ब्राह्मणों के प्रति यदि विपक्षीदलों खासकर बसपा, सपा व कांग्रेस आदि मेें प्रेम कुछ ज्यादा ही उमड़ने लगा है तो यह २०२२ के विधानसभा चुनाव का असर है। हालांकि उपरोक्त सभी विपक्षीदल भाजपा की योगी सरकार को ब्रह्मद्रोही सिद्ध करने में तभी से जुट गये थे जब बिकरू का विकास दुबे पुलिस मुठभेड़ में मारा गया था। वे अपने इस अभियान में कितने सफ ल होगें यह तो आने वाला समय बतायेगा। आज वे पार्टियां भी ब्राह्मणों की माला जपने में लगी है जिन्होने कभी सत्ता के लिये ब्राह्मणों को अपमानित करने में कोई कोसर कसर नहीं छोड़ी थी।
यहां यह स्मरण कराना समीचीन होगा कि जिस बसपा के प्रमुख स्तम्भ सम्प्रति राष्ट्रीय महासचिव सतीश चन्द्र मिश्र आज ब्राह्मणों को हर तरह से लुभाने में जुटे है और वे बसपा को ही ब्राह्मणों की सच्ची हितैषी पार्टी सिद्ध करने में तुले हुये हैं जिन्होने ‘दलित-ब्राह्मण भाई-भाई। अब कउनो अत्याचार नहीं कर पाई।जैसा नया नारा तक गढ़ डाला है, वे यह भूल रहे हैं कि अतीत में सत्ता में आने के लिये ही बसपा के संस्थापक काशीराम व उनकी उत्तराधिकारी मायावती ब्राह्मणों को किस हद तक अपमानित कर चुकी हैं।
मिश्र जी भले भूल जाये, कुछ स्वार्थी ब्राह्मण भले ही बिसार दें पर अधिसंख्य ब्राह्मण समाज आज भी उन नारों को भूला नहीं है और शायद भविष्य में भी न भूले।
ज्ञात रहे कि बसपा गठित करने के पूर्व कांशीराम ने सन् १९८४ में डीएस-4 संगठन बनाया था। उस समय उनकी प्राथमिकता दलितों को गोलबंद करने की थी सो उन्होने नारा दिया था ‘ठाकुर, बाभन, बनिया चोर, बाकी सब हैं डीएस-4। भले ही इस नारे से चौतरफ ा कांशीराम की निंदा हुई थी पर वो यहीं नहीं रू के थे। उन्होने सवणों को और अधिक चोट देने हेतु अगला नारा दिया था ‘तिलक, तराजू औ तलवार उनको मारों जूते चार।
इन नारों का सार्थक परिणाम बसपा के पक्ष में तब आया जब १९९५ में मायावती पहली बार उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री बनने में सफ ल हुई। उसके बाद तमाम उतार-चढ़ाव आये पर कांशीराम के निधन के बाद जब मायावती को लगा कि अब वे सिफ र् पुराने नारों के बल पर सत्ता में वापस नहीं आ सकती तो वर्ष २००७ के चुनाव में उन्होने अतीत की भूलों को सुधारा व बहुजन से सर्वजन की ओर कदम बढ़ाते हुये सवर्ण मतदाताओं को लुभाने हेतु नये नारे-‘हाथी नहीं गणेश हैं ब्रह्मा विष्णु महेश हैं।’पण्डित शंख बजायेगा हाथी बढ़ता जायेगा।Ó गढ़े और उसका बसपा को भरपूर फ ायदा भी मिला। नतीजतन मायावती की पूर्ण बहुमत से सरकार बनी।
कदाचित २०२२ के चुनाव में एक बार पुन: बसपा के रणनीतिकार ब्राह्मणों को लुभाकर सत्ता में वापसी का ताना-बना बुनने में जुटे हैं।
बसपा, सपा का जब सन् १९९३ में मिलन हुआ तो भाजपा को चित्त करने के लिये ही यह नारा गढ़ा गया ‘मिले मुलायम कांशीराम, हवा हो गये जय श्रीराम।Ó यकीनन इस चुनाव में बसपा, सपा ने मिलकर भाजपा को चित्त कर दिया था। यह बात दीगर है दो वर्षो में दोनो में फ ुट हो गई और १९९५ में मायावती भाजपा के सहयोग से मुख्यमंत्री बनने में सफ ल हो गई थीं।
तात्पर्य यह है कि जो अखिलेश यादव आज ब्राह्मणों के हितैषी बनने का स्वांग भर रहे है वो जरा अतीत के उक्त पन्नों को भी पलट लें। क्या उन्हे यह भी याद नहीं है सन् १९९० में राम भक्तों पर गोली चलवाने वाले उनके पिताश्री मुलायम सिंह यादव ही थे।
यही नहीं उन्हे ४ मई २०१३ की वो घटना भी याद रखनी चाहिये जब उनके पिता की हुकूमत मेें सन् २०१३ में उनके गृहजनपद इटावा के ईटगांव में मामूली सी बात पर ब्राह्मण समाज की महिलाओं और बच्चों तक का मुंह काला करके उन्हे पूरे गांव में घुमाया गया था। यही नहीं दबंगों के आतंक से पीड़ित ब्राह्मण परिवारों को गांव छोड़ने पर विवश होना पड़ा था। इस पर मुलायम सरकार का सड़क से सदन तक घोर विरोध हुआ था। विडम्बना देखिये कि मुख्यमंत्री मुलायम सिंह ने इस घटना पर अफ सोस जताने की बजाय यह बयान दिया था कि ऐसी घटनाओं तो होती ही रहती हैं।
बसपा-सपा के साथ कांग्रेस भी ब्राह्मण वोटों के लिये पूरा जोर लगा रही है। इतिहास गवाह है कि सूबे का ब्राह्मण एक अर्से तक कांग्रेस का अंध समर्थक हुआ करता था। सपा-बसपा के उभार ने जहां उसे भारी नुकसान पहुचाया वहीं राम मंदिर आंदोलन के चलते ब्राह्मण वर्ग पूरी तरह भाजपा के खेमे में चला गया जो कमोवेश आज भी उसी के साथ है।
उत्तर प्रदेश में लगातार आधारहीन हो चुकी कांग्रेस के एक वरिष्ठ नेता प्रमोद तिवारी का कहना है कि ब्राह्मणों का वास्तविक सम्मान सपा-बसपा अथवा भाजपा में नहीं वरन् हमेशा कांग्रेस में रहा है। कांग्रेस ने ही अब तक उत्तर प्रदेश में ६-६ ब्राह्मण मुख्यमंत्री बनाये है। उन्होने आरोप लगाया कि बीच में भले ही ब्राह्मण कांग्रेस से रूठ गया पर २०२२ के विधान सभा चुनाव में उसकी वापसी कांग्रेस में तय है। क्योंकि कांग्रेस ब्राह्मणों का नेचुरल घर है।
यह तो २०२२ के चुनाव परिणाम आने के बाद ही पता चलेगा कि ब्राह्मणों ने किस दल का समर्थन किया था अथवा नहीं। पर यदि सपा-बसपा व कांग्रेस केवल विकास दुबे एंकाउटर के बहाने ब्राह्मणों को लुभाने का सपना देख रही है तो इससे उन्हे कुछ भी हासिल होने वाला नहीं है।
विकास दुबे सिफ र् और सिफ र् एक कुख्यात एवं दुर्दांत अपराधी था। उसके अपराधिक कृत्यों का परिणाम था कि उसे अंतत: पुलिस की गोलियों का शिकार होना पड़ा और यह सब सभी ब्राह्मणों को भी पता है।