अशोक चक्र और तिरंगा हमारी आत्मा के प्रतीक हैं, इन्हें राजनीति का मोहरा न बनाया जाए
भारत की पहचान उसकी सांस्कृतिक विविधता, सहिष्णुता और राष्ट्रीय एकता से होती है। हमारे राष्ट्रीय प्रतीक, जैसे अशोक चक्र, केवल किसी धर्म, पंथ या वर्ग का प्रतिनिधित्व नहीं करते, बल्कि पूरे राष्ट्र की साझा अस्मिता और गणतंत्र की गरिमा के प्रतीक हैं। ऐसे में जब किसी राष्ट्रीय प्रतीक को लेकर आपत्तियां उठाई जाती हैं और उसे मजहबी चश्मे से देखा जाता है, तो यह न केवल अज्ञान का परिणाम है, बल्कि समाज में विभाजन पैदा करने का सुनियोजित प्रयास भी प्रतीत होता है।
श्रीनगर की प्रसिद्ध हजरतबल दरगाह के जीर्णोद्धार शिलापट्ट पर अशोक चक्र का अंकित होना किसी भी दृष्टि से आपत्तिजनक नहीं था। आखिर यह हमारा राष्ट्रीय प्रतीक है, किसी धर्म विशेष का प्रतीक नहीं। इसे मजहब के खिलाफ बताना या इस पर आपत्ति करना वास्तव में देश की एकता और अखंडता पर चोट करने जैसा है। यह प्रवृत्ति न केवल संकीर्ण मानसिकता को उजागर करती है, बल्कि राष्ट्रीय गौरव का भी अपमान है।
दुखद यह है कि कुछ राजनीतिक नेता और संगठन इस प्रकार की घटनाओं को समर्थन देकर अप्रत्यक्ष रूप से समाज को बांटने का काम करते हैं। वोट बैंक की राजनीति की खातिर राष्ट्रीय प्रतीकों की अनदेखी या उन्हें तोड़ने जैसी हरकतों का समर्थन करना बेहद शर्मनाक और लोकतांत्रिक मूल्यों के विपरीत है।
यदि राष्ट्रीय प्रतीकों को ही धर्म या मजहब के चश्मे से देखा जाएगा, तो फिर राष्ट्रीय एकता और अखंडता की रक्षा कैसे होगी? भारत की ताकत उसकी विविधता में एकता है। अगर राष्ट्रीय प्रतीकों का भी तुच्छ राजनीति के लिए दुरुपयोग होने लगेगा, तो आने वाली पीढ़ियों को क्या संदेश मिलेगा?
आज आवश्यकता इस बात की है कि समाज इन प्रवृत्तियों का एकजुट होकर विरोध करे। राजनीतिक दलों को भी यह समझना होगा कि भावनाओं को भड़काकर अल्पकालिक लाभ तो प्राप्त हो सकता है, लेकिन इससे देश की स्थायी शांति और प्रगति बाधित होती है। हमारे संविधान ने सभी धर्मों और संप्रदायों को समान सम्मान दिया है। ऐसे में राष्ट्रीय प्रतीकों का अपमान या उन्हें संकीर्ण दृष्टिकोण से देखना हमारे संवैधानिक आदर्शों के खिलाफ है।
नागरिक समाज को भी सजग रहना होगा। हमें यह स्पष्ट संदेश देना होगा कि चाहे कोई भी धर्म, पंथ या समुदाय हो, राष्ट्रीय प्रतीकों का सम्मान सर्वोपरि है। धर्म की आड़ में या राजनीति की भट्टी में इनका दुरुपयोग कभी स्वीकार्य नहीं होगा।
अंततः, यह याद रखना आवश्यक है कि अशोक चक्र या तिरंगा किसी एक समुदाय का नहीं, बल्कि पूरे भारतवर्ष का है। यह राष्ट्र की आत्मा और गौरव का प्रतीक है। इसे तोड़ने, मिटाने या अपमानित करने की प्रवृत्ति का समर्थन करना देश के भविष्य के साथ खिलवाड़ है। हमें ऐसी राजनीति को अस्वीकार करना होगा जो भावनाओं को भड़काकर समाज में जहर घोलने का काम करती है। यही सच्ची राष्ट्रभक्ति और गणतंत्र के प्रति हमारी वास्तविक निष्ठा होगी।
– सुरेश गोयल धूप वाला