कश्‍मीर की फिज़ा में भ्रष्‍टाचार का ज़हर

महनाज़ अख्तर

हाल ही में ब्रिटेन ने 20 साल बाद अपने नागरिकों को फिर से जम्मू कश्‍मीर जाने की इजाजत देकर देश भर की मीडिया का ध्यान फिर से इस ओर खींचा है। ब्रिटेन की इस पहल का दुनिया भर में यह संदेश अवश्‍य गया है कि देश का सबसे विवादित यह क्षेत्र अब शांति की राह पर चल चुका है। अपनी ही मिट्टी और लोगों के खिलाफ बंदूक उठाने वालों को असलियत का पता चल चुका है। गुमराही के अंधेरे में खोने वाले कश्‍मीर की नई पीढ़ी अपनों और गैरों में फर्क करना सीख गई है। आजादी के बाद से ही जम्मु कश्‍मीर भारत का एक ऐसा राज्य रहा है जो अंतरराष्‍ट्रीय स्तर पर सुर्खियों में छाया रहा। 90 की दहाई में यहां मिलिटेंसी चरम पर रही जिसे सरहद पार से खूब हवा दी गई। देश की राजनीतिक कमजोरियों का दुश्‍मनों ने खूब फायदा उठाया। मिलिटेंसी ने यहां की सामाजिक और आर्थिक स्थिती को पूरी तरह से तबाह कर दिया। मीडिया की नजरों में भी जम्मु कश्‍मीर केवल एक उग्रवाद प्रभावित और विवादित क्षेत्र से अधिक कुछ नहीं था। इन सब में यदि किसी का नुकसान हुआ तो वह राज्य की जनता थी। जिसे दर्द और पिछड़ापन के सिवाए कुछ भी नहीं मिला।

हालांकि केंद्र और राज्य सरकार की ओर से जनता के कल्याण के लिए कई महत्वाकांक्षी योजनाओं की शुरूआत की गई। इसमें कोई दो राय नहीं है कि राज्य की कमान युवा मुख्यमंत्री के हाथों में है जो केंद्र के साथ बेहतर तालमेल कर राज्य दशा और दिशा को बदलने के लिए प्रयासरत हैं। यही कारण है कि पिछले कुछ वर्षों में राज्य में बड़े पैमाने पर शिक्षा, स्वास्थ्य और रोजगार के लिए विभिन्न परियोजनाएं चलाई गई। जिसका काफी सकारात्मक परिणाम आ सकता था। लेकिन सरकारी विभागों में लगे भ्रष्‍टाचार के दीमक ने सरकार के प्रयासों पर पानी फेरने का काम किया है। राज्य में योजनाओं की सबसे अधिक जरूरत सीमावर्ती क्षेत्रों के करीब रहने वाले गांवों को होती है। जिन्हें हर समय दोतरफा कठिनाईयों का सामना करना पड़ता है। एक तरफ जहां वह सीमा के दोनों ओर की बंदूकों के निशाने पर होते हैं वहीं जिला मुख्यालय से दूर होने के कारण उचित समय पर उन्हें योजनाओं का लाभ नहीं मिल पाता है। यदि मिलता भी है कर्मचारी अपनी डयूटी सही तरीके से निभा नहीं पाते हैं और इसका नकारात्मक प्रभाव सरकार की छवि पर पड़ता है। इसका उदाहरण नोना बंदी की फातिमा बी हैं। जिन्हें अपने नवजात बच्चे की जान से इसलिए हाथ धोना पड़ा क्योंकि उन्हें अस्पताल के कर्मचारियों को देने के लिए चढ़ावा नहीं था।

जम्मू कश्‍मीर के पुंछ जिला से करीब 10 किमी की दूरी पर पहाडि़यों से घिरा एक छोटा सा गांव नोना बाड़ी है। जहां अपने पति मो. असलम के साथ गर्भवती फातिमा बी गुरबत की जिंदगी बसर कर रही थी। घर की आर्थिक स्थिती अच्छी नहीं होने के कारण गर्भावस्था के दौरान फातिमा बी पौष्टिक आहार भी लेने में अक्षम थी। हालांकि सरकार की ओर से वह गर्भावस्था के दौरान भी कई प्रकार की योजनाओं का लाभ प्राप्त करने की हकदार थी। परंतु जागरूकता की कमी के कारण वह इसका फायदा भी उठा नहीं पाई। एक रात अचानक फातिमा बी को प्रसव पीड़ा उठी लेकिन उसके पति मो. असलम के पास इतने पैसे नहीं थे कि वह उसे निजी वाहन से फौरन अस्पताल ले जाता। नजदीक के अस्पताल में संपर्क कर उसने एम्बुलेंस वाले से अस्पताल ले जाने को कहा परंतु उन्होंने सिर्फ इसलिए मना कर दिया क्योंकि मो. असलम के पास अनैतिक रूप से एम्बुलेंस वाले को देने के लिए 2000 रुपये नहीं थे। जबकि राज्य सरकार द्वारा पिछले वर्श षुरू किए गए ‘मां तुझे सलाम‘ मातृत्व योजना के अंतर्गत किसी भी गर्भवती महिला को प्रसव के लिए बिना शुल्क अस्पताल पहुंचाने का प्रावधान है। लाख मिन्नत के बाद भी एम्बुलेंस वाले उसे अस्पताल ले जाने के लिए तैयार नहीं हुए। आखिरकार फातिमा बी को पैदल ही अस्पताल जाना पड़ा। जहां अत्याधिक रक्तस्त्राव के कारण अस्पताल पहुंचने से पहले ही पेट में उसके बच्चे की मृत्यु हो गई। इस तरह से भ्रष्‍टाचार के डंक के कारण फातिमा बी को अपना बच्चा खोना पड़ा। यह सिर्फ एक फातिमा बी की अकेली दास्तां नहीं है। राज्य में ऐसी कई गर्भवती महिलाएं हैं जो सरकार की योजनाओं का लाभ उठाने की हकदार हैं परंतु जानकारी के अभाव में सिस्टम को भ्रश्ट बनाने वाले कर्मचारी उनका शोषण करते हैं।

ऐसा नहीं है कि यहां मिलिटेंसी का खौफ यहां पूरी तरह से खत्म हो चुका है। हाल के दिनों में उग्रवादियों के फरमान के बाद सैंकड़ों पंच और सरपंचों का इस्तीफा देना इस बात का संकेत है कि अब भी उनका खौफ कम जरूर हुआ है पूरी तरह से समाप्त नहीं हुआ है। लेकिन सरकार के प्रयासों ने इसके प्रभाव को काफी हद तक कम किया है। राज्य से मिलिटेंसी को खत्म करने का सबसे आसान तरीका जनता के हक में ज्यादा से ज्यादा योजनाओं का क्रियान्वयन करना है। लेकिन यह तभी मुमकिन है जब भ्रश्टाचार पर लगाम लगाई जाए। एक रिपोर्ट के अनुसार देष के जिन राज्यों के सरकारी विभागों में सबसे अधिक भ्रश्टाचार फैला हुआ है उसमें जम्मू कश्‍मीर प्रमुख है। ऐसे में यदि इस पर समय रहते लगाम नहीं लगाया गया तो परिणाम भयावह हो सकते हैं। मिलिटेंसी के कारण पहले से ही कठिनाईयों का सामना कर रहे राज्य की जनता के लिए यह किसी दोहरी मार से कम नहीं है। इसे जड़ से समाप्त करने के लिए केवल सरकार ही नहीं आम जनता को भी आगे आना होगा अन्यथा यह अजगर धरती के इस स्वर्ग की शांति को ऐसे ही निगलता जाएगा। (चरखा फीचर्स)

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