-महर्षि दयानन्द जन्मभूमि न्यास में ऋषि बोधोत्सव का सफल आयोजन –
-मनमोहन कुमार आर्य
दिनांक 21 फरवरी, 2020 को ऋषि दयानन्द जन्मभूमि न्यास, टंकारा में आयोजित ऋषि बोधोत्सव का एक महत्वपूर्ण आकर्षण वहां गुजरात के यशस्वी मुख्यमंत्री श्री विजय रुपाणी जी का पधारना और ऋषि दयानन्द को अपनी श्रद्धांजलि प्रस्तुत करना था। उन्होंने अपने सम्बोधन में वह बातें कहीं जो हम भारत के किसी मुख्यमंत्री से अपेक्षा नहीं करते। हमें देश के श्री आदित्यनाथ योगी जैसे मुख्यमंत्रियों से सम्पर्क कर उन्हें ऋषि दयानन्द का आशय तथा सनातन वैदिक धर्म और संस्कृति के महत्व से परिचित कराने के साथ उन्हें वैदिक विचारधारा से प्रभावित करने का प्रयत्न करना चाहिये। हम आशा करते हैं कि यदि हमारे योग्य विद्वान ऐसे कार्य करते हैं तो इसके शुभ परिणाम अवश्य मिलेंगे। हम ऐसे नेताओं व राज्याधिकारियों की चापलूसी नहीं करनी चाहिये जो प्रत्यक्ष रूप से आर्यसमाज व इसकी वैदिक विचारधारा से 36 का आंकड़ा रखते हैं। हमारे पास सत्य एवं सद्ज्ञान है। हमें इस पर विश्वास कर प्रचार करना चाहिये। देश में इस समय अस्थिरता उत्पन्न करने के लिये अनेक शक्तियां सक्रिय हैं जिनमें राजनीतिक दलों के लोगों सहित कुछ देशवासी भी सम्मिलित हैं। हम विवेक से इन शक्तियों को जान सकते हैं। सत्य इतिहास भी ऐसे लोगों को जानने व पहचानने में हमारी सहायता करता है। ऋषि दयानन्द ने सत्यार्थप्रकाश लिखा है। उनके इस ग्रन्थ को पढ़कर तथा उनके विचारों को समग्रता से जानकर हम लोगों के अच्छे व बुरे स्वभाव, प्रकृति, दुष्टता व भद्रता विषयक प्रकृति, आचरण व व्यवहारों को भी जान सकते हैं। हमें समान विचार वाले लोगों को संगठित करना है। इस कार्य को करते हुए यदि हमें अपने स्वार्थों की हानि भी होती है तो उसे दृष्टि से ओझल कर देना चाहिये। आर्य-हिन्दू समाज के सभी अशिक्षित, दुर्बल, भ्रद व अभद्र असहाय व अनाथ तथा भ्रमित व्यक्ति भी हमारे प्रेम, स्नेह एवं सहाय के पात्र हैं। हमें उन्हें अपना समझकर उनकी शैक्षिक, सामाजिक तथा आर्थिक उन्नति में यथाशक्ति सहयोग करना चाहिये। अपनी विचारधारा के लोगों को हमें अपने निजी कार्यों, सेवाओं के आदान-प्रदान तथा व्यवहार में प्राथमिकता देनी चाहिये। ऐसा होने पर ही हमारी जाति, देश तथा समाज का कल्याण होगा। आज जो स्थिति है व आगे जो अनुमानित है, उससे लगता है कि यदि आर्य-हिन्दू जाति जागेगी नही तो उसके साथ इतिहास की पुनरावृत्ति हो सकती है। उसके साथ वह हो सकता है जो विगत 1200 वर्षों में हुआ है। अतीत की आर्य विरोधी विचारधारायें एवं भावनायें आज भी यथापूर्व विद्यमान हैं। हमें अपने विवेक एवं अध्ययन से इन सब बातों को जानना व समझना है तथा उचित व्यवहार करना है।
दिनांक 21 फरवरी, 2020 को शिवरात्रि वा बोधोत्सव के दिन ऋषि जन्मभूमि न्यास की यज्ञशाला में प्रातः सामवेद पारायण यज्ञ की पूर्णाहुति हुई। यजमान के आसनों पर न्यास के सहयोगी अनेक दम्पति, स्त्री व पुरुष उपस्थित थे। यज्ञ के ब्रह्मा आचार्य रामदेव जी थे। टंकारा गुरुकुल के ब्रह्मचारी मन्त्रोच्चार कर रहे थे। यज्ञशाला की तीन दिशाओं में देश-विदेश से आये ऋषिभक्त स्त्री-पुरुष उपस्थित थे। सभी मन्त्रोच्चार तथा यज्ञ के ब्रह्मा के वचनों व सम्बोधन को सुन रहे थे। यज्ञ की पूर्णाहुति हुई। इसके बाद ध्वजारोहण हुआ तथा टंकारा की गलियों व मुहल्लों में विशाल एवं भव्य शोभायात्रा निकली। सभी लोग बहुत उत्साह में थे। ऐसा उत्साह हमने आर्यसमाज की अन्य शोभायात्राओं में नहीं देखा। हमें लगा कि ऋषि जन्मभूमि टंकारा आते समय जो उत्साह होता है उसकी अभिव्यक्ति शोभायात्रा में ऋषिभक्त करते हैं। शोभा यात्रा के बाद भोजन हुआ और लगभग 2.00 बजे गुजरात राज्य के राज्यपाल आचार्य देवव्रत जी तथा मुख्यमंत्री श्री विजय रुपाणी जी न्यास परिसर में पहुंचे। मंच सजा हुआ था। भारी संख्या में दर्शक उपस्थित थे। बाद में आने वाले लोगों के लिये स्थान मिलना कठिन हो रहा था। न्यास के मंत्री श्री अजय सहगल जी कार्यक्रम का संचालन कर रहे थे। उन्होंने प्रदेश के मुख्यमंत्री जी को न्यास एवं आर्यसमाज विषयक अनेक महत्वपूर्ण बातों से अवगत कराया तथा मुख्यमंत्री जी से अपनी भेंट में उनसे मिले सहयोग एवं आश्वासनों की भी चर्चा की। मुख्यमंत्री जी को जल्दी जाना था। सायं वडोदरा में उनका एक अन्य कार्यक्रम था। अतः उन्हें सबसे पहले अपने विचार एवं सम्बोधन के लिये आमंत्रित किया गया।
गुजरात के यशस्वी मुख्यमंत्री श्री विजय रुपाणी ने अपने सम्बोधन के आरम्भ में कहा कि वह महर्षि दयानन्द के जन्म स्थान टंकारा में आकर बहुत प्रसन्नता का अनुभव कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि यह टंकारा वह स्थान है जिससे विश्व के लोगों को आर्यसमाज जैसी अन्धविश्वास निवारक एवं वेद प्रचारक संस्था की भेंट मिली। श्री रुपाणी ने कहा कि ऋषि दयानन्द आधुनिक भारत के महान चिन्तक एवं सुधारक थे। आज शिवरात्रि का महत्वपूर्ण दिन है। उन्होंने भगवान शिव की चर्चा की और उनके अस्तित्व व महत्व पर प्रकाश डाला। उन्होंने वेबसाइट एवं वेद शब्दों के आपस के सम्बन्ध पर भी विचार व्यक्त किये। श्री विजय रुपाणी जी ने कहा कि ऋषि दयानन्द जी के जीवन में शिवरात्रि पर्व एवं व्रत का महत्वपूर्ण प्रसंग रहा है। आज के दिन ही ऋषि दयानन्द को टंकारा के शिव–मन्दिर में बोध प्राप्त हुआ था। उन्होंने कहा कि वेदों के प्रचारक ऋषि दयानन्द ने सन् 1875 में मुम्बई में वेद प्रचारक आर्यसमाज संगठन की स्थापना की थी। उन्होंने अपने सम्पूर्ण जीवन भर सत्य मान्यताओं व सिद्धान्तों का प्रचार किया। ऋषि दयानन्द ने विश्व के लोगों को वेदों की ओर लौटने का नारा दिया था। उन्होंने विश्व को सत्य को स्वीकार करने और असत्य को छोड़ने का नारा भी दिया था। मुख्य मंत्री महोदय ने आर्यसमाज के शीर्ष महापुरुषों स्वामी श्रद्धानन्द, पं. लेखराम, श्यामजी कृष्ण वर्मा, लाला लाजपत राय आदि अनेक महापुरुषों के नाम लिये और कहा कि इन सभी महापुरुषों पर ऋषि दयानन्द का ही प्रभाव था। यह लोग ऋषि दयानन्द की वेद विषयक विचारधारा, मान्यताओं व सिद्धान्तों को अपना कर ही महापुरुष बने थे।
माननीय मुख्यमंत्री श्री विजय रुपाणी जी ने कहा कि आर्यसमाज के विचारों से प्रेरणा ग्रहण कर देश के क्रान्तिकारी आन्दोलन में भी अनेक क्रान्तिकारी निकले थे। मुख्यमंत्री जी ने देश के प्रथम उपप्रधानमंत्री एवं गृहमंत्री सरदार वल्लभ भाई पटेल का उल्लेख कर कहा कि उन्होंने स्वीकार किया था कि हैदराबाद रियासत के भारत में विलय की सफलता का कारण आर्यसमाज द्वारा रियासत में उत्पन्न की गई वैदिक विचारधारा का प्रचार व सत्याग्रह आन्दोलन से उत्पन्न जागृति थी। इस सत्याग्रह ने हैदराबाद रियासत का भारत में विलय होना आसान कर दिया था। उन्होंने कहा कि ऋषि दयानन्द और आर्यसमाज ने देश भर से अन्धविश्वासों, रुढ़ियों तथा अज्ञान को खत्म करने का काम किया। मुख्य मंत्री श्री विजय रुपाणी ने जन्मना जातिवाद का भी उल्लेख किया। उन्होंने कहा कि ऋषि दयानन्द ने जन्मना जातिवाद सहित दलितोद्धार एवं नारी शिक्षा के प्रचार के लिये आन्दोलन किया। ऋषि दयानन्द ने बाल विवाह का विरोध किया तथा विधवा विवाह समर्थन किया था। उन्होंने कहा कि ऋषि दयानन्द ने सभी अन्धविश्वासों एवं मिथ्या परम्पराओं के विरोध में आवाज उठाई और उनके सुधार का प्रयत्न किया। श्री विजय रुपाणी ने कहा कि सन् 1857 में हुई प्रथम क्रान्ति का कार्य भी उन्हीं के नेतृत्व में हुए होने का अनुमान है। उन्होंने स्पष्ट शब्दों में कहा कि सन् 1857 के प्रथम स्वतन्त्रता संग्राम वा क्रान्ति में ऋषि दयानन्द की अहम् भूमिका थी। इस विषय पर उन्होंने विस्तार से प्रकाश डाला। मुख्य मंत्री महोदय ने गुजरात में जन्में ऋषि दयानन्द सहित सरदार पटेल एवं महात्मा गांधी आदि अनेक नेताओं के नाम लिये। उन्होंने कहा कि स्वामी दयानन्द का महापुरुषों में अग्रणीय स्थान रहा है। श्री विजय रुपाणी ने कहा कि पूरा गुजरात महर्षि दयानन्द के गुजराती होने पर गौरव का अनुभव करता है।
मुख्य-मंत्री श्री विजय रुपाणी जी ने कहा कि राजकोट और टंकारा के बीच में प्रस्तावित डी.ए.वी स्कूल व कालेज खोले जाने के लिये वह सरकार के द्वारा आवश्यकता के अनुरूप भूमि प्रदान करेंगे। मुख्यमंत्री जी ने डी.ए.वी. स्कूल आन्दोलन व इसके कार्यों की प्रशंसा की। उन्होंने विश्वास व्यक्त किया कि गुजरात में भी डी.ए.वी. स्कूल कमेटी का कार्य बढ़ेगा।
श्री विजय रुपाणी ने गम्भीरता के साथ कहा कि हम ऋषि दयानन्द सरस्वती जी की जन्मभूमि को भव्य बनायेंगे। हम चाहेंगे कि विश्व व देश भर के लोग ऋषि दयानन्द की जन्मभूमि को देखने गुजरात वा टंकारा आवें। हम इस जन्मभूमि का आर्यसमाज की अपेक्षाओं के अनुरूप विकास करेंगे। उन्होंने स्पष्ट व दो टूक शब्दों में कहा कि ऋषि दयानन्द के भव्य स्मारक पर होने वाले समस्त व्यय को राज्य सरकार वहन करेगी। पर्यटन को ध्यान में रखकर जन्मभूमि का विकास व निर्माण किया जायेगा। उन्होंने यह भी कहा कि हम महर्षि दयानन्द के विचारों को पूरे विश्व में फैलायेंगे। आर्यसमाज के लोग इस जन्मभूमि में आकर प्रसन्नता एवं सन्तोष का अनुभव करें, इसका ध्यान रखते हुए राज्य सरकार काम करेगी।
मुख्यमंत्री श्री विजय रुपाणी ने कहा कि गुजरात देश का नम्बर एक राज्य है। देश के लोग गुजरात के इस स्थान से आध्यात्मिक चेतना प्राप्त करें, ऐसा प्रयत्न किया जायेगा। इसके लिये हम गुजरात को एक समृद्ध, अहिंसा से युक्त, धर्म व न्याय पर चलने वाला राज्य बनायेंगे। श्री रुपाणी जी ने कहा कि गुजरात ने महर्षि दयानन्द व अन्य अनेक महापुरुषों को जन्म दिया है। इन सभी महापुरुषों की शिक्षाओं के आधार पर गुजरात आगे बढ़ेगा। अपने वक्तव्य को विराम देते हुए उन्होंने कहा कि गुजरात की जय हो। इसी के साथ श्री रूपाणी जी का व्याख्यान समाप्त हुआ। कच्छ के आर्यसमाज के लोगों ने मुख्यमंत्री जी को कच्छ की पगड़ी पहनाई। माननीय राज्यपाल महोदय सहित महात्मा धर्मपाल जी, एमडीएच को भी कच्छ की पगड़ियां पहनाई गईं। कार्यक्रम का संचालन कर रहे न्यास के मंत्री श्री अजय सहगल जी ने मुख्यमंत्री जी के व्याख्यान एवं घोषणाओं की प्रशंसा की। उन्होंने कहा कि मुख्य मंत्री जी ने हमारी अपेक्षाओं से कहीं अधिक हमें दिया है। उन्होंने मुख्यमंत्री जी को साधुवाद एवं शुभकामनायें दी। इसके बाद आर्य विद्वान डा. विनय विद्यालंकार का व्याख्यान हुआ। पश्चात गुजरात के राज्यपाल माननीय आचार्य देवव्रत जी ने आर्यों को सम्बोधित किया। इनका भाषण अत्यन्त महत्वपूर्ण है जिसे हम पृथक से प्रस्तुत करेंगे। ओ३म् शम्।