नई दिल्लीः हर साल 3 दिसंबर को विश्व विकलांग दिवस मनाया जाता है। इस साल इसकी थीम ‘विकलांग व्यक्तियों को सशक्त बनाना और उनके समावेश और समानता को सुनिश्चित करना’ रखी गई है। इसकी शुरुआत 1992 में हुई।
2001 की जनगणना के मुताबिक, भारत में 2.1 करोड़ से ज्यादा दिव्यांग थे। इनमें 1.26 करोड़ पुरुष और 93 लाख महिलाएं थीं। यह देश की आबादी का 2.1 फीसदी था।

1992 में हुई International Day of Disabled Persons मनाने की शुरुआत

साल 1976 में संयुक्त राष्ट्र आम सभा ने 1981 को विश्व विकलांग वर्ष के रूप में घोषित किया था। इसका मकसद शारीरिक रूप से अक्षम लोगों के हित पर बात करना, उन्हें सामान्य धारा से जोड़ना और उन्हें ध्यान में रखते हुए सरकारी स्तर पर योजना बनाना था। 1992 से इसे अन्तरराष्ट्रीय स्तर पर मनाने की शुरुआत हुई। साल 2007 तक इस दिन को ‘International Day of Disabled Persons’ कहा जाता था। इस दिन यूएन की तरफ से कई कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है। संयुक्त राष्ट्र ने 2030 तक के लिए एजेंडा तैयार किया है, जिसके तहत उनकी कोशिश है कि रफ्तार भरी ज़िंदगी में दिव्यांग भी पीछे न छूटें।

1980 में चलन में आया डिफरेंटली एबल्ड शब्द
अमेरिका की डेमोक्रेटिक नेशनल कमेटी ने शारीरिक रूप से अक्षम लोगों के लिए हैंडिकैप की जगह डिफरेंटली एबल्ड शब्द के इस्तेमाल पर जोर दिया। भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने दिसंबर 2015 तके मन की बात कार्यक्रम में विकलांग को दिव्यांग नाम दिया। उनके सुझाव के बाद से यह शब्द चलन में है।

रोचक है हैंडिकैप शब्द की कहानी
कहा जाता है कि इसकी शुरुआत 15वीं-16वीं शताब्दी में इंग्लैंड में हुई। इस दौरान यहां हेनरी सप्तम का शासन था। यह शब्द पुराने योद्धाओं की वजह से चलन में आया क्योंकि योद्धा, युद्ध के बाद शारीरिक अक्षमता की वजह से रोजमर्रा की जरूरतें पूरी नहीं कर पा रहे थे।

इसलिए वे गलियों में भीख मांगने के मकसद से हाथ में कैप (cap in hand) लेकर चलते थे. जिसे किंग हेनरी VII ने लीगल करार कर दिया था, क्योंकि राजा ने उस दौर में महसूस किया कि वे कोई नौकरी कर सकने समर्थ नहीं हैं। इसलिए उन्होंने इसे वैध करार कर दिया था।

इस शब्द के मायने 1915 तक शारीरिक अक्षमता से नहीं जुड़े थे। इसके उलट यह एक रोचक खेल था जिसे हाथ में कैप लेकर खेला जाता था, जिसमें लोग एक-दूसरे से चीजें बदलते थे। कुछ अन्य तथ्यों के मुताबिक कुछ जगहों पर इस शब्द को घोड़ों की रेस में इस्तेमाल किया जाता रहा।