आ गया ऋतुराज बसन्त ।
छा गया ऋतुराज बसन्त।।
हरित घेंघरी पीत चुनरिया ,
पहिन प्रकृति ने ली अँगड़ाई।
नव-समृद्धि पा विनत हुए तरु,
झूम उठी देखो अमराई ।
आज सुखद सुरभित सा क्यों ये
मादक पवन बहा अति मन्द ।। आ गया.....
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फूल उठी खेतों में सरसों ,
महक उठी क्यारी क्यारी ।
लाल, गुलाबी, नीले, पीले,
फूलों की छवि है न्यारी।
आज सजे फिर नये साज,
वसुधा पर बिखर गये सतरंग ।। आ गया....
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हुआ पराजित आज शिशिर है,
विजयी हुआ आज ऋतुराज।
विजय दुम्दुभी बजा रहे हैं ,
गुन गुन सा करते अलिराज।
कष्ट शीत का दूर हो गया ,
मधु-ऋतु लाई सुख अनन्त ।। आ गया ....
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थिरक उठी है प्रकृति सुन्दरी ,
आज मिलन की वेला आई ।
कूक कूक कोकिल कुल ने भी,
सुखकर , सुमधुर तान सुनाई।
सखि! बसन्त आए वर बन कर ,
साथ लिये अपने अनंग ।। आ गया .....
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आ गया ऋतुराज बसन्त।
छा गया ऋतुराज बसन्त ।।
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— शकुन्तला बहादुर