सत्र के पहले दिन जब प्रधानमंत्री ने अपने मंत्रियों का परिचय देना शुरू किया तो विपक्षीदलों ने पेगासस जासूसी मामला, कृषि सुधार कानूनों व अन्य मुद्दों को लेकर हंगामा शुरू कर दिया। अध्यक्ष के बार-बार चेताने के बावजूद विपक्षीदल शांत नहीं हुये। मजबूर होकर अध्यक्ष को सदन की कार्यवाही स्थगित करनी पड़ी।
इस हालात पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने गंभीर चिंता जताते हुये कहा कि यह लोकतंत्र के लिये शुभ नहीं है कि नये मंत्रियों का परिचय भी न दिया जा सके जबकि यह सदन की परम्परा रही है। उन्होने कहा कि जब सरकार विपक्षीदलों के सारे प्रश्नों का जवाब देने के लिये तैयार है तो वे शालीनता से अपने प्रश्न क्यों नहीं उठाते?
हद तो तब हो गई जब गुरूवार को पेगासस जासूसी मामले को लेकर राज्य सभा में तृणमूल सांसद शांतुन सेन ने सारी हदें लांघते हुये सूचना प्रौद्योगिकी एवं संचार मंत्री अश्विनी वैष्णव के हाथों से कागज छीनकर फ ाड़ दिया और उसे आसन की ओर उछाल दिया।
हालांकि दूसरे दिन शुक्रवार को तृणमूल सांसद को उच्च सदन के सभापति सम्प्रति उपराष्ट्रपति एम०वेंकैया नायडू ने राज्यसभा के मौजूदा सत्र में शेष समय के लिये निलंबित कर दिया।
उम्मीद थी कि इस घटना के बाद संसद की कार्यवाही अब आगे सुचारू रूप से चल सकेगी पर ऐसा नहीं हो सका और २६ जुलाई सोमवार को भी सदन की कार्यवाही पूरी तरह बाधित रही।
अजीब बात यह है कि विपक्ष का आरोप है कि सरकार पेगासस फ ोन जासूसी मामला, कृषि सुधार कानून, कोरोना पीड़ितों की आक्सीजन न मिलने से हुई मौतें एवं पेट्रोल मूल्यों में भारी वृद्धि पर चर्चा कराने से बच रही है जबकि सरकार का कहना है कि विपक्ष सिफ र् हंगामें खड़ाकरके सरकार के जरूरी काम-काज को बाधित करने पर आमादा है। संसदीय इतिहास में ऐसा कभी नहीं हुआ कि प्रधानमंत्रियों को अपने मंत्रियों का परिचय तक न कराने दिया जाये।
राजनीतिक समीक्षकों का कहना है कि विपक्ष की रूचि सदन में इन मामले पर चर्चा कम हंगामा करने में इसलिये ज्यादा है ताकि उनके आरोपों पर सरकार की सच्चाई जनता के सामने न आ सके और जनता उनके आरोपों को ही सही मानती रहे।
उपरोक्त सूत्रों का कहना है कि सारा खेल २०२२ में प्रदेश के सबसे बड़े सूबे उत्तर प्रदेश में होने वाला विधान सभा चुनाव हैं। कौन नहीं जानता कि केन्द्र का रास्ता उत्तर प्रदेश से ही होकर जाता है जहां से लोकसभा की ८० सीटे है। अलावा इसके उत्तराखण्ड में भी चुनाव होने है जहां से लोकसभा की ५ सीटे हैं ऐसे में विपक्षीदलों की रणनीति है कि इन दोनो राज्यों में यदि भाजपा को परासत कर दिया जाता है तो २०२४ के लोकसभा चुनाव में भाजपा को चित किया जा सकता है।
यही कारण है कि वो कांग्रेस भी किसान आंदोलन को हवा देने में जुटी है जिसने मनमोहन सरकार में नये कृषि कानून लाने का न केवल वादा किया था वरन् पहल भी की थी।
भले ही तृणमूल कांग्रेस की उत्तर प्रदेश में कोई राजनीतिक जमीन नहीं है पर वो भी भाजपा को हटाने का तानाबाना तो बुन ही रही है। समझा जाता है कि जिन दलों का उत्तर प्रदेश में वजूद भी नहीं है वे भी भाजपा को हराने के लिये अवसर गंवाना नहीं चाहते।
कौन जिम्मेदार?
मानसून सत्र का पूरा सप्ताह हंगामें की भेंट चढ़ गया। राज्य सभा, लोकसभा दोनो सदनों में कामकाज नहीं हो सका। इस प्रकार जनता की गाढ़ी कमाई के करोड़ो रुपये स्वाहा हो गये।
ज्ञात रहे संसद की एक घंटे की कार्यवाही पर करीब १.५ करोड़ खर्च होते हंै। ऐसा नहीं है कि विपक्षीदलों के हंगामें के कारण चालू मानसून सत्र के पूरे ७ दिन अराजकता की भेंट चढ़ गये वरन् इसके पूर्व भी एक नहीं अनेक बार संसद की कार्यवाही अराजकता की भेंट चढ़ चुकी है। वर्ष २०१६ में शीतकालीन सत्र के दौरान विपक्षीदलों के चलते ९२ घंटे बर्बाद हुये थे और जनता की टेंट का १४४ करोड़ का नुकसान हुआ था जिसमें १३८ करोड़ संसद चलाने पर और ६ करोड़ सांसदों के वेतन भत्ते आदि का खर्च शामिल है।
जिस देश के लोगों की औसत कमाई सालाना १ लाख से कम हो उस देश के जनसेवकों यानी सांसदों को प्रतिमाह मिलने वाला करीब ३ लाख रुपये वेतन भत्ता क्या मुंह नहीं चिढ़ाता? ऐसे में किसी सांसद के मन में यह पीड़ा क्यों नहीं होती कि यदि वह देश के आम आदमी की गाढ़ी कमाई से बल पर भारी भरकम वेतन व सुख सुविधायें ले रहा है तो कम से कम वो सदन में उनकी समस्याओं को शालीनता से उठाये और सरकार से दो-दो हाथ करें, सिफ र् हंगामा करने से भला किस मसले का हल संभव है।
अब सवाल यह है कि यह सब कब तक चलता रहेगा। सच तो यह है कि सांसदों के ऐसे रवैये से देश की जनता ऊब चुकी है। वो चाहती है कि जल्द से जल्द सांसदों के लिये ऐसा कानून बने ताकि वे संसद की कार्यवाही के दौरान किसी कीमत पर हंगामा, अभद्रता न कर सके। बेहतर हो यह पहल इसी सत्र से हो और यह काम स्वयं सरकार करे।

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