पाक भारत के दम को आजमाने की भूल न करें

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 – ललित गर्ग –

भारत ने पहलगाम के नृशंस एवं बर्बर आतंकी हमले का जिस पराक्रम एवं शौर्य से बदला लिया, लेकिन विडम्बना है कि उस एकदम स्पष्ट सन्देश से पाकिस्तान ने कोई सबक नहीं लिया, पाकिस्तान की ऐसे सर्जिकल स्ट्राइक और एयर स्ट्राइक से भी अक्ल नहीं आयी। पाकिस्तान ऐसे कुत्ते की दूम है, जिसे चाहे कितना ही तरोड़ों-मरोडो वह टेढ़ी की टेढ़ी ही रहने वाली है। लेकिन इस बार भारत ने एक बड़ा सबक लिया है कि पाक के किसी भी झांसे एवं घड़ियाली आंसुओं में वह नहीं आयेगा। इसीलिये भारत हर मोर्चे पर सतर्क एवं सावधान है। भारत ने गैर-सामरिक एवं सामरिक मोर्चे पर सर्तकता दिखाते हुए तमाम समीकरण ही नहीं बदले हैं बल्कि भारत की सुरक्षा एवं आतंकवाद के खिलाफ सख्ती को तीक्ष्ण धार दी है। अब कोई भी आतंकी हमला युद्ध की चुनौती के रूप में लिया जाएगा और उसकी कड़ी एवं विध्वंसक प्रतिक्रिया ही होगी। भारत किसी परमाणु ब्लैकमेलिंग का शिकार नहीं होगा। आतंकियों और उनके समर्थकों में कोई भेद नहीं किया जाएगा। भारत आतंकवाद एवं कश्मीर के मामले में किसी भी महाशक्ति की मध्यस्थता स्वीकार नहीं करेगा। भारत ने हाल की स्थितियों में जो भी निर्णय लिये स्व-विवेक से लिये, अमेरिका की इसमें कोई भूमिका नहीं रही। पाक भारत के दम को कमतर न आंके और उसे आजमाने की भूल न करें।
भारत के कतिपय राजनीतिक दल एवं कुछ लोग सवाल उठा रहे हैं कि जब भारत विजयी स्थिति में आगे बढ़ रहा था तब उसने शांति की पहल क्यों स्वीकार की? भारत ने बड़ी जीत हासिल कर ली थी और उससे भी बड़ी जीत के लिये उसकी तैयारी थी तो संघर्ष विराम क्यों किया? इसका जवाब भारत के शीर्ष नेतृत्व ने एकदम सरल तरीके से दिया है कि भारत ने अपने सभी लक्ष्य हासिल किए। भारतीय सेना को छह-सात मई की रात पाकिस्तान के आतंकी अड्डों को नष्ट करने के बाद उसके प्रमुख एयरबेस इसलिए नष्ट करने पड़े, क्योंकि उसने अपने यहां के आतंकी अड्डों को निशाना बनाए जाने से चिढ़कर भारत पर मिसाइल और ड्रोन दागने शुरू कर दिए थे। लाहौर और सियालकोट के एयर डिफेंस ध्वस्त कर दिए गए। 11 पाकिस्तानी एयरफील्ड बुरी तरह क्षतिग्रस्त हुए। इनमें रावलपिंडी स्थित सामरिक महत्व वाला नूर खान बेस, सरगोधा में मुशाफ बेस और जैकबाबाद में शाहबाज बेस प्रमुख हैं। चूंकि भारतीय सेना की अभूतपूर्व जवाबी कार्रवाई से पाकिस्तान बुरी तरह पस्त पड़ गया, इसलिए उसने सैन्य कार्रवाई रोकने की गुहार लगाई-भारत से भी और अमेरिका से भी। लेकिन यह स्पष्ट है कि अमेरिका की सैन्य कार्रवाई रोकने में कोई भूमिका नहीं थी।
भारत आपरेशन सिंदूर इस शर्त पर स्थगित करने को तैयार हुआ कि इसके आगे की कार्रवाई में पाक की जनता को ही अधिक नुकसान एवं परेशानी झेलनी थी। भारत ऐसा नहीं चाहता था कि पाक आकाओं की नासमझी का शिकार आम-जनता हो। भारत ने आतंकी ढांचे को ध्वस्त कर दिया और जब पाकिस्तान ने भारतीय नागरिकों को निशाना बनाया तब भी भारतीय प्रतिक्रिया संयमित एवं उचित दायरे में रही। पाक दुष्प्रचार की पोल खोलने के लिए खुद प्रधानमंत्री आदमपुर एयरबेस गए। वह जिस सी-130जे सुपर हरक्युलिस से उतरे वही पाक के दावों को झुठलाने के लिए बहुत था। पाक के झूठे दावे अनेक बार तार-तार हुए है। अब भी प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने संकल्प व्यक्त किया है कि आतंकियों और उनके आकाओं की कोई भी हरकत के परिणाम उनकी कल्पनाओं से भी परे होंगे। भारत कभी झूकेगा नहीं, युद्ध जैसी स्थितियां अस्तित्व बचाने के लिये ही है, किसी पर आधिपत्य करने के लिये नहीं।
भारत- पाक के बीच सैन्य टकराव रुक जाने पर अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने यह श्रेय लेने में देर नहीं लगाई कि उनके हस्तक्षेप के कारण दोनों देश हमले रोकने को राजी हुए। यह दावा झूठा ही नहीं, बल्कि बेबुनियाद था। ट्रंप ने इसे संघर्ष विराम की संज्ञा देते हुए कहा कि मैंने व्यापार का हवाला देकर दोनों देशों की लड़ाई रोकी। इस पर भारत ने साफ कहा कि अमेरिकी राष्ट्रपति से व्यापार को लेकर कोई बात नहीं हुई। ट्रंप का दावा उस समय थोथा भी साबित हो गया, जब अमेरिका के अंतरराष्ट्रीय व्यापार न्यायालय ने उनकी इस दलील को ठुकरा दिया कि उन्होंने ट्रेड की बात करके ही भारत और पाक के बीच सैन्य टकराव थामा। न्यूयार्क स्थित इस संघीय अदालत ने उनकी टैरिफ नीति को भी अवैध बता दिया। इससे सिद्ध हो गया कि ट्रंप जो कुछ कह रहे, वह सही नहीं, राजनीतिक महत्वाकांक्षा का बेहूदा प्रदर्शन है।
भारत अभी भी पाक लिये सख्त बना हुआ है, क्योंकि उसकी भूलें अक्षम्य है। भारत की पाक के खिलाफ सख्त कार्रवाइयों में मुख्य हैं सबसे प्रमुख सिंधु जल समझौते को स्थगित करना, चूंकि पाक सिंचाई संबंधी आवश्यकता के लिए एक बड़ी हद तक सिंधु और उसकी सहायक नदियों के पानी पर निर्भर है, इसलिए भारत के फैसले से उसे बड़ा झटका लगना स्वाभाविक है। पाक की कृषि एवं खाद्य सुरक्षा के लिए इस फैसले के दूरगामी परिणाम हो सकते हैं। इसके साथ ही भारत ने पाक के साथ तमाम व्यापारिक रिश्ते
समाप्त कर दिये हैं। जिससे पाक की अर्थ-व्यवस्था प्रभावित हो रही है। भारत की ऐसी जवाबी कार्रवाइयों से पाकिस्तान में खलबली मची हुई है। लेकिन इन सबके बावजूद पाक सुधरने को तैयार नहीं है। पाक की दुनियाभर में तीव्र भर्त्सना और निन्दा हो रही है। संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के अस्थायी सदस्य के रूप में पाकिस्तान के पहलगाम हमले की जिम्मेदारी लेने वाले रेजिस्टेंस फोर्स की लानत-मलानत ही हुई, पाक की किसी भी बात को तवज्जो नहीं दी गयी, बल्कि उसे फटकार लगी। पाक का टूटना बिखरना खयाली पुलाव नहीं, बल्कि यह उसके आतंकी षडयंत्रों की नियति है।
पहलगाम की घटना स्पष्ट रूप से यह एक सोची-समझी आतंकी साजिश थी। इसका मकसद सांप्रदायिक तनाव को भड़काना और कश्मीर में फल-फूल रहे पर्यटन को नुकसान पहुंचाना था। वहां शांतिपूर्ण चुनाव होने एवं चुनी हुई सरकार का सफलतापूर्वक चलना भी पाक के लिये नागवार गुजर रहा था। जम्मू-कश्मीर में अनुच्छेद 370 हटाने के बाद अथक प्रयासों से आ रही शांति एवं समृद्धि के दम पर हालात सामान्य होते जा रहे थे। उसे पाक आका एवं आतंकी छिन्न-भिन्न करना चाहते थे। पाक रक्षा मंत्री ख्वाजा आसिफ ने 25 मई को स्काई न्यूज पर साक्षात्कार में आतंकी ढांचे से जुड़े सवाल के जवाब में कहा, ‘हम तीन दशकों से आतंक को पालना-पोसने का गंदा काम अमेरिका और ब्रिटेन के लिए करते आए हैं।’ पाकिस्तान के पूर्व विदेश मंत्री बिलावल भुट्टो ने भी आतंकी ढांचे के अस्तित्व को स्वीकार करते हुए कहा कि पाकिस्तान का एक अतीत रहा है। जबकि वास्तविकता यही है कि आतंक पाक का अतीत ही नहीं, बल्कि वर्तमान भी है। यह उसकी मौजूदा नीति है, इसी के तहत पाक समय-समय पर भारत की शांति को क्षत-विक्षत करने की कुचेष्ठा करता रहा है।
अपनी कार्रवाई में भारत ने नागरिक या सैन्य ठिकानों को निशाना नहीं बनाया, लेकिन आतंकी ढांचे पर सटीक एवं प्रभावी प्रहार किया। अपनी विश्वसनीयता के लिए भारत ने साक्ष्य भी प्रस्तुत किए कि यह कोई खुफिया अभियान न होकर एकदम खुली चेतावनी थी। भारत अब भी अपनी बात पर कायम है कि अगर पाक शांति चाहता है, पडोसी धर्म को निभाना चाहता है तो पहले उसे अपने यहां आतंकी ढांचा समाप्त करना होगा। आतंक के साथ न वार्ता हो सकती है और न व्यापार। पानी और खून भी एक साथ नहीं बह सकते। भारत का रुख एकदम स्पष्ट है और अब पाक को तय करना है कि वह क्या चाहता है। भारत पाक और चीन की कुचालों को समझता है, इसीलिये रक्षा परियोजनाओं में देरी पर भारतीय वायु सेना प्रमुख एयर चीफ मार्शल अमरप्रीत सिंह की चिंता और सवाल वाजिब हैं। दोतरफा मोर्चे पर जूझ रही सेना के आधुनिकीकरण में तेजी लाने की भी जरूरत है। इसके लिए केवल विदेशी सौदों पर निर्भर नहीं रहा जा सकता, मेक इन इंडिया प्रॉजेक्ट के तहत भी उत्पादन बढ़ाना होगा। इन्हीं जरूरतों को देखते हुए भारत अपनी सैन्य ताकत बढ़ाने में जुटा है। लेकिन भारत युद्ध नहीं चाहता, शांति एवं अमन ही उसका लक्ष्य है। भारत ने वैसे भी ‘नो फर्स्ट यूज’ की नीति अपना रखी है यानी देश परमाणु हथियारों का पहले इस्तेमाल नहीं करेगा। किसी ऐसे मुल्क के खिलाफ भी भारत एटमी वेपन नहीं निकालेगा, जिसके पास परमाणु हथियार नहीं हैं। भारत ने यह ताकत हासिल की है सुरक्षा के लिए, आक्रामकता दिखाने और आक्रमण के लिए नहीं।

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